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दुनिया में ज्ञान से पवित्र और भारतीय ज्ञान परंपरा से ज्यादा शुद्ध कुछ नहीं: हृदयनारायण दीक्षित

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दुनिया में ज्ञान से पवित्र और भारतीय ज्ञान परंपरा से ज्यादा शुद्ध कुछ नहीं: हृदयनारायण दीक्षित


दुनिया में ज्ञान से पवित्र और भारतीय ज्ञान परंपरा से ज्यादा शुद्ध कुछ नहीं: हृदयनारायण दीक्षित


भारतीय हिंदी परिषद के त्रिदिवसीय 47वें अधिवेशन और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ भव्य शुभारंभ

झांसी, 29 नवंबर (हि.स.)।ज्ञान से पवित्र दुनिया में कुछ नहीं और भारतीय ज्ञान परंपरा से ज्यादा शुद्ध कुछ नहीं यह बात उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व सभापति हृदयनारायण दीक्षित ने कही। वह बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में आयोजित भारतीय हिंदी परिषद के 47वें अधिवेशन और त्रिदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे।

हृदयनारायण दीक्षित ने कहा कि भारतीय हिंदी परिषद पिछले कई दशकों से हिंदी की सेवा कर रहा है। विभिन्न विचार रखने वाले हिंदी के विद्वानों को एक मंच पर लाना बड़ी बात है। यह परिषद अनवरत यह कार्य करने में सफल रहा है। झांसी में परिषद का अधिवेशन होना एक सुखद अनुभव है। झांसी ने देश को पहला राष्ट्रकवि दिया है। वृंदावन लाल वर्मा और हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे हिंदी के बड़े हस्ताक्षरों का भी संबंध इस धरती से रहा है। अगर बुंदेलखंड की बात करें तो दुनिया का सबसे बड़ा और पवित्र महाकाव्य रामचरितमानस भी गोस्वामी तुलसीदास द्वारा बुंदेलखंड में रचा गया। महाभारत की रचना भी बुंदेलखंड हुई। श्री दीक्षित ने कहा कि वर्तमान समय में आधुनिकता की वजह से हिंदी की शुद्धता पर खतरा है। हिंदी के विद्वानों को इस पर ध्यान देना चाहिए।

अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा आदिकाल से लेकर वर्तमान समय तक प्रासंगिक है। आज की पीढ़ी भारतीय ज्ञान परंपरा को समझना नहीं चाहती है। लेकिन, उन्हें यह समझना होगा कि सिर्फ साहित्य ही नहीं बल्कि विज्ञान के कई गूढ़ प्रश्नों का जवाब भी भारतीय ज्ञान परंपरा में छुपा है। आज लोगों को यह समझने की आवश्यकता है की समाज की संरचना कैसे होती है, कैसे ज्ञान का विकास हुआ, कैसे धरती बनी, कैसे मनुष्य बना। इन सब का जवाब भारतीय ज्ञान परंपरा ने आधुनिक विज्ञान से पहले दिया था। भारतीय ज्ञान उपनिषद, पुराण, उपपुराण, ब्राह्मण ग्रन्थ, वेद इत्यादि में मिलता है। ज्योतिष, खगोल, भूगोल की रचना, शून्य की खोज, चिकित्सा पद्धति, युद्ध व्यूह रचना, पृथ्वी सूर्य का चक्कर क्यों लगाती है ? इन सबका जवाब भारतीय ज्ञान परंपरा में है।

उद्घाटन समारोह में पधारे अतिथियों का स्वागत करते हुए बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुकेश पाण्डेय ने कहा कि यह विश्वविद्यालय के लिए गौरव की बात है की जम्मू से लेकर कोच्चि और गुजरात से लेकर गुवाहाटी तक के हिंदी के विद्वान यहां एकजुट हुए हैं। अगले तीन दिन विश्वविद्यालय को आप सभी की सेवा करने का अवसर मिलेगा। यह संगोष्ठी विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। 3 दिन तक भारतीय ज्ञान परंपरा पर जो मंथन होगा, उससे निकलने वाले अमृत इस विषय पर होने वाली चर्चा को एक नई दिशा देगा।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे भारतीय हिंदी परिषद के सभापति प्रो. पवन अग्रवाल ने कहा कि परिषद का यह अधिवेशन पूरी तरह भारतीय हिंदी परंपरा को समर्पित रहेगा। हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में भारतीय ज्ञान परंपरा की भूमिका पर चर्चा की जाएगी। उन्होंने बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति के प्रति आभार जताते हुए कहा कि अधिवेशन का इतना भव्य आयोजन आज तक कहीं नहीं हुआ।

उद्घाटन सत्र के दौरान केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के उपाध्यक्ष प्रो. सुरेंद्र दुबे की पुस्तक कहत रायप्रवीण का विमोचन किया गया. इसके साथ ही भारतीय हिंदी परिषद की शोध पत्रिका हिंदी अनुशीलन, हिंदी विभाग बुंदेलखंड विश्वविद्यालय की पत्रिका साहित्य की यात्रा का विमोचन भी कार्यक्रम के दौरान किया गया। इस अवसर पर बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति की 3 वर्ष की सफलता पर केंद्रित पुस्तक तीन वर्ष, बेहतरीन वर्ष को भी पाठकों के बीच प्रस्तुत किया गया। उद्घाटन सत्र का संचालन भारतीय हिंदी परिषद के प्रधानमंत्री प्रो. योगेंद्र प्रताप सिंह और आभार प्रो. मुन्ना तिवारी द्वारा ज्ञापित किया गया।

इस अवसर पर विद्वानों को सम्मानित भी किया गया। इनमें डॉ.धीरेंद्र वर्मा सम्मान - प्रो.सूर्यप्रसाद दीक्षित, लखनऊ, उत्तरप्रदेश,आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी सम्मान - प्रो.श्रीराम परिहार, हरदा, मध्यप्रदेश,प्रो.देवेंद्रनाथ शर्मा सम्मान - प्रो.महेश दिवाकर, मुरादाबाद, उत्तरप्रदेश,प्रो. कल्याणमल लोढ़ा सम्मान - प्रो.प्रेमशंकर त्रिपाठी,कलकत्ता,पश्चिम बंगाल,प्रो.रामकुमार वर्मा सम्मान - प्रो. ए.अच्युतन, कालीकट, केरल,आचार्य नंददुलारे बाजपेयी सम्मान - प्रो.सदानंद गुप्त, गोरखपुर, उत्तरप्रदेश, प्रो.मालिक मोहम्मद सम्मान - प्रो. एन.जी.देवकी, कोच्चि,प्रो.रमेश कुमार शर्मा सम्मान – प्रो.परमेश्वरी शर्मा, जम्मू,डॉ.हरिमोहन सम्मान - प्रो.बालेंदु दधीचि, नई दिल्ली आदि विद्वान शामिल हैं।

संगोष्ठी के केन्द्रीय सत्र में भारतीय ज्ञान परंपरा पर चर्चा करते हुए भारतीय अनुवाद परिषद, दिल्ली के निदेशक प्रो. पूरनचन्द टंडन ने कहा कि हमारी ज्ञान परंपरा सिर्फ शास्त्र ही नहीं बल्कि शस्त्र के बारे में भी समझाती है। आज दुनिया का हर देश अपनी सेना को युद्ध कौशल सिखाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करता है। लेकिन, हमारे यहां रामायण से लेकर महाभारत तक में युद्ध कौशल की चर्चा होती है।चक्रव्यूह जैसी रचना हमारी परंपरा से आती है। सत्र के दौरान प्रो.रचना विमल ने कहा कि आज के डिजिटल मीडिया ने हमारे अंदर की चिंतन परंपरा को खत्म कर दिया है। हमने स्वयं से सवाल पूछना बंद कर दिया है। यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम आने वाली पीढ़ी के भीतर चिंतन परंपरा को जागृत करें। इस विषय को आगे बढ़ाते हुए खंडवा से आए प्रो. श्रीराम परिहार ने कहा कि हमारी परंपरा में दो बातें महत्वपूर्ण हैं। हम उत्सवधर्मी और पर्यावरण से प्रेम करने वाले हैं। हमारे यहां नदी को मां का दर्जा दिया है। हम पीपल की पूजा करते हैं। हमारे यहां हर मौसम हर दिन का गीत और भोजन है। हर परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है. नई पीढ़ी को इसे समझने की जरूरत है। प्रो. कृष्ण मुरारी मिश्र ने आधुनिक समय में भारतीय ज्ञान परंपरा की आवश्यकता पर चर्चा करते हुए कहा कि आज यह साबित हो रहा है कि ज्योतिष के पीछे भी वैज्ञानिक रहस्य है। इसलिए हमें भारतीय ज्ञान परंपरा को समझने की जरुरत है। कलकत्ता से आए प्रो. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने कहा कि परंपरा को बनाए और बचाए रखने की जिम्मेदारी अब युवा कंधों पर है। नार्वे से आए डॉ. सुरेंद्र चंद्र शुक्ल ने कहा कि आज दुनिया भारतीय ज्ञान परंपरा पर चर्चा कर रही है. यह हर भारतीय की जिम्मेदारी है कि इस परंपरा का प्रचार प्रसार करे।

केंद्रीय सत्र की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो. सुरेंद्र दुबे ने कहा कि भारतीय ज्ञान जिज्ञासा से उत्पन्न होता है। हमारी ज्ञान परंपरा का लक्ष्य ब्रह्म है। आप किसी भी क्षेत्र में कार्य करें अंतिम उद्देश्य लक्ष्य प्राप्त करना होता है। हिंदी बेहद महत्वपूर्ण है। जब तक हिंदी बची रहेगी तब तक हमारी भारतीयता बची रहेगी।

इसके अतिरिक्त समानांतर सत्रों में प्रो. अवधेश कुमार, प्रो. सुशील कुमार शर्मा, प्रो. बृजेश पांडेय, डॉ.अमित सिंह, डॉ. कुमुद, डॉ. रामप्रताप, डॉ.आकांक्षा, डॉ. अमित, डॉ.बलजीत श्रीवास्तव, प्रो. परमेश्वरी शर्मा, डॉ. प्रणव शास्त्री, डॉ. प्रिया जोशी, प्रो. विनोद मिश्र, डॉ.प्रिया कुमारी, प्रो. अब्दुल अलीम समेत कई लोगों अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। सांस्कृतिक संध्या में प्रो. सुरेंद्र दुबे द्वारा रचित नाटक कहत रायप्रवीण का मंचन किया गया।

इस अवसर पर अजय शंकर तिवारी, डॉ. अचला पांडेय, डॉ. श्रीहरि त्रिपाठी, डॉ. बिपिन प्रसाद, डॉ. प्रेमलता, डॉ. सुधा, आकांक्षा सिंह, ऋचा सेंगर, रजनीश वर्मा, प्रीति शिवहरे, प्रियंका पांडेय, मंजरी, डॉ. आशीष दीक्षित, डॉ. शैलेन्द्र तिवारी, डॉ. द्युति मालिनी, डॉ. रेनू शर्मा, प्रियांशु गुप्ता समेत बड़ी संख्या में शोधार्थी और विद्यार्थी मौजूद रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / महेश पटैरिया