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साहित्य और राष्ट्रबोध विषय पर राष्ट्रवादी लेखक गुरुदत्त की स्मृति में सभ्यता अध्ययन केंद्र का विशेष व्याख्यान आयोजित

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साहित्य और राष्ट्रबोध विषय पर राष्ट्रवादी लेखक गुरुदत्त की स्मृति में सभ्यता अध्ययन केंद्र का विशेष व्याख्यान आयोजित


नई दिल्ली, 08 दिसंबर (हि.स.)। सभ्यता अध्ययन केंद्र द्वारा लेखक और वैद्य गुरुदत्त की स्मृति में आयोजित साहित्य और राष्ट्रबोध विषय पर विशेष व्याख्यान में राष्ट्रवादी लेखक गुरुदत्त केसाहित्य राष्ट्र चेतना पर चर्चा की गई। इसमें मौजूद विद्वानों ने उन्हेंराष्ट्र चेतना की मजबूत नीव बताते हुए उनके लेखन कोविभाजन, गुलामी और सामाजिक हलचलों को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करने वाला बताया।

कार्यक्रम का आयोजन सोमवार को झंडेवालान स्थित केशव कुंज में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ. बालमुखुंद पांडेय ने की। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के आचार्य प्रो. चंदन कुमार मुख्य वक्ता रहे। ज्ञानलोकभारती, श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यालय, टिहरी के प्रो. सत्यकेतु विशेष वक्ता के रूप में उपस्थित थे। विषय प्रस्तुति सभ्यता अध्ययन केंद्र के निदेशक रवि शंकर ने दी।

डॉ पांडेय ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय ने भारत और भारत माता के माध्यम से राष्ट्र की सही परिभाषा दी है। उन्होंने बताया कि नेपाल में प्रचारक रहते हुए उन्होंने गुरुदत्त की रचनाएं पढ़ीं, जिससे उनके भीतर राष्ट्र भाव और मजबूत हुआ। उन्होंने “देश की हत्या”, “वाम मार्ग” और “संभवामि युगे युगे” जैसी कृतियों का उल्लेख किया।

मुख्य वक्ता प्रो. चंदन कुमार ने कहा कि गुरुदत्त की साहित्य दृष्टि स्पष्ट रूप से राष्ट्र के प्रति समर्पित थी। कई ऐसे विचार जो राजनीतिक रूप से असंगत माने जाते हैं, वही आगे चलकर महान सिद्ध होते हैं। उन्होंने कहा कि गुरुदत्त के लेखन में विभाजन और विस्थापन के दौर की पीड़ा को देखने की एक अनोखी दृष्टि मिलती है।

विशेष वक्ता प्रो. सत्यकेतु ने कहा कि गुरुदत्त ने गुलामी के कठिन समय को अपने साहित्य में सजीव रूप से उतारा। साहित्य समाज की छोटी से छोटी हलचल को पकड़ लेता है और गुरुदत्त की रचनाएं इसका उदाहरण हैं। उन्होंने कहा कि आज जिस राष्ट्रवाद की बात होती है, उसकी नीव गुरुदत्त ने अपने लेखन से रखी।

रवि शंकर ने कहा कि समाज हित में लिखा गया विचार ही साहित्य कहलाता है और भारतीय परंपरा में यही समाज राष्ट्र के रूप में समझा जाता है। गुरुदत्त ने अपनी रचनाओं में इसी राष्ट्र भाव को मजबूत स्वरूप दिया।

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हिन्दुस्थान समाचार / प्रशांत शेखर