लखनऊ में कोरोना कर्फ्यू और अय्याशी
May 19, 2021, 15:55 IST
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कोरोना कर्फ्यू और अय्याशी, भैया अब जिंदगी का कउनो ठिकाना नहीं रहा. पता चला कि रात में ठीक ठाक सोये और सुबह उठने से पहिले ही उठ लिए. क्या पता कोरोना कब किसका टिकट काट दे. अईसे में ये जरूरी हो जाता है कि जितनी जल्दी हो सके जिंदगी के सारे मजे लूट लिए जाएँ. जो ऐसे में भी चूक गया उसकी मदद फिर भगवान भी नहीं कर सकता. अपनी राजधानी लखनऊ के कुछ युवा बहुत ज्ञानी निकले. इससे पहिले की जीवन में कुछ देखने भोगने से वंचित रह जाएं बाकायदा मऊज मस्ती का पूरा प्रबन्ध कर लिए. इसके लिए शहर के सबसे पॉश एरिया हजरतगंज के एक बड़े रेस्टोरेंट ने विशेष इंतजाम किये. आधी रात अय्याशी का जो दौर यहां शुरू होता था वो तड़के तक बेरोकटोक धड़ल्ले से चलता था. भले यहां का आदमी बेड, ऑक्सीजन, दवा के लिए लुटा पिटा जा रहा हो लेकिन यहां हुक्का, चिलम, फ्लेवर सब चुटकियों में उपलब्ध है. ऐसा नहीं है कि कोरोना कर्फ्यू यहां नहीं लगा है. लेकिन भैया ये तो सड़क पे, ठेले पे और छोटे मोटे दुकानदारों के लिए होता है. मजाल है कि कर्फ्यू के दौरान कउनो दुकान खोल ले. इनके दुकान खोलते ही कोरोना चढ़ बईठता है. लट्ठ चटकती है सो अलग. ये तो शहर के बड़े बड़े रसूखदारों की औलादें थीं जो प्रशासन की नजरें नहीं जा पाईं वर्ना अब तक तो पिछवाड़े सुजा दिए गए होते. ये तो गनीमत है कि रेस्टोरेंट राजभवन के ठीक सामने है कहीं और होता तो कब का पकड़ लिए होते. वैसे ये वो इलाका है जहाँ पुलिस चौबीसों घण्टे गश्त करती है. ऐसे में इस रेस्टोरेंट का चलते रहना और सड़कों पे ढेरों लक्ज़री गाड़ियाँ खड़ी रहना गश्त पे बड़ा सा सवालिया निशान तो खड़े करता है. हो सकता है इनकी आँखों को इतनी लग्जरी गाड़ियों की आदत न हो सो देख के भी नजर नहीं आयीं. वो तो हजरतगंज थाने की मुस्तैदी रही कि सूचना मिलते ही एकदम फ़िल्मी स्टाइल में चल रहे रेस्टोरेंट को उससे भी ज्यादा फ़िल्मी स्टाइल में धर दबोचे. तमाम रईसजादे वहां हुक्का पीते नशे में धुत पकड़े गए. लेकिन जैसा कि अईसे छापों में अक्सर होता है तो भैया रेस्टोरेंट संचालक भाग निकला. अभी अभी तो सरकार ने शराब की दुकानें खुद ही खुलवाई हैं. अब जब आदमी बेचारा उसको पी के इकोनॉमी मजबूत करने का प्रयास कर रहा है तो पुलिस अड़ंगे डाल रही है. वहां जमा अमीर बाप की बिगड़ी औलादें मिलकर इसी दिशा में एक छोटा सा प्रयास कर रही थीं. लेकिन अईसे कईसे चल पाएगा. सरकार और पुलिस में ही सामंजस्य की कमी साफ़ झलक रही है. युवाओं को डिमोरलाइज किया जा रहा है. ऐसे ही चलता रहा तो भविष्य में देश के लिए कोई आगे आने से पहले हजार बार सोचेगा. जब ये हाल राजभवन के सामने का है तो बाकी शहर का हाल कितना बेहाल होगा. यहां तो फिर भी अय्याशी रात में चल रही थी. अब पुलिस ने इनको पकड़ के काम तो पीठ ठोंकने वाला कर दिया है लेकिन मजा तो तब है जब इनको सजा भी कुछ ऐसी मिले कि कम से कम हुक्के का नशा तो उतरे. यह एक व्यंग्य लेख है. इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति, पद, संस्था या स्थान की छवि खराब करना नहीं है. न ही इसका कोई राजनीतिक मन्तव्य है.