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बंगाल में धार्मिक ध्रुवीकरण गहराया, बांग्लादेश के हिंदुओं के लिए भाजपा तो वक्फ बोर्ड के लिए तृणमूल का कार्यक्रम

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कोलकाता, 30 नवंबर (हि.स.) ।

पश्चिम बंगाल की राजनीति में धार्मिक ध्रुवीकरण की प्रवृत्ति दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। पिछले कुछ दिनों में विपक्षी भाजपा और सत्तारूढ तृणमूल कांग्रेस के आयोजनों से यह स्थिति और स्पष्ट हो गई है। गुरुवार को भाजपा ने बांग्लादेश में इस्कॉन के सन्यासी की गिरफ्तारी के विरोध में कोलकाता में प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में ‘हिंदू संहति मंच’ ने भी भाग लिया, जो कुछ स्थानों पर उग्र हो गया। दूसरी ओर तृणमूल ने शनिवार को रानी रासमणि रोड पर अल्पसंख्यकों के समर्थन में बड़ी रैली आयोजित की।

तृणमूल की रैली केंद्र सरकार के वक्फ संशोधन विधेयक के विरोध में आयोजित की गई थी। तृणमूल ने इस विधेयक को धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यक अधिकारों के खिलाफ बताते हुए इसकी तीखी आलोचना की। पार्टी के वरिष्ठ नेता कल्याण बनर्जी और मंत्री फिरहाद हाकिम ने इस रैली में संविधान की रक्षा का आह्वान करते हुए कहा कि देश के बहुसंख्यकों की यह जिम्मेदारी है कि वे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करें। तृणमूल ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही घटनाओं की निंदा करते हुए इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भारत सरकार जो रुख अपनाएगी, वही तृणमूल का भी रुख होगा।

वक्फ संशोधन विधेयक पर तृणमूल की आपत्तियों के पीछे तीन मुख्य कारण हैं। पहला, विधेयक में मौखिक रूप से वक्फ की संपत्तियों को अधिग्रहित करने की बात कही गई है, जिसे तृणमूल ने अनुचित बताया है। दूसरा, वक्फ संपत्तियों के दानकर्ताओं के धार्मिक आचरण की जांच की बात है, जिसे पार्टी ने धार्मिक स्वतंत्रता पर चोट करार दिया। तीसरा, वक्फ संपत्तियों की देखरेख का जिम्मा जिलाधिकारियों को सौंपना प्रशासनिक हस्तक्षेप के रूप में देखा जा रहा है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनावों से ही धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति ने जड़ें जमाई हैं। भाजपा ने हिंदू वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति अपनाई है, जबकि तृणमूल कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों का समर्थन बनाए रखा है। 2021 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनावों में भी यह प्रवृत्ति जारी रही।

भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने हाल ही में तृणमूल के उन नेताओं की चुप्पी पर सवाल उठाए थे जो तृणमूल की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की नीतियों से इत्तेफाक नहीं रखते। दूसरी ओर तृणमूल भाजपा पर विभाजनकारी राजनीति करने का आरोप लगाती रही है।

तृणमूल ने निचले स्तर पर एक ऐसा आर्थिक ढांचा खड़ा किया है, जहां धर्म से अधिक रोज़गार और आजीविका प्राथमिकता बन गई है। इससे भाजपा के लिए सभी हिंदू वोट अपने पक्ष में करना आसान नहीं हो रहा है।

वामपंथी और कांग्रेस रोटी-रोज़ी जैसे मुद्दों को उठाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन चुनाव परिणाम बताते हैं कि जनता ने अब तक इन्हें खास तवज्जो नहीं दी है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि बंगाल की राजनीति फिलहाल धार्मिक ध्रुवीकरण के चक्रव्यूह में फंसी हुई है। जब तक राजनीतिक परिदृश्य में कोई बड़ा बदलाव नहीं होता, स्थिति में बदलाव की उम्मीद बेहद कम है।

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर