विवादों से घिरा, देशभक्त वीर सावरकर के जीवन के बारे में सब कुछ

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एक विवादित नाम. एक राजनीतिक चेहरा. भाजपा के लिए पूज्यनीय तो अन्य राजनीतिक पार्टियों के लिए किरकिरी. तथ्यों पर जोर दे तो ये ज्ञात होता कि इस नाम को लेकर कितना भी घमासान मचा रहें, लेकिन भारत की आजादी में इस नाम ने अपना अमूल्य योगदान देकर इतिहास के पन्नों में ये नाम हमेशा के लिए अमर हो गया. जी हाँ, हम बात कर रहे वीर सावरकर की. अभी हाल ही में इनके तस्वीर को लेकर एक बार फिर से विवाद गहरा गया है. कर्नाटक विधानसभा में सावरकर की फोटो क्या लगी विपक्ष में तो घमासान मच गया. विधानसभा भंग हो गई. तमाम तरह के बवाल मच गए. अब सोचने वाली बात ये है कि आखिर क्या वजह है जो सावरकर को लेकर इतना विवाद होता रहता है.

विनायक दामोदर सावरकर की जीवनी

भारत के स्वतंत्रता इतिहास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर जिन्हे की प्रायः वीर सावरकर भी कहा जाता है. वीर सावरकर का उल्लेख भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में किया जाता है. हिंदुत्व के कट्टर समर्थक एवं प्रखर राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत वीर सावरकर का जीवन देश की आजादी के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में व्यतीत हुआ, जिसके पश्चात इन्होने हिंदुत्व के उत्थान में अपना सम्पूर्ण जीवन न्योछावर कर दिया. सावरकर अपने जीवनकाल में अंग्रेजों से अपने रिहाई के लिए माफीनामा लिखने, बापू का कट्टर आलोचक होने एवं हिंदुत्व के विषय में अपने विचारो की वजह से वीर सावरकर को कई लोग विवादस्पद व्यक्तित्व भी मानते है, यही कारण रहा है की देश की राजनीति में वीर सावरकर को लेकर विभिन विचारधाराओं का आपस में वर्चस्व देखने को मिलता है. जहाँ वीर सावरकर के समर्थक उन्हें कट्टर हिंदुत्ववादी नेता एवं प्रखर राष्ट्रभक्त मानते है तो वही विरोधी सावरकर के माफीनामा को लेकर उनकी कटु आलोचना करते है. हालांकि वीर सावरकर के जीवन को समझने एवं उनकी विचारधारा को गहराई से जानने के लिए हमे निष्पक्ष होकर उनके जीवन के विभिन पहलुओं को जानना बेहद ही अनिवार्य है तभी हम वीर सावरकर के जीवन का निष्पक्ष मूल्यांकन कर सकेंगे.

जाने वीर सावरकर कौन है ?

विनायक दामोदर सावरकर भारत की आजादी की लड़ाई में प्रमुख भूमिका निभाने वाले भारतीय क्रांतिकारी के रूप में जाने जाते है. जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन देश की आजादी एवं हिंदुत्व के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया. अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों की वजह से वे आजादी की लड़ाई के दरमियान एक प्रमुख व्यक्तित्व के रूप में उभरकर सामने आए. विनायक दामोदर सावरकर वकालत का पेशा करने के अतिरिक्त प्रखर लेखक भी थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपने लेखों के जरिए क्रांतिकारियों में जोश जगाने के कार्य भी किया. इसके अतिरिक्त देश की आजादी के दरमियान भी इन्होने राष्ट्रवादी लेखों के माध्यम से जनता में जागरूकता जगाने में प्रमुख भूमिका निभायी थी. हिंदुत्व के सम्बन्ध में इनके लेख वास्तव में प्रशंसनीय है, हालांकि कई लेखो के लिए इन्हे विरोधियों की कड़ी आलोचना भी झेलनी पड़ी है.

जाने, वीर सावरकर का शुरूआती जीवन

भारत में हिंदुत्व विचारधारा के जनक एवं सूत्रपातकर्ता के रूप में विख्यात विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र में नासिक जिले के भोगुर गाँव में हुआ. इनके पिता दामोदर पन्त सावरकर ब्राह्मण समाज से संबंध रखते थे एवं माता राधाबाई एक कुशल गृहणी थी. मात्र 9 साल की आयु में ही वीर सावरकर ने अपने माता की खो दिया जिसके पश्चात कुछ साल बाद इनके पिता भी चल बसे. माता पिता के देहांत के बाद इनके घर की पालन पोषण की जिम्मेदारी इनके बड़े भाई गणेश पर आन पड़ी जिसे उन्होंने बखूबी निभाया.

विनायक दामोदर सावरकर की शुरूआती शिक्षा

विनायक दामोदर सावरकर बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के छात्र रहे. साल 1901 में नासिक जिले में स्थित शिवाजी हाईस्कूल से अपनी मैट्रिक की शिक्षा पूरी की. अपनी कुशलता का परिचय देते हुए सावरकर ने देशभक्ति से ओतप्रोत कविताओं एवं विभिन मुद्दों पर लेखन के माध्यम से अपनी लेखन क्षमता का भी परिचय दिया. इसके बाद इन्होने पुणे के फ़र्ग्यूसन कॉलेज से अपनी स्नातक की डिग्री प्राप्त की. हालांकि इस उपाधि को ब्रिटिश सरकार के द्वारा विभिन विद्रोहों में भाग लेने की वजह से वापस ले लिया गया था. अपनी स्नातक की शिक्षा के दरमियान ही इन्हे उच्च शिक्षा के लिए श्यामजी कृष्ण वर्मा छात्रवृति मिली और ये बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त करने के लिए लंदन चले गए. अपने लंदन प्रवास के दरमियान ही इन्होने 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को लंदन में स्वतंत्रता संग्राम घोषित किया. विनायक दामोदर सावरकर से वीर सावरकर बनने की इनकी जीवनगाथा बेहद ही रोचक है. कहा जाता है की बचपन में ही इन्होने मात्र 12 साल की उम्र में ही एक उग्र भीड़ का सामना करके अपने मित्रो का बचाव किया था, जिसके बाद इन्हे वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया गया था. वीर सावरकर की जीवनी लिखने वाले लेखक श्री सदाशिव राजाराम रानाडे ने साल 1924 में इन्हे स्वातंत्र्यवीर के नाम से सम्बोधित किया था. साथ ही अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों एवं विभिन मौको पर नेतृत्व क्षमता की वजह से भी इन्हे वीर पुकारा जाता है.

लंदन में दिया क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम 

साल 1906 में लंदन में लॉ की पढ़ाई करने गए वीर सावरकर ने वहां भी विभिन गतिविधियों के जरिए भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपना अमूल्य योगदान दिया था. बचपन से ही कांग्रेस के गरम दल के नेताओ से बेहद ही प्रभावित वीर सावरकर बाल-गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पॉल और लाला लाजपत राय के राष्ट्रभक्ति से ओत- पोत जीवन से प्रभावित थे. इंग्लैंड में ही अपने प्रवास के दरमियान विभिन क्रांतिकारियों के संपर्क में आये एवं यहाँ इन्होने विभिन क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना प्रारंभ कर दिया. अपने लंदन प्रवास के दौरान ही उन्होंने भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से प्रभावित होकर इस क्रांति का गहन अध्ययन किया था और इस विषय पर अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तक द इण्डियन वॉर ऑफ़ इण्डिपेण्डेंस : 1857 का लेखन किया था. इस पुस्तक में विभिन तथ्यों एवं प्रमाणों के साथ इन्होने 1857 की क्रांति को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी थी. ब्रिटिश सरकार द्वारा इस पुस्तक के प्रकाशन को प्रतिबंधित करने के भरकस प्रयास किए गए परन्तु सफल ना हो सके.

वीर सावरकर को दी गई, काला पानी की सजा

लंदन में रहते हुए क्रांतिकारी वीर सावरकर विभिन क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेते रहे थे. लंदन में वीर सावरकर के मित्र मदन लाल ढींगरा ने अंग्रेजी अफसर विलियम हट कर्जन वाईली की गोली मारकर हत्या कर दी थी. जिसके बाद ब्रिटिश सरकार की वीर सावरकर के ऊपर विशेष नजर थी. क्रान्तिकारी मदन लाल ढींगरा के समर्थन में वीर सावरकर ने पेपर में लेख के जरिए उन्हें क्रांतिकारी और देशभक्त बताया जिससे की ब्रिटिश सरकार और भी नाराज हो गई इसके बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा नासिक ज़िले के कलेक्टर एम.टी. जैक्सन की हत्या के आरोप में वीर सावरकर को भी मुख्य अभियुक्त बनाया गया था. वीर सावरकर द्वारा क्रांतिकारी गतिविधियों में सहभागिता एवं ब्रिटिश शासन के खिलाफ बगावत के फलस्वरूप इन्हे मुक़दमे के लिए भारत भेजे जाने का उचित बंदोबस्त किया गया परन्तु यह अंग्रेजो को चकमा देकर फ्रांस में भाग फरार हो गए. हालांकि जल्द ही इन्हे हिरासत में लेकर भारत भेज दिया गया.

जाने, वीर सावरकर का माफीनामा

स्वतंत्रता आंदोलन के दरमियान भारत के पूर्वी भाग में स्थित अंडमान निकोबार दीप समूह पर स्थित पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल जिसको हम काला पानी की जेल के नाम से भी जानते हैं. जिसे अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कठोरतम सजा देने के लिए ही बनाया गया था. इस द्वीप पर स्थित इस जेल में कैदियों पर विभिन्न प्रकार के मानसिक अमानवीय अत्याचार ढाए जा रहे थे. इसमें कैदियों को काल कोठरी में बंद रहना रहता था. कैदियों को नारियों से तेल निकलवाना है और भरपेट भोजन ना देने की सजा शामिल था साथ ही साथ छोटी-छोटी गलतियों पर कैदियों पर कोड़े भी बरसाए जाते थे. कह सकते हैं कि बर्बरता की सभी हदों को पार करते हुए अंग्रेजी हुकूमत द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को इस जेल में रखा था. इसलिए जेल को काला पानी की सजा भी कहा जाता था. वीर सावरकर को मुकदमे की सुनवाई के काला पानी की सजा वाली जेल में भेज दिया गया था. कहा जाता है कि काला पानी की सजा के दौरान ही वीर सावरकर यह समझ चुके थे कि काला पानी में रहने से उनका पूरा जीवन कैदियों की भांति बीतेगा और स्वतंत्रता संग्राम में किसी भी तरीके की अपनी सक्रिय भूमिका नहीं निभा सकेंगे. यही एक वजह है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेने एवं अपना योगदान देने के लिए उन्होंने ब्रिटिश सरकार से माफी नामा मांगना ही बेहतर समझा. जिसके लिए उन्होंने ब्रिटिश सरकार से कुल 6 बार माफी नामे की अर्जी लगाई और इसकी वकालत बाल गंगाधर तिलक एवं सरदार वल्लभ भाई पटेल ने की. साल 1924 में ब्रिटिश सरकार ने सावरकर के माफी को स्वीकार करके इनको काला पानी की सजा से रिहा कर दिया. सावरकर के माफी को लेकर उनके विरोधी उनपर निशाना साधते रहते हैं. परंतु समर्थक कहते है कि वीर सावरकर मातृभूमि की सेवा के लिए माफी मांगे थे.

देश में हिंदुत्व का दौर

साल 1924 में अंग्रेजों की कैद से रिहा होने के बाद वीर सावरकर ने हिंदुत्व की विचारधारा को पूरे देश में प्रसारित करने का काम शुरू कर दिया. इस दौरान ही वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के संपर्क में आए. इन वर्षों के दौरान विनायक दामोदर सावरकर ने हिंदुत्व को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कार्यों को अंजाम दिया. जिनमें हिंदुत्व वादी आंदोलनों को समर्थन एवं विभिन्न हिंदूवादी संगठनों को समर्थन देना शामिल रहा. इसी उद्देश्य के लिए उन्होंने रत्नागिरी हिंदू महासभा का गठन भी किया. साल 1937 में इन्हें अपनी विचारधारा की वजह से हिंदू सभा का अध्यक्ष बना दिया गया. इन वर्षों के दौरान विभिन्न मुद्दों को लेकर इन्होंने अपनी बात को प्रमुखता से रखा एवं मोहम्मद अली जिन्ना की भारत के विभाजन के प्रस्ताव का भी उन्होंने पुरजोर विरोध किया साथ ही देश में हिंदुत्व आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए इस दौरान वीर सावरकर ने अपने जोशीले भाषण एवं धारदार लेखों के जरिए जनता तक अपने विचारों को दी पहुंचाया. हिंदुत्व को बढ़ावा देने के लिए एवं स्वतंत्रता संग्राम में युवाओं के भीतर जोश भरने के लिए उन्होंने प्रमुख पुस्तकें लिखें जिसमें से कुछ इस प्रकार है. इंडियन वॉर फ़ॉर इंडिपेंडेंस: अट्ठारह सौ सत्तावन हिंदुत्व हू इज हिंदू काला पानी  हिंदू राष्ट्र दर्शन द ट्रांसपोर्टेशन ऑफ माई लाइफ हिंदू पद पादशाही हिंदू राष्ट्र दर्शन

गांधीजी से सदैव रहा वैचारिक मतभेद व विवाद

हिंदुत्व के कट्टर समर्थक एवं देश के प्रमुख क्रांतिकारियों में शामिल देशभक्त वीर सावरकर राष्ट्रपति महात्मा गांधी के कटु आलोचक भी रहे. गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन में खिलाफत आंदोलन को शामिल करने का उन्होंने पुरजोर विरोध किया था और इस आंदोलन को किसी भी प्रकार का समर्थन देने से पूरी तरीके से इंकार कर दिया था. साथ ही गांधी जी द्वारा समय-समय पर चलाए गए विभिन्न महत्वपूर्ण आंदोलनों का भी इन्होंने पुरजोर विरोध किया था. गांधी को इन्होंने अपने अनेक लेख में पाखंडी एवं अपरिपक्व नेता भी कहा था.

सावरकर से जुड़े विवाद

राष्ट्र भक्त प्रेमियों देश भक्ति की वजह से सदैव वीर सावरकर को देश के भीतर सम्मान दिया जाता रहा है. हालांकि मुस्लिम एवं ईसाइयों के प्रति अपने विचारों की वजह से विभिन्न आलोचक उन्हें संप्रदायवादी भी मानते हैं. अपने विभिन्न लेखों में वीर सावरकर ने हिंदुस्तान को हिंदुओं सिखों जैनियों के रूप में मान्यता दी. जबकि हिंदुस्तान को मुस्लिमों ईसाइयों से दूर रहने की वकालत की.