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संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में कर्मकाण्डीय अनुशासन का अभ्यास शुरू

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संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में कर्मकाण्डीय अनुशासन का अभ्यास शुरू


—स्मार्तमण्डपस्थापनम् प्रमाणपत्रीय पाठ्यक्रम में प्रायोगिक प्रशिक्षण, वेदी-विन्यास, यज्ञशाला-रचना की दी जा रही जानकारी

वाराणसी, 14 दिसम्बर (हि.स.)। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर में 'स्मार्तमण्डपस्थापनम्' विषयक प्रमाणपत्रीय पाठ्यक्रम के अंतर्गत विद्यार्थियों को रविवार से कर्मकाण्डीय अनुशासन का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम विश्वविद्यालय के वेद विभाग की श्रौत-स्मार्त मण्डप यज्ञशाला में चल रहा है।

प्रशिक्षण सत्र में आचार्य डॉ. विजय कुमार शर्मा तथा सहयोगी आचार्य डॉ. आशीष मणि त्रिपाठी ने विद्यार्थियों को वेदी-विन्यास, यज्ञशाला की संरचना, मण्डपस्थापन, पूजन-विधान एवं कर्मकाण्डीय उपकरणों की समुचित व्यवस्था का प्रत्यक्ष अभ्यास कराया। आचार्यों द्वारा शास्त्रसम्मत विधानों के साथ व्यवहारोपयोगी प्रशिक्षण पर विशेष बल दिया गया।

पाठ्यक्रम के संचालक एवं केन्द्र के प्रधान गवेषक डॉ.ज्ञानेन्द्र सापकोटा ने बताया कि संस्कृत परम्परा तथा वैदिक-स्मार्त विधानों के संरक्षण और व्यावहारिक प्रशिक्षण के उद्देश्य से यह प्रमाणपत्रीय पाठ्यक्रम अक्टूबर माह से संचालित किया जा रहा है। इसमें 80 छात्र-छात्राएं पंजीकृत हैं। पाठ्यक्रम के अंतर्गत दो दिवसीय प्रायोगिक प्रशिक्षण सत्र की शुरुआत शनिवार से की गई है।

उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण के दौरान विद्यार्थियों को मण्डपस्थापन,वेदी-विन्यास, दिशानिर्धारण, आयाम-निर्धारण, पूजन सामग्री की व्यवस्था तथा कर्मकाण्डीय अनुशासन से संबंधित विषयों का प्रत्यक्ष अभ्यास कराया जा रहा है। यह पाठ्यक्रम पूर्णतः प्रायोगिक उन्मुख है, जिसमें सैद्धान्तिक अध्ययन के साथ-साथ व्यावहारिक प्रशिक्षण को समान महत्व दिया गया है। पाठ्यक्रम की संरचना सघन एवं अनुशासित है, जिसके अंतर्गत कुल 45 घंटे की सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक कक्षाएं आयोजित की जाएंगी। प्रशिक्षण प्रातः एवं सायं सत्रों में संचालित किया जा रहा है, ताकि विद्यार्थियों को गहन एवं व्यापक ज्ञान प्राप्त हो सके।

वेद विभाग के आचार्य प्रो. महेन्द्रनाथ पाण्डेय ने कहा कि वर्तमान समय में स्मार्त परम्परा से जुड़े प्रशिक्षित एवं प्रमाणिक कर्मकाण्डियों की आवश्यकता निरंतर बढ़ रही है। यह पाठ्यक्रम न केवल परम्परागत ज्ञान के संरक्षण में सहायक होगा, बल्कि युवाओं के लिए आजीविका एवं सेवा के नए अवसर भी सृजित करेगा।

हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी