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डीएसबी परिसर नैनीताल में मृदा रहित खेती की हाइड्रोपोनिक्स और मत्स्य पालन की बायो फ्लॉक तकनीकों का ऑनलाइन लोकार्पण

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डीएसबी परिसर नैनीताल में मृदा रहित खेती की हाइड्रोपोनिक्स और मत्स्य पालन की बायो फ्लॉक तकनीकों का ऑनलाइन लोकार्पण


नैनीताल, 5 नवंबर (हि.स.)। कुमाऊँ विश्वविद्यालय के डीएसबी परिसर में बुधवार को उत्तराखंड के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने रुसा परियोजना के अंतर्गत कौशल संवर्धन पाठ्यक्रम के तहत हाइड्रोपोनिक्स और बायो फ्लॉक तकनीकों का ऑनलाइन लोकार्पण किया।

मंत्री रावत ने कहा कि ये तकनीकें राज्य में कृषि और मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में मील का पत्थर सिद्ध होंगी तथा युवाओं को आधुनिक तकनीक से आत्मनिर्भर बनाने में सहायक साबित होंगी। यह भी कहा कि हाइड्रोपोनिक्स और बायो फ्लॉक तकनीक आत्मनिर्भर भारत की दिशा में ठोस कदम हैं, जो पर्वतीय राज्यों के लिए नई संभावनाएँ लेकर आएंगी।

कुलपति प्रो. दीवान सिंह रावत ने बताया कि डीएसबी परिसर के वनस्पति विज्ञान विभाग में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से मृदा रहित खेती एवं जंतु विज्ञान विभाग में छोटे तालाब में बायो फ्लॉक तकनीक से मत्स्य पालन की प्रयोगशालाओं की स्थापना रुसा एवं मेरु परियोजना के अंतर्गत की गई है।

बताया कि डीएसबी परिसर में स्नो ट्राउट जैसी दुर्लभ प्रजाति की मछली के संरक्षण हेतु भी इस विधि का उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने बायो फ्लॉक को आजीविका संवर्धन की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी बताया। कुलसचिव डॉ. मंगल सिंह मंद्रवाल ने कार्यक्रम में सम्मिलित सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया, जबकि संचालन वनस्पति विभागाध्यक्ष प्रो. ललित तिवारी ने किया।

कार्यक्रम में प्रो. हरीश बिष्ट, प्रो. सुची बिष्ट व प्रो. सुषमा टम्टा ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम में परिसर निदेशक प्रो. नीता बोरा शर्मा, डॉ. एसएस बर्गली, डॉ. किरण बर्गली, डॉ. नीलू लाेिधयाल, डॉ. महेंद्र राणा, संजय पंत, विशाल बिष्ट, लता और दीपशिखा ओली सहित अनेक शिक्षाविद उपस्थित रहे।

यह होती हैं हाइड्रोपोनिक्स और बायो फ्लॉक तकनीकें

बताया गया कि हाइड्रोपोनिक्स ऐसी मृदा रहित कृषि की तकनीक है जिसमें मिट्टी के स्थान पर पोषक तत्वों से युक्त जल का उपयोग कर पौधे उगाए जाते हैं। यह तकनीक शहरी क्षेत्रों या सीमित भूमि वाले स्थानों में अत्यंत उपयोगी है क्योंकि इसमें कम पानी, अधिक उत्पादन और कम कीटनाशकों की आवश्यकता होती है। वहीं, बायो फ्लॉक तकनीक में सूक्ष्म जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से नाइट्रोजन जैसे विषाक्त घटकों का उपचार कर उन्हें प्रोटीन जैसे उपयोगी उत्पाद में परिवर्तित किया जाता है, जो मछलियों के पूरक आहार के रूप में प्रयुक्त होता है।

इस विधि में छोटे जलाशयों में ही मछली उत्पादन संभव है तथा एक वर्ष की जगह आठ माह में ही एक किलोग्राम वजन की मछली तैयार की जा सकती है।

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी