देश की पहली महिला जासूस जिसने नेता जी की जान बचाने के लिए कर दी अंग्रेजी अफसर पति की हत्या

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आजादी की गौरव गाथा अनेक गुमनाम चेहरों से भरी पड़ी है. जिन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया, बलिदान कर दिया. जिसके बदले में आजादी के बाद उनको गुमनामी का जीवन जीना पड़ा. एक ऐसी वीरांगना जोकि आजाद हिंद फौज के सिपाही जिनका नाम नीरा आर्या था. जिन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर गोली चलाने वाले अपने अफसर पति की खंजर घोप कर हत्या कर दी थी. जिसके बाद उनको काला पानी की सजा होती है. तमाम यातनाओं को झेलने के बाद आजादी के बाद उनको जेल से रिहाई मिलती है, लेकिन अफसोस रिहाई के बाद सरकार उनकी सुध नहीं लेती और उनको गुमनाम जिंदगी जीनी पड़ती है. कहा जाता है कि नीरा आर्या देश की पहली महिला जासूस थी. जिन्होंने देश की आजादी में अपना बहुमूल्य योगदान दिया. जिसको भुलाया नहीं जा सकता.

जेलर के आदेश पर काट दिया, स्तन

काला पानी की जेल में एक बार कड़ी प्रताड़ना के दरमियान नेताजी के बारे में जानकारी मांगने पर नीरा आर्या ने जेलर के मुंह पर थूक दिया था. जिसपर जेलर गुस्से में नीरा के स्तनों को लोहे के औजारों से खिंचवा कर घोर यातना दी थी. उनके स्तन लहूलुहान हो गए, लेकिन उन्होंने नेता जी के बारे में कोई भी सूचना नहीं दी.

नेता जी ने दिया था, मीरा नागिनी नाम

मीरा नीरा को नीरा नागिनी के नाम से भी जाना जाता है. नेताजी को बचाने में विधवा होना स्वीकार करने वाली नीरा आर्या को यह नाम नेताजी ने जांबाज तेज तर्रार सेनानी के रूप में दिया था. नीरा नागिनी के नाम से उनके जीवन पर एक महाकाव्य भी है. मीरा पर एक निर्देशक ने फिल्म बनाने की तैयारी भी की. इसमें ऐश्वर्या राय नीरा की भूमिका में नजर आएंगी.

देश की पहली महिला जासूस का मिला खिताब

नीरा आर्य को आजाद हिंद फौज की प्रथम जासूस होने का गौरव प्राप्त है. नीरा को यह जिम्मेदारी स्वयं नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने दी थी. इन्होंने नेताजी के लिए अंग्रेजों की जासूसी की थी. वेश बदलकर अंग्रेजी अफसरों के यहां सफाई का काम करती और जानकारी हासिल करती जिसके उन सूचनाओं को नेताजी तक पहुंचाती.

जीवन के अंतिम दिन रहे दुखदाई

साहित्यकार तेजपाल आर्य की पुस्तक में मिले वृतांत के मुताबिक नीरा जीवन के अंतिम दिनों में सड़क किनारे फूल बेचकर गुजारा किया था. हैदराबाद में झोपड़ी में रह रही थी. अंतिम समय में इनकी झोपड़ी को भी तोड़ दिया था. क्योंकि वह सरकारी जमीन में बनी हुई थी. वृद्ध आश्रम में बीमारी की हालत में चारमीनार के पास उस्मानिया अस्पताल में उन्होंने 26 जुलाई सन 1998 में गरीब असहाय निराश्रित बीमार वृद्ध के रूप में मौत का आलिंगन कर लिया. एक स्थानीय अखबार के रिपोर्टर ने अपने साथियों से मिलकर उनका अंतिम संस्कार किया था.