बालश्रम से मुक्ति की ओर अगरबत्ती उद्योग

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-बिहार में अगरबत्ती उद्योग में बाल श्रम मजदूरी लगभग खत्म होने के कगार पर

पटना, 21 मार्च (हि.स.)।

इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन (आईसीपी) एक अध्ययन में उजागर हुआ है कि बड़े पैमाने पर बाल श्रम को शामिल किए जाने के कारण अरसे से देश के लिए चिंता का सबब बना अगरबत्ती उद्योग अब इससे छुटकारा पाने की ओर बढ़ रहा है। आईसीपी के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और बिहार में किए गए अध्ययन में 82 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि उन्होंने इस उद्योग में बाल मजदूरी का एक भी मामला नहीं देखा है। सिर्फ 8 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने अगरबत्ती बनाने वाली इकाईयों में बाल मजदूरी के मामले देखे हैं।

अध्ययन में ये सकारात्मक रुझान सभी राज्यों में दिखाई दिए लेकिन इसमें क्षेत्रीय विविधताएं देखी गईं। बिहार में जहां 96 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने अपने आस-पड़ोस की अगरबत्ती इकाई में बाल श्रम का एक भी मामला नहीं देखा, वहीं कर्नाटक में 61 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने अपने पड़ोस की फैक्ट्रियों में बाल श्रम नहीं देखा। आंध्र प्रदेश में 77 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उनके आसपास की अगरबत्ती फैक्ट्रियों में बाल मजदूर नहीं हैं।

इन रुझानों को उम्मीद जगाने वाला करार देते हुए जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के राष्ट्रीय संयोजक रविकांत ने कहा, “अध्ययन के नतीजे देश के लिए बेहद सकारात्मक और उत्साह बढ़ाने वाला होने के साथ एक मजबूत संकेत है कि भारत बाल मजदूरी के खात्मे की राह पर है। इन तीनों राज्यों में बाल मजदूरी में लगातार गिरावट इस अपराध के खात्मे के लिए केंद्र व राज्य सरकारों की प्रतिबद्धता के साथ ही हालिया नीतिगत पहलों के प्रभावी असर के भी संकेत है।”

अगरबत्ती उद्योग में बाल श्रम की स्थिति का जायजा लेने के लिए इन तीनों राज्यों के उन हिस्सों की शिनाख्त की गई जहां बड़े पैमाने पर अगरबत्ती निर्माण का काम होता है। इसमें कर्नाटक के चिकबल्लापुर और कोलार, बिहार में गया और आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीता रामा राजू, अनाकापल्ली, चित्तूर और सत्य साई जैसे अगरबत्ती उत्पाद जिले शामिल थे। ये आंकड़े संबंधित क्षेत्रों के दौरे में निवासियों से मिली जानकारी, अगरबत्ती निर्माण वाले इलाकों में अध्ययन के दौरान मिली जानकारियों, सामुदायिक नेताओं के साथ संवाद और सभी हितधारकों के साथ परामर्श के बाद इकट्ठा किए गए।

विभिन्न शोधों से पता चला है कि अगरबत्तियों में मौजूद धूल, विषैले रसायनों और भारी धातुओं के सांस के जरिए अंदर जाने से सांस से जुड़ी समस्याएं, तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव, हृदय संबंधी समस्याएं, संज्ञानात्मक समस्याएं यानी सीखने, सोचने, एकाग्रता, याददाश्त में कमी और कैंसर जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

उल्लेखनीय है कि आईसीपी बाल अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए देश के 416 जिलों में जमीन पर काम कर रहे 200 से भी ज्यादा नागरिक समाज संगठनों के देशव्यापी नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) का सहयोगी है। इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन ने इन राज्यों में अनेकल रिहैबिलिटेशन एजुकेशन एंड डेवलपमेंट सेंटर, मार्गदर्शी सोसायटी, स्पंदन एसोसिएशन, प्रयास जेएसी सोसायटी, जनकल्याण वेलफेयर सोसायटी, रूरल एजुकेशन एंड लिबर्टी, समानता सोसायटी फॉर रूरल एजुकेशन एंड एनवायरनमेंट डेवलपमेंट जैसे जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के सहयोगी संगठनों की मदद से शोध के लिए आंकड़े जुटाए।

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हिन्दुस्थान समाचार / गोविंद चौधरी