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तमिल प्रतिनिधियों ने चोल युगीन नटराज मूर्ति व बीएचयू के दुर्लभ अभिलेख देखे

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तमिल प्रतिनिधियों ने चोल युगीन नटराज मूर्ति व बीएचयू के दुर्लभ अभिलेख देखे


—शैक्षणिक सत्र में सांस्कृतिक निरंतरता पर चर्चा,बोले वक्ता—काशी और तमिल संस्कृति एक ही सभ्यता के दो आधार स्तंभ

वाराणसी, 7 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में चल रहे काशी तमिल संगमम के चौथे संस्करण में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पं. ओंकारनाथ ठाकुर प्रेक्षागृह में रविवार को तृतीय शैक्षणिक सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र में तमिल लेखकों एवं मीडिया पेशेवरों ने सांस्कृतिक निहितता और सभ्यतागत निरंतरताएँ: काशी–तमिल संबंध” विषयक पैनल चर्चा में पूरे उत्साह के साथ भागीदारी की।

पैनल सत्र के स्वागत भाषण में बीएचयू के प्रो. संजय कुमार ने कहा कि काशी और तमिल संस्कृति एक ही सभ्यता के दो आधार स्तंभ हैं। उन्होंने नयनार, आलवार, महाकवि सुब्रमण्य भारती और डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसी विभूतियों का उल्लेख कर बताया कि इनकी आध्यात्मिक एवं दार्शनिक परंपराओं ने काशी और तमिलनाडु को जोड़ा है। वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ भट्टाचार्य ने बनारस को “बहुलतावाद की यात्रा” बताते हुए कहा कि काशी तमिल संगमम् वास्तव में चौथे नहीं, बल्कि “चार हजारवें संस्करण” जैसा है, क्योंकि यह संवाद प्राचीन काल से निरंतर चलता आया है। बीएचयू के प्रो. सदानंद शाही ने आलवार काव्य, आंडाल की संप्रेषण परंपरा और भक्ति आंदोलन के प्रसार को बताया। प्रो. शिशिर बसु ने कहा कि संचार ही संस्कृति है और संस्कृति ही संचार । यदि हम संवाद खो देंगे, तो अपनी विविधता भी खो देंगे। प्रो. ए. गंगाधरन ने तमिल संगमों की विद्वत् परंपरा की चर्चा करते हुए बताया कि तमिलनाडु में 484 काशी विश्वनाथ मंदिर काशी–तमिल सांस्कृतिक एकता का प्रमाण हैं। हरी श्वेता ने कहा कि तकनीक आज युवाओं के बीच भक्ति और अध्यात्म का नया माध्यम बन रही है। दिलीपन पुगाल ने तमिल लोककलाओं में संरक्षित रामायण–महाभारत की कथाओं का उल्लेख किया और काशी को एक ऐसे वृक्ष की उपमा दी जिसकी शाखाएँ पूरे देश में फैली हैं। सत्र के प्रारंभ में डॉ. शिवशक्ति प्रसाद द्विवेदी ने सीपीआर का प्रदर्शन किया, जिसका तमिल अनुवाद डॉ. तुलसीरमन ने किया। सत्र का संचालन प्रो. बनिब्रत महंता और डॉ. के. लक्ष्मणन ने किया। कार्यक्रम में तमिल राइटर्स क्लब ने 14 तमिल भाषा की पुस्तकों का उपहार बीएचयू को दिया।

—दल ने भारत कला भवन में भ्रमण किया

तमिल लेखकों के प्रतिनिधिमंडल ने बीएचयू स्थित भारत कला भवन में भ्रमण किया। दल ने यहां 1956 में तत्कालीन तमिलनाडु के राज्यपाल श्रीप्रकाश द्वारा संग्रहालय को उपहार में दी गई चोल युगीन कांस्य नटराज प्रतिमा को देखा। प्रतिनिधियों ने इसे अत्यंत प्रेरणादायक अनुभव बताया । भारत कला भवन के अधिकारियों ने बताया कि यह प्रतिमा संग्रहालय की सबसे दुर्लभ एवं मूल्यवान धरोहरों में से एक है, जो भारतीय सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। प्रतिनिधियों ने इसके संरक्षण और प्रस्तुतीकरण की सराहना की।

इसके अतिरिक्त, तमिल लेखक मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र स्थित ‘महान आर्काइव्स’ भी गए, जहां उन्होंने बीएचयू की स्थापना, महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के योगदान तथा स्वतंत्रता-पूर्व काल से संबंधित दुर्लभ फ़ोटोग्राफ़, पत्रों और दस्तावेज़ों का अवलोकन किया।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी