आयुर्वेद बनाम एलोपैथ

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देश में एक नए तरह का युद्ध चल रहा है. एलोपैथ और आयुर्वेद गुत्थमगुत्था हुए पड़े है. तू तू मैं मैं चरम पे है. पीछे हटने को कोई तैयार नहीं है. बाबा रामदेव न जाने कौन सा योगासन कर बैठे हैं कि रोज एलोपैथ को छेड़ देते हैं. पिछले दिनों ज्यादा जोश में आ गए तो एलोपैथ को 'दिवालिया विज्ञान' कह बैठे. बस इलाज का ठेका लिए हमारी डॉक्टर बिरादरी के स्वाभिमान को करारी ठेस लग गई. तलवारें मायनों से बाहर निकल आयीं. उधर से पूरी बिरादरी और इधर से अकेले बाबा जी. न्यूज़ चैनल वाले तुरन्त लपके. स्टूडियो में गर्मागर्म बहसें हुईं. डॉक्टर बाबा को खूब सुनाये. लेकिन बाबा जी कोई कच्चे खिलाड़ी थोड़े हैं. वो भी चैलेंज कर दिए. बात डॉक्टरों की संस्था तक पहुंची तो मानहानि का दावा ठोंक दिए. बाबा जी बोले कि किसी के बाप में दम नहीं कि उन्हें गिरफ्तार कर सके. उनके कहने को लोग गलत समझ ले गए. उनके कहने का तात्पर्य अवश्य ये रहा होगा कि उन्हें वही गिरफ्तार करे जो अभी तक अविवाहित हो या अगर शादीशुदा हो भी तो बाप न बना हो. इधर बाबा के समर्थन में जनता भी खड़ी हो गई. बोली डॉक्टर तो खुद ही कंफ्यूज हैं. अंदाजे से इलाज कर रहे हैं. सारे एक्सपेरिमेंट इस कोरोना काल में हम पर कर डाले. इन्ही की बदौलत रेमेडीसीवीर जैसा कुछ सौ में मिलने वाला इंजेक्शन तीस तीस हजार तक का बिका. बाद में बोल दिए कि बेकार है. इससे कोई फायदा नहीं. पहली कोरोना लहर से चली आ रही प्लाज्मा थेरेपी भी अब इनके मुताबिक समय की बर्बादी है. पहले बताए कपड़े का मास्क सबसे अच्छा है. अब कह रहे हैं इससे फंगस का खतरा है. बाबा की कॉरोनिल पे सवाल दागने वाले ये डॉक्टर खुद कोई दवा क्यों नहीं बना पाए. आयुर्वेद को थोड़ी तवज्जो मिलते ही न जाने इन डॉक्टरों को मिर्ची क्यों लग जाती है. देखा जाये तो चिकित्सा की हर पैथी का उद्देश्य मानव को स्वस्थ रखना ही है. फिर ये सारी पैथियां और उससे जुड़े लोग मिलकर काम क्यों नहीं कर सकते. आखिर क्यों इन लोगों को अपनी दुकानें बन्द होने का डर सताने लगता है. बाबा जी ने तो वैसे भी अच्छे अच्छों की बजा रखी है. विदेशी कंपनियां नाम भर से काँप रही हैं. सिंहासन डोल रहे हैं. लेकिन बाबा जी भी कभी कभी ज्यादा जोश में आ जाते हैं. एकदम ताल ठोंक देते हैं. अरे बाबा जी सम्बन्ध बना के रखिये. भगवान न करे कहीं आप खुद या आपके परम् शिष्य बीमार पड़ गए तो इलाज यही एलोपैथ वाले ही करेंगे. यकीन न हो तो इतिहास देख लीजिए. समस्या ये है कि बाबा जी लट्ठ लेके पूरी डॉक्टर बिरादरी के पीछे ही पड़ गए है. पूरे कोरोना काल में यही डॉक्टर तो हैं जो खुद की और अपने परिवार की चिंता किये बगैर हमारे जीवन की डोर थामे रहे. इनके होते इतना कुछ हो गया न होते तो क्या कुछ होता. इतिहास गवाह है कि लड़ाई, झगड़े, वाद, विवाद से कभी समाधान नहीं निकले. इसलिए जनता का हित इसी में है कि सब आपस में मिलकर काम करें. वरना बाबा जी मानेंगे नहीं और डॉक्टर जानेंगे नहीं. यह एक  व्यंग्य लेख है. इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति, पद, संस्था या स्थान की छवि खराब करना नहीं है. न ही इसका कोई राजनीतिक मन्तव्य है.