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सूख चुकी हैं खूंटी की तमाम नदियां, इंसानों के साथ-साथ पशु-पक्षियों पर भी आफत

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सूख चुकी हैं खूंटी की तमाम नदियां, इंसानों के साथ-साथ पशु-पक्षियों पर भी आफत
सूख चुकी हैं खूंटी की तमाम नदियां, इंसानों के साथ-साथ पशु-पक्षियों पर भी आफत


खूंटी, 16 मई (हि.स.)। गर्मी के दिनों में विभिन्न क्षेत्रों में जल संकट गहराना कोई नई बात नहीं है, लेकिन मई महीने में ही जल संकट की स्थिति गंभीर होने लगे, तो नागरिकों के साथ ही प्रशासन के माथे पर बल पड़ना ही है। अभी मई महीना आधा गुजरा है और खूंटी जिले की तमाम नदियां सूख गई हैं। सिर्फ तजना नदी में ही थोड़ा बहुत पानी नजर आता है।

गर्मी के दिनों में भू गर्भीय जल के नीचे चले जाने के कारण अधिकतर चापानल जवाब दे चुके हैं। नदियों के साथ ही कुएं और तालाबों का पानी भी सूखने के कगार पर है। जिले की कारो, छाता, बनई, चेंगरझोर सहित तमाम छोटी-बड़ी नदियों में पानी नहीं है। नदी-नालों के सूख जाने से जलापूर्ति व्यवस्था तो प्रभावित हो ही रही है, पर सबसे अधिक प्रभाव बेजुबान पशु-पक्षियों पर पड़ रहा है। लोग तो कुओं और चापानलों से किसी प्रकार अपना हलक तर कर ले रहे हैं, पर पशु-पक्षी अपनी प्यास बुझाने के लिए कहां जाएं। खूंटी के बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि पहले कारो और छाता नदी भीषण गर्मी में भी नहीं सूखती थी, लेकिन नदियों का सीना चीरकर बालू के अवैध उत्खनन और कम बारिश के कारण मार्च महीने में ही अधिकतर नदियों सूख जाती हैं।

अभी भी दूर की कौड़ी है खूंटी शहरी जलापूर्ति योजना

आनेवाले 40 वर्षों में खूंटी शहरी की संभावित जनसंख्या के पानी की आवश्यकता को ध्यान में रखकर 2018 में शुरू की गई शहरी जलापूर्ति योजना खूंटी वासियों के लिए अब भी दूर की कौड़ी है। इस योजना को दो वर्षों में पूरा होना था, उसका पचास फीसदी काम भी पांच वर्षों में नहीं हो सका है। अब तो इस योजना के संवेदक की कार्यशैली से जिला प्रशासन इस कदर नाराज हो चुका है कि कंपनी पर दस लाख रुपये का जुर्माना तक लगा दिया, लेकिन कंपनी की कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आया।

इस संबंध में खूंटी नगर पंचायत के अध्यक्ष अर्जुन पाहन कहते हैं कि पता नहीं कंपनी के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाए, ताकि योजना पूरी हो सके। अध्यक्ष कहते हैं कि वे कंपनी की कार्यशैली से त्रस्त हो चुके हैं। बता दें कि खूंटी के विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा इस मामले को विधानसभा में भी उठा चुके हैं, पर अब तक कोई सुधार नहीं दिखता। लगभग 57 करोड़ रुपये लागत वाली यह जलापूर्ति योजना कब तक अधर में लटकी रहेगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं हैं। कमोवेश यही स्थिति तोरपा प्रखंड के कसमार स्थित जलापूर्ति योजना की है। लगभग दस करोड़ रुपये की लागत से बन रही इस जलापूर्ति योजन को मार्च 2023 तक पूरा हो जाना था, लेकिन अब तक आधा काम भी नहीं हो सका है।

बालू खोदकर छाता नदी मुक्तिधाम में निकालते हैं पानी

तोरपा प्रखंड की छाता नदी स्थित मुक्ति धाम में पानी की कमी का संकट मुक्तिधाम में शवों के अंतिम संस्कार में जाने वाले लोगों को भुगतना पड़ रहा है। लोग नदी का बालू खोदकर पानी निकलते हैं तब शवा का अंतिम संस्कार किया जाता है। कारो नदी का जलस्तर घटने से तोरपा में जलापूर्ति प्रभावित हा ेरही है। जलस्तर नीचे चले जाने से इंटेक वेल में पानी जमा करने में परेशानी हो रही है। जल स्तर बढ़ाने के लिए नदी पर अस्थाई बांध बनाया गया है।

बालू का उत्खनन है बड़ा कारण

जानकार बताते हैं कि कारो नदी, छाता नदी तथा चेंगरझोर नदी का जलस्तर नीचे जाने का कारण बालू का अवैध उत्खनन है। बालू कम होने से पानी का ठहराव नदी में नहीं हो पाता है। इन नदियों से बेतरतीब ढंग से बालू का उत्खनन प्रतिदिन होता है। इसका सीधा असर नदी के जलस्तर पर पड़ रहा है।

हिन्दुस्थान समाचार/ अनिल