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सीयूराज में वीर सावरकर की जयंती मनाई

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सीयूराज में वीर सावरकर की जयंती मनाई


सीयूराज में वीर सावरकर की जयंती मनाई


अजमेर, 28 मई(हि.स.)। राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुलपति प्रो आनंद भालेराव के नेतृत्व में भव्य रूप से स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर जयंती का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में वीर सावरकर की प्रतिमा पर मंचासीन सदस्यों द्वारा माल्यार्पण और पुष्पांजलि अर्पित की गई।

आयोजन में डीन अकादमिक प्रो. डीसी शर्मा ने कहा कि वीर सावरकर का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है। सावरकर ने जातिवाद और अश्पृश्यता के विरुद्ध आवाज उठाई, वो कहते थे कि पहले और अंत में हम भारतीय है। सावरकर सामाजिक सुधारक भी थे, उन्होंने नासिक में अश्पृश्पयों के लिए पतित पावन मंदिर की स्थापना की। जब तक जाति के आधार पर भेदभाव होगा तब तक हिंदू समाज एक नहीं हो सकता है, ऐसा सावरकर का विचार था।

प्रो शर्मा ने आगे बताया कि सावरकर ने हिस्ट्री ऑफ़ द वॉर ऑफ़ इंडियन इंडिपेंडेंस नाम की एक पुस्तक लिखी थी जिससे भारतीयों को अंग्रजों के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा मिली। हालाँकि बाद में इस पुस्तक पर अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया था। उन्होंने आगे कहा कि सावरकर ने 1857 की क्रांति को पहला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम कहा था, साथ ही उन्होंने इसे स्वतंत्रता की पहली चिंगारी कहा था। क्रन्तिकारी गतिविधियों के चलते अंग्रेजी सरकार ने उनको दो बार आजीवन करवास की सजा सुनाई थी, तथा उनको अंडमान में सेल्युलर जेल में रखा गया था जहाँ उनको अंग्रेज सरकार द्वारा अमानवीय अकल्पनीय यातनाएं दी गई थीं।

अपने संबाेधन में शर्मा ने विश्वविद्यालय में महापुरुषों की जयंती मनाने की प्रथा शुरू करने के लिए कुलपति प्रो आनंद भालेराव को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि सावरकर ने भारत को सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में देखा और हिंदुओं को संगठित करने का आह्वान किया। सावरकर को सदैव हिंदू होने पर गर्व था। जेल से मुक्त होते ही सावरकर ने रत्नागिरी हिंदू सभा के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1937 में सावरकर हिंदू महासभा के अध्यक्ष भी बने थे। उन्होंने सभी से आह्वान किया सावरकर के राष्ट्र के प्रति योगदान से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए।

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हिन्दुस्थान समाचार / संतोष