झारखंड में चाय आजमा रहे हैं, कांग्रेसी
झारखंड में चाय आजमा रहे हैं कांग्रेसी, जब से मोदी सरकार सत्ता में आयी है चाय का एकदम अलगै भोकाल है. सीधे मुँह बात नहीं कर रही. अच्छा पहले चाय कॉफ़ी के आगे खुद को कमजोर समझा करती थी. मतलब एक अलग ही किस्म की हीन भावना चढ़ गई थी चाय में. लेकिन अब सब चकाचक है. गली, नुक्कड़, चौराहों पे लोग चाय पे चर्चा में जुटे हैं.
सत्ता पक्ष हो या विपक्ष सब की फ़ेवरिट यही है. अब अपने झारखंड के जामताड़ा विधायक इरफ़ान अंसारी साहब को ही ले लीजिए. चाय बनाने और पिलाने का ऐसा शौक चर्राया कि सीधे चाय के ठेले पे जा पहुँचे. बस चाय चढ़ा दिए. अदरक, लौंग, इलायची, तुलसी सब मिला के जबर्दस्त वाली कड़क चाय तैयार कर दिए.
अब कांग्रेसी विधायक महोदय सोच रहे होंगे कि चाय बनाते पिलाते शायद उनके दिन भी मोदी जी की तरह बदल जायें. वैसे जितनी चाय ये बनाये हैं वो दुई चार लोगों के गले तक पहुँच जाये तो ऊपर वाले का आशीर्वाद समझो बाकी जिस हिसाब से लोग घेरे खड़े हैं उनके हाथ चाय का च भी नहीं आना.
वैसे चाय पिला के दिल जीतने का आईडिया बुरा नहीं है. अब कांग्रेस वाले सब तो आजमा के देख लिए. लगे हाथ ये चाय भी आजमाने में क्या हर्ज है. अंसारी साहब के चाय बनाने का अंदाज बता रहा है कि वो इस कला में खासे निपुण हैं. हर किसी के बस की बात थोड़े है. कायदे से तो इनको अपने कार्यकर्ताओं की ट्रेनिंग लेनी चाहिए.
ये सुझाव अपने राहुल भैया तक जितनी जल्दी पहुँचे उतना अच्छा. लेकिन इसमें खतरा भी बहुत है. काहो सबसे पहले खुद ही बनाने में जुट जाएं. उनकी मनोकामनाएं भी तो कम नहीं हैं.
बाकी भैया चाय तो वो सीढ़ी है जो आम आदमी को मुख्यमंत्री तो मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री तक पहुंचा देती है. लेकिन चाय पे किसी का कॉपीराइट तो है नहीं. चाहे जो बनाये चाहे जो पिलाए और वैसे भी चाय का कोई नुकसान भी नहीं बल्कि पीने पिलाने से तो प्यार ही फैलता है.
यह एक व्यंग्य लेख है. इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति, पद, संस्था या स्थान की छवि खराब करना नहीं है. न ही इसका कोई राजनीतिक मन्तव्य है.