रामनवमी: मर्यादा, संस्कृति और विज्ञान का उत्सव: प्रो. बिहारी लाल शर्मा

राजा राम का जीवन एक आदर्श सामाजिक व्यवस्था की रचना का प्रतीक
वाराणसी,05 अप्रैल (हि.स.)। चैत्र शुक्ल नवमी, भारतीय पंचांग के अनुसार,सनातन धर्म में अत्यंत पावन तिथि है यह वह दिन है जब त्रेतायुग में अयोध्या में राजा दशरथ के घर भगवान राम का जन्म हुआ। यह तिथि रामनवमी के रूप में भारतवर्ष ही नहीं, अपितु विश्व के कई भागों में श्रद्धा, भक्ति और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाई जाती है।परंतु रामनवमी मात्र एक धार्मिक पर्व नहीं है यह भारतीय जीवन-दर्शन का बहुआयामी उत्सव है, जिसमें धर्म, संस्कृति, समाज और विज्ञान का समन्वय दिखाई देता है। यह उद्गार संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बिहारी लाल शर्मा के है।
कुलपति प्रो. शर्मा ने रामनवमी महापर्व के पूर्व संध्या पर पर्व के धार्मिक महत्व, सांस्कृतिक पक्ष,सामाजिक पक्ष और वैज्ञानिक पक्ष की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि राम का जीवन केवल पूजा का विषय नहीं, अनुकरणीय जीवनशैली है, जो ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ के सिद्धांत को प्रत्यक्ष रूप से चरितार्थ करता है। वाल्मीकि रामायण, तुलसीकृत रामचरितमानस और अन्य रामकथाओं में उनका जीवन मर्यादा, संयम, धर्म और आदर्श का प्रतीक बताया गया है। वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं — जिन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में आदर्श प्रस्तुत किया। कुलपति प्रो. शर्मा ने बताया कि रामकथा भारत की सांस्कृतिक आत्मा है। रामनवमी के अवसर पर देशभर में होने वाली रामलीला, शोभायात्राएँ, भजन-कीर्तन, तथा विभिन्न रामकथाएँ इस पर्व को एक सांस्कृतिक पर्व बना देती हैं। लोकगीतों, भजनों, कहावतों, लोकनाटकों और ग्रामीण उत्सवों में राम की उपस्थिति भारत की गहरी सांस्कृतिक जड़ों की साक्षी है।
प्रो. शर्मा ने बताया कि इंडोनेशिया, थाईलैंड, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका जैसे देशों में रामकथा का सांस्कृतिक रूप विद्यमान है, जो भारत की नरसंस्कृति के वैश्विक प्रभाव को दर्शाता है। राम का जीवन एक आदर्श सामाजिक व्यवस्था की रचना का प्रतीक है — जिसे ‘रामराज्य’ के रूप में जाना जाता है। रामनवमी समाज में नैतिकता, सदाचार, स्त्री-सम्मान, समरसता और सहिष्णुता जैसे मूल्यों के पुनः स्मरण का अवसर देती है।
भगवान राम ने शबरी को अपनाकर वर्ग विभाजन को नकारा, निषादराज गुह को मित्र बनाकर जातीय समरसता का आदर्श प्रस्तुत किया, और सीता की अग्नि परीक्षा के माध्यम से राजधर्म एवं लोकचिंता के द्वंद्व को उजागर किया। आज जब समाज नैतिक विचलन, सांस्कृतिक विस्मरण और सामाजिक विघटन से जूझ रहा है, तब रामनवमी का पर्व हमें श्रीराम के आदर्शों, मर्यादाओं और विचारधारा को पुनः स्मरण करने और जीवन में उतारने की प्रेरणा देता है। राम का जीवन किसी कालखंड का नहीं, बल्कि सर्वकालिक और सार्वभौमिक चेतना का प्रतीक है।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी