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आस्था और संस्कृति का संगम: मौनीबाबा धाम मेले के पहले दिन उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब

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आस्था और संस्कृति का संगम: मौनीबाबा धाम मेले के पहले दिन उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब


बांदा, 15 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के जनपद बांदा में सिमौनी स्थित मौनीबाबा धाम में मेले व भंडारे के पहले दिन आस्था और व्यवस्था का भव्य संगम देखने को मिला। सुबह साधु-संतों को प्रसाद ग्रहण कराने के बाद 11 काउंटरों पर श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया गया। प्रत्येक काउंटर पर महिला-पुरुष श्रमदानी कार्यकर्ताओं की तैनाती रही, जबकि प्रशासनिक व वीआईपी पंडालों में भी सुव्यवस्थित रूप से प्रसाद कराया गया। पूरे दिन धाम परिसर श्रद्धालुओं से खचाखच भरा रहा।

भंडारे में मालपुआ, पूड़ी-सब्जी और जलेबी का प्रसाद वितरित किया गया। पूड़ी बनाने का कार्य 11 कड़ाहियों में क्षेत्र की श्रमदानी महिलाओं द्वारा किया गया, जबकि सब्जी निर्माण की जिम्मेदारी अनुभवी कार्यकर्ताओं ने संभाली। सुरक्षा की दृष्टि से भंडारे व मेला परिसर में 78 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे। बिजली और पानी की पर्याप्त व्यवस्था रही तथा वाहनों के लिए मेला क्षेत्र से दूर पार्किंग की व्यवस्था की गई।

धाम परिसर में 110 फीट लंबी लेटे हनुमान जी की प्रतिमा और 85 फीट ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहीं। एलईडी स्क्रीन के माध्यम से रामायण का प्रसारण किया गया। मधुबन क्षेत्र में साधु-संतों का जमावड़ा रहा, जहां चिमटे और चिलम की ध्वनि वातावरण को आध्यात्मिक बना रही थी।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत प्रथम दिन हरिश्चंद्र नाटक का प्रभावशाली मंचन हुआ। नाटक में राजा हरिश्चंद्र के सत्य, त्याग और बलिदान को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया, जिसे देखकर श्रद्धालु भाव-विभोर हो गए।

मेले में मनोरंजन और खरीदारी की भी भरपूर व्यवस्था रही। झूले, सर्कस और गृहस्थी के सामानों की दुकानों पर दिनभर भीड़ उमड़ी। वहीं खादी ग्रामोद्योग और हस्तशिल्प महोत्सव पंडाल में खरीदारों की भारी भीड़ देखी गई। यहां खादी वस्त्र, ग्रामोद्योग उत्पाद, दवाएं, अचार सहित देश के विभिन्न राज्यों की हस्तशिल्प वस्तुएं प्रदर्शित व विक्रय के लिए उपलब्ध रहीं। जूट उत्पादों, जरी वर्क, लेदर, स्टोन कार्विंग, ज्वेलरी और बिछावन जैसी वस्तुओं की जमकर खरीदारी हुई। विशेष बात यह रही कि इन स्टालों के माध्यम से दिव्यांग कारीगरों को भी रोजगार और बिक्री का अवसर मिला।

स्वामी अवधूत महाराज की तपोभूमि सिमौनी धाम में आयोजित यह मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक बना, बल्कि सामाजिक सहभागिता, सांस्कृतिक विरासत और आत्मनिर्भरता का भी संदेश देता नजर आया। पहले ही दिन उमड़ी लाखों की भीड़ ने यह स्पष्ट कर दिया कि गुरु परंपरा और उनकी साधना की प्रेरणा आज भी जनमानस को जोड़ रही है।

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हिन्दुस्थान समाचार / अनिल सिंह