विश्व वन दिवस : पर्यावरण एवं प्रगति के बीच तालमेल रखने वाला गुजरात का पहला इको विलेज



गांधीनगर, 20 मार्च (हि.स.)। पेड़ों तथा वनों के महत्व के प्रति जन जागरूकता के लिए 21 मार्च को विश्व वन दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष ‘फॉरेस्ट्स एंड फूड’ की थीम पर यह दिवस मनाया जा रहा है; जो खाद्य सुरक्षा, पोषण तथा आजीविका में जंगलों की महत्वपूर्ण भूमिका उजागर करता है।
इस अवसर पर हम बात करते हैं सूरत जिले में मांडवी तहसील स्थित धज गाँव की, जो गुजरात का पहला इको विलेज है। सूरत वन विभाग की मांडवी उत्तर रेंज के सुदूरवर्ती क्षेत्र स्थित पूर्णतः वनवासी जनसंख्या बहुल यह गाँव पर्यावरण तथा प्रगति का तालमेल बनाए रखते हुए देश के अन्य गाँवों को प्रेरणा दे रहा है। राज्य में पर्यावरण के प्रति सामूहिक चेतना आए तथा आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण को संतुलित किया जा सके; इस आशय से वर्ष 2016 में धज गाँव को इको विलेज घोषित किया गया था। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व में सूरत जिले के ही ओलपाड तहसील के नघोई गाँव को इको विलेज के रूप में विकसित करने की तैयारियाँ चल रही हैं।
सूरत से 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है धज गाँव। घने जंगल के बीचों-बीच स्थित यह गाँव एक समय प्राथमिक सुविधाओं से भी वंचित था। गाँव में आने-जाने के लिए पक्की सड़क या बिजली की सुविधा नहीं थी। ग्रामीणजन रोजगार के लिए वन्य प्रदेशों पर निर्भर थे। पर्यावरण सुधार एवं प्रदूषण नियंत्रण का कार्य करने वाले गुजरात पारिस्थितिकी आयोग (गुजरात इकोलॉजी कमिशन यानी जीईसी) ने धज गाँव को इको विलेज घोषित कर बुनियादी सुविधाएँ प्रदान की हैं। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व में सस्टेनेबल टेक्निक व सामूहिक प्रयासों से हुए पर्यावरण संरक्षण के कारण धज गाँव में पर्यावरणीय क्रांति आई है।
इस विषय में उप वन संरक्षक आनंद कुमार ने कहा कि 2016 में इको विलेज घोषित होने के बाद धज गाँव में पर्यावरण संरक्षण के लिए बायोगैस, भूमिगत जल, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग, सौर ऊर्जा संचालित स्ट्रीट लाइट आदि सुविधाएँ उलब्ध कराई गई हैं। गाँव के किसान प्राकृतिक कृषि के प्रति जागृत बनें; इसके लिए सघन प्रयास शुरू किए गए हैं। हाल में जीईसी का वन विभाग के साथ विलय हुआ है। आगामी समय में ओलपाड तहसील के नघोई गाँव को भी इको विलेज के रूप में विकसित किया जाएगा।
मांडवी उत्तर रेंज का कुल कार्यक्षेत्र 10 हजार हेक्टेयर है, जिसमें 27 गाँव शामिल हैं। गाँव के लोग वन विभाग की ओर से सनद में मिली जंगल की जमीन में खेती तथा पशुपालन कर जीवन यापन करते हैं। धज गाँव में वन विभाग द्वारा घर-घर सोलर लाइट, बरसाती जल संग्रह के लिए भूमिगत टंके (विशाल टंकियाँ), गोबर गैस यूनिट तथा श्मशान गृह, मोबाइल की कनेक्टिविटी के लिए टावर, पशुपालन से जुड़ी महिलाओं के लिए दूध मंडली और गाँव के ठोस कूड़े के लिए वर्गीकृत ठोस कूड़ा यूनिट की सुविधा मिली है। वन विभाग के मार्गदर्शन में गाँव के युवाओं व अग्रणियों की अगुवाई में वन कल्याण समिति कार्यरत की गई है। समिति के सदस्य जंगल का संरक्षण करते हैं।
समिति के अध्यक्ष धर्मेशभाई वसावा ने कहा कि पहले मोबाइल नेटवर्क की बहुत समस्या थी परंतु राज्य सरकार तथा वन विभाग के संयुक्त प्रयास से मोबाइल टावर की सुविधा मिलने से त्वरित संपर्क, स्वास्थ्य एवं शिक्षा उन्मुखी कार्य सरलता से हो रहा है।
गोबर गैस का लाभ मिला, धुएँ से मुक्ति
घर पर ही गोबर गैस का लाभ मिलने से गाँव की सारूबेन वसावा के जीवन में आमूल परिवर्तन आया है। वे कहती हैं, “अब जंगल से लकड़ी काटने से मुक्ति मिली है तथा धुएँ से भी राहत मिली है। कई बार धुएँ से आँखों में जलन होती थी, परंतु आज गोबर गैस सुविधा ने हमारे रसोई कार्य को आसान कर दिया है।
गाँव के लोगों को सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ मिला
किसान दशरथभाई वसावा कहते हैं, “धज गाँव में इको विलेज प्रोटेक्शन से श्मशान बना है। वन विभाग ने गोबर गैस, भूमिगत टंके, सोलर स्ट्रीट लाइट, सड़क-मार्ग सहित कई जनहितकारी कार्य किए हैं। वन विभाग ने गाँव में दूध मंडली स्थापित की तथा महिलाओं को दुधारू पशु दिए। महिलाएँ पशुपालन द्वारा आजीविका प्राप्त कर रही हैं। इसके अतिरिक्त पीएम आवास योजना, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत, राशन कार्ड के माध्यम से गरीब कल्याण अन्न योजना जैसी अनेक योजनाओं में गाँव को लाभ भी मिले हैं।
प्रधानमंत्री आवास योजना से पक्के मकान का सपना साकार
दिहाड़ी कामगार सींगाभाई वसावा को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिलने से उनका पक्के मकान का सपना साकार हुआ है। उन्होंने खुशी व्यक्त करते हुए कहा, “कच्चे मकान में बहुत कष्ट झेले हैं। घर में छोटे-छोटे बच्चों की पढ़ाई तथा निवास की सुविधा की सदैव चिंता सताती थी परंतु प्रधानमंत्री आवास योजना में एक लाख बीस हजार रुपए मिले और वर्षों से इकट्ठा की गई बचत पूंजी से सुख-सुविधा से युक्त पक्का मकान बना है।
महिलाएँ बन रही हैं आत्मनिर्भर
धज महिला दूध मंडली की सचिव उषाबेन वसावा ने कहा कि सुमूल डेयरी संचालित दूध मंडली में 15 सभासद प्रतिदिन दूध भरते हैं। गाँव की बहनें दूध से हर महीने दस से बारह हजार रुपए कमाकर आत्मनिर्भर बन रही हैं। इको विलेज प्रोजेक्ट में दूध फैट मशीन तथा कम्प्यूटर दिया गया है। उन्होंने हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि पहले दूध भरने के लिए सुबह-शाम पाँच किलोमीटर पैदल चलकर दूसरे गाँव जाना पड़ता था, लेकिन हाल में धज गाँव में ही दूध भरकर अच्छी-खासी मासिक आय प्राप्त हो रही है।
इको विलेज क्या है
इको विलेज प्राकृतिक, जैविक, निर्जीव तथा पारंपरिक आजीविका के स्रोतों के पुनर्स्थापन से ग्रामीण समुदायों का आर्थिक एवं सामाजिक विकास की पहल है। इस पहल का उद्देश्य ग्रामीणजनों की प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता कम करना तथा उसके संरक्षण द्वारा गाँव तथा गाँव के लोगों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ कर संतुलित विकास करना एवं ग्रामीण स्तरीय आजीविका के स्रोतों का पुनर्स्थापन-पुनर्जीवन करना है। जमीन के अनुकूल एवं कम पानी से सिंचित होने वाली फसलों, हाईब्रिड किस्म तथा स्थानीय बीज के उपयोग, साथ ही साथ खेती में टपक सिंचाई पद्धति के उपयोग, इको पेस्टीसाइड के उपयोग से पर्यावरणानुकूल सजीव खेती को प्रोत्साहन देना, घर तथा गाँव में ऊर्जा के स्रोतों के लिए बायोगैस, गोबर गैस, सौर ऊर्जा तथा एलईडी के उपयोग को प्रोत्साहन देना भी इस पहल का उद्देश्य है।
पशुपालन के घास-चारे के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता कम करने हेतु घास डिपो की व्यवस्था, वर्षा जल संग्रह की व्यवस्था तथा जल विभाजन के लिए खेत तालाब तथा तालाब का निर्माण, कूड़े की निकासी एवं उसके पुनरुपयोग की उचित व्यवस्था करवाना भी इस पहल का उद्देश्य है।
देश के मॉडल इको विलेज
भारत के मध्य प्रदेश का भगुवार, तमिलनाडु के ओरोविले व ओडनथुराई, नागालैंड का खोनोमा, राजस्थान के पिपलांत्री व आरनाजारना, महाराष्ट्र के गोवर्धन व हिवारे बाजार, ओडिशा का सिद्धार्थ, जम्मू एवं कश्मीर का साग तथा गुजरात का धज गाँव मॉडल इको विलेज हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / बिनोद पाण्डेय