मेजर से बागी बने चंबल के कुख्यात डाकू पान सिंह तोमर की कहानी

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यह कहानी चंबल के बीहड़ की है. एक ऐसा क्षेत्र जिसकी सीमा मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से लगती है. एक ऐसा क्षेत्र जो बागियों के लिए बाहें पसार कर बैठी रहती है. यह कहानियां बीहड़ के नायब सूबेदार की. आखिर वह कौन सी घटना हुई किसके कारण वो बागी बनने के लिए मजबूर हुआ. यह कहानी है पान सिंह तोमर की. एक ऐसे सूबेदार की कहानी जिसके जीवन का मकसद बागी बनना नहीं था. लेकिन परिस्थितियां ऐसी बदली कि उसको बागी बनना पड़ा. हथियार उठाना पड़ा. बागी हमेशा से एक उपेक्षित शब्द रहा है, समाज और हमारी नजरों में. लेकिन बागी बनने की कहानी बड़ी मार्मिक होती है. आखिर लोग बंदूख ऐसे नहीं उठाते हैं. किसी न किसी घटना की वजह से किसी न किसी कारण से लोग बंदूक उठाने के लिए विवश होते हैं. मजबूर होते हैं. पान सिंह तोमर की कहानी पढ़ने के बाद आपको यकीन होगा कि आखिर सेना का एक नायब सूबेदार अच्छी खासी जिंदगी जी रहा था. एक घटना उसके जीवन की दिशा बदल दी और आज वह बागी के नाम से विख्यात है. मध्य प्रदेश के जिला मुरैना की तहसील है विदौशा और उसी विदौशा तहसील की एक गांव के पान सिंह तोमर रहने वाले रहते हैं. कहा जाता है कि यहां के बच्चों की बस एक ही ख्वाहिश होती है कि मुझे बड़े होकर आर्मी में जाना है. सेना में जाना है. अगर घर में खेती-बाड़ी अच्छी है तो बच्चे किसानी का भी काम करते हैं. असल में पान सिंह तोमर वहां अधिक खेत तो नहीं था. बमुश्किल ढाई बीघे खेती थी. जिसमें से पान सिंह तोमर के चाचा की भी हिस्सेदारी थी. बमुश्किल पान सिंह तोमर के हिस्से में सवा बीघे के करीब खेती आती. जिसके बाद पान सिंह तोमर ने यह तय किया कि मुझे सेना में जाना है. देश की सेवा करना है. वो साल था 1959 जब पान सिंह तोमर का राजपूताना राइफल्स में सिलेक्शन होता है. समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता जाता है. पान सिंह तोमर ऐसे क्षेत्र थे, जहां के बच्चे शुरू से ही खेल दौड़ और अन्य चीजों में बहुत सक्रिय रहते हैं. पान सिंह बाधा दौड़ शुरू से ही पान सिंह तोमर बहुत अच्छा दौड़ते हैं. जब सेना में जाने के बाद एक समय आता है, जब एशियाई ओलंपिक गेम में भारत की तरफ से पान सिंह तोमर प्रतिनिधित्व करते हैं. यह कभी भी दौड़ते समय जूतों का उपयोग नहीं किए थे तो अचानक से ओलंपिक में जूता पहनना पड़ा जिससे वो प्रतियोगिता हार जाते हैं. सब कुछ बहुत सही चल रहा था. जिंदगी जैसे एक सैनिक की होनी चाहिए पान सिंह तोमर की जिंदगी वैसे ही चल रही थी. लेकिन वह साल था 1979 जब अचानक से पान सिंह तोमर की जिंदगी में टर्निंग प्वाइंट आता है और पान सिंह तोमर की जिंदगी पूरी तरीके से बदल जाती है. पान सिंह तोमर सोचते हैं कि मुझे सेना से छुट्टी ले लेनी चाहिए और गांव जाकर खेती-बाड़ी करनी चाहिए. सेना से रिजाइन देने के बाद पान सिंह तोमर गांव चले आते हैं. असल में जब वह गांव आते हैं तो पता चलता है कि उनकी जमीन तो उसी गांव के रहने वाले बाबू सिंह हथियाए हुए हैं. चुकी पान सिंह के चाचा ने पूरी जमीन बाबू सिंह के पास गिरवी रख दी थी. पान सिंह तोमर ने चाचा से कहा कि मेरी जमीन मुझे दे दीजिए. मैं वापस सेना में नहीं जाऊंगा और यहीं पर खेती करके अपना गुजारा कर लूंगा. चुकी बाबू सिंह की नीयत ठीक नहीं थी. वह जमीन देना नहीं चाहता था. जिसके बाद सरपंचों की एक बैठक हुई. उस बैठक में बाबू सिंह ने कहा कि ठीक है मैं जमीन वापस दे दूंगा, मेरा जो पैसा है वह मुझे दे दिया जाए. जिसके बाद सहमति बनी और पान सिंह तोमर ने कहा कि ठीक है मैं पैसा आपको दे दूंगा और आप मेरी जमीन वापस कर दीजिएगा. बैठक समाप्त होने के बाद बाबू सिंह ने कहा कि मैं जमीन तुमको नहीं दूंगा जो करना है कर लो. पान सिंह तोमर उसके बाद भी बाबू सिंह से बहुत निवेदन किए कि मेरी जमीन मुझे दे दीजिए मुझे जरूरत है. जिसके बाद पान सिंह तोमर न्याय की गुहार लिए थानों के चक्कर काटते हैं. जब वहां भी न्याय नहीं मिलता है तो वह डीएम ऑफिस पर जाते हैं. उस समय जो देश की न्याय व्यवस्था थी, उसमें कहीं ना कहीं रसूखदार लोगों की ही बात चलती थी. किसी भी रसूखदार के खिलाफ पुलिस थाने में मुकदमा तक दर्ज नहीं होता था. यही हुआ पान सिंह तोमर के साथ भी हर जगह से उनको निराशा ही हाथ लगी. पान सिंह तोमर अपने साथ सेना द्वारा दिए गए तमाम मेडल और सर्टिफिकेट को भी लेकर जाते थे कि देखिए में पान सिंह तोमर सेना का एक वफादार सिपाही रहा और साथ ही साथ में भारत की तरफ से एशियाई ओलंपिक गेम में भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुका हूं. लेकिन फिर भी पान सिंह तोमर को न्याय नहीं मिलता है. 1 दिन की बात है. पान सिंह तोमर न्याय की गुहार लिए एक अधिकारी से मिलने गए रहते हैं और जब अचानक लौटकर शाम को वापस घर आते हैं तो घर का मंजर बिल्कुल बदल चुका था. असल में बाबू सिंह चंदेल अपने कुछ साथियों के साथ पान सिंह तोमर के घर आता है और फिर पान सिंह तोमर के घर में जो भी महिलाएं मौजूद रहती है, महिलाओं के साथ मारपीट करता है. वह दौर था जब महिलाओं के ऊपर कोई भी पुरुष हाथ नहीं उठाता था. खास करके उस बीहड़ के क्षेत्र में. घर पर आने के बाद घर की परिस्थितियां देखने के बाद पान सिंह तोमर थोड़ी देर शांत बैठते हैं. उनकी मां कहती है कि अगर मैं जानी होती कि तू ऐसा ही होगा तो मैं तुझे जन्म ही नहीं दी होती. यह बात पान सिंह तोमर के दिमाग में खटक ने लगती है और फिर वह बंदूक उठाते हैं और अपने दो और भतीजे को लेकर सीधे बाबू सिंह के घर पहुंच जाते हैं और वहां पर 4 लोगों की हत्या कर देते हैं. चार-चार हत्या करने के बाद संभव तो था नहीं कि पान सिंह तोमर वापिस गांव में रह सके. जिसके बाद वह चंबल की तरफ रुख करते हैं और चंबल की कंकड़ीली रेतीली भूमि भी पान सिंह तोमर की बाहें पसार स्वागत करती है. समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता जाता है और वह फिर एक समय आता है जब पान सिंह तोमर का नाम एक बागी के रूप में पूरे देश में छा जाता हैं. हत्या, लूटपाट, डकैती, फिरौती और किडनैपिंग बकायदा पान सिंह तोमर अपने गैंग साथ मिलकर तमाम जघन्य अपराध को अंजाम देते रहते हैं. पानसिंह तोमर की एक आदत थी जब भी वह किसी गांव में जाते थे तो ऐलान करते थे कि पान सिंह तोमर आ गया है. अचानक एक दिन पान सिंह तोमर की गैंग का पुलिस से मुकाबला हो जाता है और पुलिस एनकाउंटर में पान सिंह तोमर के चचेरे भाई की मौत हो जाती है. इनकाउंटर के कुछ दिन पहले ही पान सिंह तोमर एक पास के गांव में विश्राम करने गए हुए थे और पान सिंह तोमर को कहीं से सूचना मिलती है कि जो गांव का सरपंच है वह पुलिस का मुखबिर है और उसी की वजह से चचेरे भाई की मौत हुई है. पान सिंह तोमर अपने गैंग के साथियों को लेकर उस गांव में पहुंचते हैं और पहुंचते ही उस गांव के सरपंच समेत 6 लोगों की हत्या कर देते हैं. यह बात पूरे देश में चर्चा का विषय बन जाता है कि एक बार फिर चंबल में आतंक का पर्याय बन चुका पान सिंह तोमर और उसकी गैंग आसपास के लोगों की जिंदगी को बदहाल किया हुआ है. तत्कालीन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के कानो तक जब ये बात पहुंचती है तो अर्जुन सिंह कहते हैं कि इस बार की दीपावली मैं तभी मनाऊंगा जब पान सिंह तोमर या तो जिंदा या फिर मुर्दा पकड़ा जाएगा. मुख्यमंत्री का बयान आने के बाद मध्य प्रदेश के सभी आला अधिकारी पूरी तरीके से सक्रिय हो गए और वह ठान लिए कि किसी भी तरीके से पान सिंह तोमर को पकड़ना है जिंदा या फिर मुर्दा. एक थाने का SO रहता है जो छोटी मोटी जानकारियां पान सिंह तोमर के बारे में जुटाना शुरू कर देता है. जितने लोग भी पान सिंह तोमर के चंगुल से छूटकर आए रहते हैं उनसे वह सभी जानकारियां लेता है कि आखिर पान सिंह का गैंग कहां रहता है क्या-क्या गतिविधियां करता है. इस गैंग की क्या खासियत है क्या कमियां है. इस गैंग में कितने लोग हैं. सभी जानकारियों को जुटाना शुरू कर देता है. उसी समय मध्य प्रदेश पुलिस की तरफ से एक एडवाइजरी जारी होती है की क्षेत्र में डकैती की वारदात बढ़ गई है. जितने भी डकैत हैं उनके पास जो असलहे हैं वह भी काफी हाईटेक हैं और एक डकैत के लिए कम से कम 10 पुलिस वालों का होना नितांत आवश्यक है. इसी क्रम में एक दिन मुखबीर से सूचना मिलती है कि पान सिंह तोमर अपने गुट के साथ एक गांव में आया हुआ है. उस इलाके के एसएसपी रमन सिंह तुरंत हरकत में आते हैं और कहते हैं कि आज किसी भी तरीके से करके पान सिंह तोमर को जिंदा या फिर मुर्गा पकड़ना है. एसएसपी रमन सिंह अपनी टीम लेकर उस गांव में पहुंच जाते हैं और पूरी तरीके से गांव की नाकाबंदी कर लेते हैं. धीरे-धीरे दिन ढलने लगता है सूर्यास्त का समय आ जाता है. इसी बीच पान सिंह तोमर की एक गुट का सदस्य पुलिस के हत्थे चढ़ता है. वह पुलिस को चैलेंज देते हुए कहता है कि मुझे पकड़कर क्या होगा। पान सिंह तोमर तुम्हारे पीछे वाले घर में छुपा हुआ है. जाकर पकड़ो पान सिंह तोमर को. क्योंकि वह इलाका काफी उबड़ खाबड़ था और गांव में जो घर थे वह भी बिल्कुल आसपास सटे हुए थे और गांव की जो जनसंख्या थी, पापुलेशन थी वह भी काफी घनी थी. पुलिस पुख्ता हो जाती है कि पान सिंह तोमर इसी घर में छुपा हुआ है और पुलिस इंतजार करती है कि कब रात हो और हम पान सिंह तोमर को जिंदा या फिर मुर्दा पकड़ सके. पान सिंह तोमर को कुछ शक होता है और वह ताबड़तोड़ गोलियां चलाना शुरू कर देता है. इधर से पुलिस भी अपने बचाव में गोली चलाना शुरु करती है और पुलिस आपस में एक निर्णय लेती है कि उधर से जब गोलियां चलनी बंद होंगी और रात गुजरने वाली होंगी तब हम पान सिंह तोमर के ऊपर अटैक करेंगे। धीरे-धीरे रात का समय होता है और पुलिस फायरिंग की रफ्तार बढ़ा देती है और फिर उसी फायरिंग में पान सिंह तोमर मारा जाता है. जब सूर्योदय होता है तो  देखा जाता है कि पान सिंह तोमर तमाम लाशों के ढेर के बीच में बेसुध पड़ा हुआ है. पान सिंह तोमर की पहचान रहती है कि पान सिंह तोमर वही होगा जो अपनी गैंग में सबसे लंबा होगा। इस तरह चम्बल के एक डाकू को पुलिस मार गिराती है.