अपराध की दुनिया का नाबालिग गैंगस्टर: दुर्लभ कश्यप

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आंखों में सुरमा, माथे पर लाल टीका और कंधे पर काला गमछा जिस गैंग की पहचान थी. जो गैंग सोशल मीडिया पर बकायदा किसी की भी हत्या, फिरौती रंगदारी या फिर अन्य संगीन अपराध के लिए विज्ञापन निकालता था. जरायम की दुनिया का वह नाबालिग गैंगस्टर देखते ही देखते उज्जैन ही नहीं बल्कि पूरे एमपी में उसके नाम की दहशत इस कदर फैला कि आज उसके ना रहने के बाद भी उसका गैंग पूरे एमपी में फल-फूल रहा है और अपराध के गहरी पठकथा को लिख रहा है. जी हाँ हम बात कर रहे उज्जैन के नाबालिक गैंगस्टर दुर्लभ कश्यप की. उम्र महज 19 साल लेकिन कारनामे इतने बड़े कि बड़े-बड़े माफिया भी इस युवा गैंगस्टर के सामने पानी भरते नजर आए. कालेज के दिनों से ही दुर्लभ बड़े-बड़े झगड़ो का निपटारे खुद करता था. वह ट्वेल्थ में पढ़ता और ग्रेजुएशन तक के बच्चों की लड़ाई के सेटलमेंट और सुलह कराता था. दुर्लभ कश्यप की गैंग की एक और खासियत रहती है कि यह गैंग सप्ताह में किसी एक दिन एक जगह इकट्ठा होता है और फिर बकायदा सेल्फी खींच कर या फिर फोटोशूट कराकर उसको सोशल मीडिया पर पोस्ट करता है. शायद किशोरों को आकर्षित करने का इसका यह तरीका रहा हो और किशोरावस्था एक ऐसी उम्र होती है जब हम चकाचौंध और अपराध के प्रति आकर्षित होते हैं. वैसे तो इस गैंग के लोग तमाम तरीके के नशे करते रहते हैं लेकिन जब भी किसी भी वारदात को अंजाम देने जाते हैं तो इस गैंग का एक वसूल रहता है कि हम बिना किसी नशे के यानी कि बिना नशा किए हुए हम किसी भी वारदात को अंजाम देंगे. 12वीं पास करने के बाद कॉलेज की तरफ रुख करने की बजाय दुर्लभ ने जरायम की दुनिया में अपना कदम रखा. दुर्लभ नाबालिगों और किशोरों के बीच इस कदर पॉपुलर हुआ कि देखते ही देखते एमपी, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के युवाओं की भीड़ इसके साथ खड़ी हो गई. जिनके दम पर इसने गैंग बना लिया और फिर संगीन अपराधों को अंजाम देने लगा. ऐसा बिल्कुल भी नहीं था कि दुर्लभ कश्यप गरीब परिवार से रहा हो या फिर आर्थिक तंगी से जरायम की दुनिया में कदम रखा हो. माता सरकारी अध्यापिका और पिता एक बड़े व्यवसायी की इकलौती संतान दुर्लभ कश्यप बुरी परवरिश और गंदी संगत की वजह से अपराधी बन बैठा. कहा जाता है कि जब पहली बार इसने सोशल मीडिया के फेसबुक प्लेटफार्म पर अपराध के लिए विज्ञापन निकाला था, उस समय उज्जैन के SSP सचिन अतुलकर इसको इसके 23 अन्य साथियों के साथ गिरफ्तार कर हवालात में डालते है. एक बार जेल में सचिन अतुलकर इससे मिलने जाते हैं और कहते हैं कि जेल ही तुम्हारे लिए महफूज जगह है. नहीं तो तुम कभी भी मारे जा सकते हो, क्योंकि तुम कम उम्र में बड़े-बड़े अपराधियों से पंगा ले बैठे हो. दुर्लभ जेल में बैठकर भी अपने गैंग को सर्कुलेट करता रहता है. इसी बीच कोरोना आ जाता और कोरोना के दरमियान देश में ऐसे बहुत से कैदियों को रिहाई  दे दी जाती जिनके अपराध बेहद संगीन नहीं थे. कोरोना की वजह से दुर्लभ कश्यप को भी जेल से रिहाई दे दी जाती. जेल से रिहाई मिलने के बाद दुर्लभ कुछ दिन भोपाल रहता है और फिर उसके बाद अपनी मां के पास उज्जैन चला आता. कोरोना की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ था, लेकिन फिर भी दुर्लभ तमाम संगीन अपराधों को अंजाम देकर मोटी रकम और रंगदारी वसूल करता रहता है. अपनी मां के पास उज्जैन ही रहता है शहर में लॉकडाउन लगा रहता है. इसी बीच एक दिन यह बाटी-दाल पर अपने चार दोस्तों को दावत पर बुलाता है. दावत होने के बाद यह अपने दोस्तों के साथ रात्रि करीब 2:00 बजे सुट्टा और चाय पीने निकल जाता है. घर से थोड़ी दूर जाने के बाद ही एक सुट्टा की दुकान खुली रहती है या फिर चाय की टपरी खुली रहती है. जहां पर ये सभी सुट्टा और चाय पीने लगते हैं. इसी बीच वहां पर शाहनवाज गैंग आ जाता है. शाहनवाज गैंग का दुर्लभ कश्यप के साथ वर्चस्व का जंग हमेशा से चलता रहता है. किसी बात को लेकर दोनों के बीच आपसी कहासुनी होती है और फिर शाहनवाज गैंग इसके ऊपर टूट पड़ता है. जिसके बाद दुर्लभ कश्यप पिस्टल निकालकर शाहनवाज के ऊपर फायर कर देता है, जो गोली शाहनवाज के कंधे पर जाकर लगती है. जिसके बाद शाहनवाज गैंग दुर्लभ को बेरहमी के साथ चाकू से गोदकर मौत के घाट उतार देता है. दुर्लभ की हत्या के 7 महीने बाद अध्यापिका माँ बेटे के जाने के गम में इस संसार को अलविदा कह देती. दुर्लभ कश्यप की मौत के बाद जब पिता से दुर्लभ की मौत को लेकर इंटरव्यू लिया जाता है तो दुर्लभ के पिता बेहद ही भावुक अंदाज में एक मार्मिक स्वर निकालते हुए कहते हैं कि मैं बस यही कहूंगा कि माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश अच्छे से करें और मैं युवाओं और किशोरों से यह कहना चाहूंगा कि कभी भी कोई दुर्लभ मत बनना. एक पिता के मार्मिक शब्दों को लिख पाना बेहद आसान नहीं और उनके दर्द का अंदाजा लगा पाना बेहद ही मुश्किल.