साइबर बुलिंग रोकने के लिए आईआईटी बीएचयू ने खोजा प्रभावी समाधान
—सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अभद्र टिप्पणी को हटाने के लिए तकनीक
वाराणसी,01 अक्टूबर (हि.स.)। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म से साइबर बुलिंग (अभद्र साम्रगी) हटाने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) के कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग के शोध छात्रों ने तकनीक खोज लिया है। युवा शोधकर्ताओं ने एआई प़द्धति से सोशल मीडिया प्लेटफार्म की अभद्र सामग्री हटा देने की बात कही है। इस एआई सॉफ्टवेयर तकनीक से भारत की अलग अलग भाषाओं में होने वाली साइबर बुलिंग पर लगाम लगाई जा सकेगी। बताया गया कि ये तकनीक डिजिटल और सोशल मीडिया पर अपमानजनक शब्दों को भी ट्रेस करेगा। मंगलवार को ये जानकारी कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ रविंद्रनाथ चौधरी सी. ने दी।
उन्होंने बताया कि भारत, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी डिजिटल आबादी का घर है। और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स आदि पर देश की जनता अब काफी सक्रिय रहती है। ये प्लेटफॉर्म्स हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं, लेकिन इसके साथ ही ये उपयोगकर्ताओं को साइबर बुलिंग (अभद्र साम्रगी) के प्रति भी संवेदनशील बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि हालांकि अंग्रेजी जैसी उच्च संसाधन वाली भाषाओं में साइबर बुलिंग से निपटने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं, लेकिन मिश्रित-भाषा संदर्भों पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। उनके मार्गदर्शन में विभाग के शोध छात्र पारस तिवारी के शोध ने देवनागरी-रोमन मिश्रित टेक्स्ट की जटिलताओं का गहन विश्लेषण किया और 20.38 प्रतिशत प्रासंगिकता स्कोर के साथ कोड-मिश्रित अपमानजनक टेक्स्ट उदाहरणों को एकत्र और एनोटेट करने के लिए एक किफायती पद्धति प्रस्तावित की है। इस अध्ययन से उत्पन्न डेटासेट मौजूदा अत्याधुनिक डेटासेट्स की तुलना में आठ गुना बड़ा है। इसके अतिरिक्त, उनके काम ने पारंपरिक मशीन लर्निंग तकनीकों और उन्नत प्री-ट्रेंड बड़े भाषा मॉडलों का उपयोग करके प्रभावी समाधान प्रस्तुत किए हैं। इस अंतर को पहचानते हुए, इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे भारत में विविध उपयोगकर्ता आधार के लिए एसएमपी को अधिक सुरक्षित बनाया जा सके।
उन्होंने बताया कि यह नवाचारपूर्ण शोध भारत की विशाल और विविध डिजिटल समुदाय के लिए साइबर बुलिंग से निपटने के लिए अधिक सटीक और समर्पित समाधान विकसित करने की नींव प्रदान करता है। यह शोध बहुप्रतिष्ठित रिसर्च जर्नल स्प्रिंगर लिंक के लैग्वेंज रिसोर्स एंड इवाल्युवेशन में जनवरी 2024 में प्रकाशित हो चुका है। संस्थान के निदेशक प्रोफेसर अमित पात्रा ने इस नए शोध के लिए डॉ रविंद्र चौधरी सी. और उनकी टीम को बधाई दी है।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी