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फर्जी मुठभेड़ पर पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह की टिप्पणी का पूर्ण समर्थन : अमिताभ ठाकुर

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वाराणसी, 02 अक्टूबर (हि.स.)। आजाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने फर्जी मुठभेड़ के संबंध में यूपी के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह के पोस्ट का पूर्ण समर्थन किया है। बुधवार को अपने एक्स अकाउंट पर वीडियो पोस्ट में अमिताभ ठाकुर ने कहा कि वे सुलखान सिंह द्वारा विगत दिनों यूपी पुलिस के उच्च पदस्थ पदाधिकारियों द्वारा फर्जी मुठभेड़ के लिए बाध्य करने को रोकने के प्रयास की हृदय से प्रशंसा करते हैं।

उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से विगत साढ़े सात वर्षों में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यूपी पुलिस के माध्यम से फर्जी मुठभेड़ कराए जाने की गंभीर शिकायतें निरंतर प्राप्त हो रही है। इनमें से तमाम एनकाउंटर के संदर्भ में स्वयं उन्होंने भी गंभीर सवाल उठाए हैं। अमिताभ ठाकुर ने कहा कि वे पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह की बातों को आगे बढ़ाते हुए यूपी पुलिस के लोगों से अनुरोध करते हैं कि वे सिर्फ नियम संगत और नियमानुसार कार्यवाही करें और किसी भी स्थिति में किसी भी प्रकार के फर्जी एनकाउंटर के बहकावे में न आएं। क्योंकि कालांतर में सिर्फ जनरल डायरी में अंकित लोगों का ही उत्तरदायित्व नियत होता है और अंतिम ठीकरा मात्र उन पर ही फूटता है। गौरतलब हो कि प्रदेश के पूर्व डीजीपी सुलेखान सिंह ने अपने पोस्ट के जरिए कहा है कि प्रमोशन और पैसे के लिए एनकाउंटर कर रहे हैं। मैं पहले भी पुलिस कर्मियों को फर्जी मुठभेड़ों पर आगाह कर चुका हूं। गाजीपुर के एक मामले में घटना के 22 वर्ष बाद पुलिस कर्मियों को सजा सुनाई गई थी। एक पोस्ट में मैंने और पहले लिखा था कि किस तरह जनपद सीतापुर की एक मुठभेड़ के मामले में घटना के 25 वर्ष बाद पुलिस कर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। और एक एक करके कई पुलिस अधिकारी केन्द्रीय कारागार बरेली में मरते रहे । लेकिन अदालतों से उनकी जमानत नहीं हुई। लगभग ढाई सौ पुलिस अधिकारी जेलों में सड़ रहे हैं। इन्हें कोई मदद करने वाला या बचाने वाला नहीं होता है। पीलीभीत जनपद में खूंखार आतंकवादियों को मुठभेड़ में मारने वाले 45 पुलिस अधिकारियों को उम्रकैद की सजा हुई। उस समय भी भाजपा सरकार थी। वर्तमान भाजपा सरकार ने बार-बार गुहार लगाने के बाद भी इन बूढ़े और रिटायर्ड पुलिस अधिकारियों की सजा माफ नहीं की। हाईकोर्ट से भी जमानत नहीं हुई। जो सरकारें और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, अपने अधीनस्थों पर नाजायज दबाव डालकर फर्जी मुठभेड़ करवाते हैं, वे फंसने पर कोई मदद नहीं करते। जब मुकदमा सजा के लेविल पर आता है तब तक ये पुलिस अधिकारी बूढ़े और रिटायर्ड हो चुके होते हैं। कोई आगे पीछे नहीं होता। इन्हें उनकी किस्मत के भरोसे छोड़ दिया जाता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी