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मुर्शिदाबाद डायरी-वे हमारे पड़ोसी थे, बहुत अच्छे संबंध थे लेकिन सब लूट ले गए

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मुर्शिदाबाद डायरी-वे हमारे पड़ोसी थे, बहुत अच्छे संबंध थे लेकिन सब लूट ले गए


मुर्शिदाबाद डायरी-वे हमारे पड़ोसी थे, बहुत अच्छे संबंध थे लेकिन सब लूट ले गए


मुर्शिदाबाद डायरी-वे हमारे पड़ोसी थे, बहुत अच्छे संबंध थे लेकिन सब लूट ले गए


मुर्शिदाबाद डायरी-वे हमारे पड़ोसी थे, बहुत अच्छे संबंध थे लेकिन सब लूट ले गए


मुर्शिदाबाद डायरी-वे हमारे पड़ोसी थे, बहुत अच्छे संबंध थे लेकिन सब लूट ले गए


मुर्शिदाबाद डायरी-वे हमारे पड़ोसी थे, बहुत अच्छे संबंध थे लेकिन सब लूट ले गए


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मुर्शिदाबाद डायरी-वे हमारे पड़ोसी थे, बहुत अच्छे संबंध थे लेकिन सब लूट ले गए


बांग्लादेश से हमलावर आए थे, ऐसी कहानी बनाकर स्थानीय दंगाइयों को बचाने की हो रही कोशिश

कोलकाता, 18 अप्रैल (हि.स.)। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के शमशेरगंज में शुक्रवार, 11 अप्रैल को जुम्मे की नमाज के बाद वक्फ क़ानून के विरोध के नाम पर हज़ारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग सड़कों पर उतरे और हिंसा करने लगे। उन्होंने पुलिस की गाड़ियों को आग के हवाले किया और पूरे इलाके में पत्थरबाज़ी और आगजनी शुरू कर दी।

पूरा देश यही खबर देखता रहा कि क़ानून के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं, लेकिन सच्चाई कुछ और ही थी। इस हिंसा की आड़ में बेलगाम भीड़ ने आसपास के हिंदू घरों को निशाना बनाते हुए जमकर लूटपाट की, घर जलाए और एक बाप-बेटे की बेरहमी से हत्या कर दी गई। जिस इलाके में हिंसा हुई वहां हिंदू समुदाय की आबादी मात्र 20 से 30 प्रतिशत है। वारदात के बाद लोगों के दिलों में गहरा डर बैठ गया है, लेकिन इस हमले ने उन्हें और ज़्यादा एकजुट कर दिया है।

यह हमारी जन्मभूमि है, लेकिन अब डर लगता हैजैसे ही हिन्दुस्थान समाचार की टीम घोषपाड़ा इलाके में पहुंची, स्थानीय युवकों ने बाइक से हमें गाइड किया और हमें वहां ले गए जहां 130 घर जलाए जा चुके थे।यहां 86 साल के तपन (परिवर्तित नाम) रहते हैं। उन्होंने कांपती आवाज़ में कहा, यह हमारी जन्मभूमि है लेकिन कभी नहीं सोचा था कि अपनी ही मिट्टी पर रहने में डर लगेगा। ऐसा लगता है जैसे हिंदू होना पाप है। हमारी पूरी जाति को मिटाने के लिए उस दिन हमला किया गया।

तपन गांव में मिलनसार व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं और मुस्लिम पड़ोसियों से उनके संबंध अच्छे थे लेकिन उस दिन के खौफनाक मंजर को याद करते हुए कहते हैं, हमलावर हमें अपना दुश्मन समझ रहे थे। वे हमारे ही आसपास के लोग थे। लेकिन हमारे घरों में घुसकर लूटपाट, तोड़फोड़ और आगजनी कर रहे थे।

चेहरे ढंके थे लेकिन हम उन्हें पहचान गएपास ही खड़ी तपन की 70 साल की बुज़ुर्ग मां मामूनी (परिवर्तित नाम) तपन को बात करता देख रोते हुए हमारे पास आ गईं। उन्होंने कहा, हमारे आसपास के गांव के मुस्लिम समुदाय के लोग घरों में घुस आए। उनके चेहरे ढंके थे लेकिन पहचानना मुश्किल नहीं था। उन्होंने ताले तोड़े, पेटी, बक्सा, अलमारी सब तोड़ दिए। गहने, रुपये और कीमती सामान सब लूट लिया। तलवार की नोंक पर हमारे कान, नाक और हाथों के गहने उतरवाए। फिर डराकर सबकुछ लूटे और घर में आग लगाकर चले गए। किसी तरह जान बचाकर हम दूसरी जगह शरण लेकर बचे।

हजारों की संख्या में हमलावर थे, कोई मदद नहीं मिलीघोषपाड़ा के स्वप्न (36 वर्ष) ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें अपने गांव में ऐसा खौफनाक मंजर देखने को मिलेगा। वे कहते हैं, जुम्मे की नमाज के बाद हमले शुरू हो गए। पुलिस को लगातार फोन किया गया लेकिन कोई नहीं आया। हमलावर हजारों की संख्या में गलियों में भर गए थे। वे आग लगा रहे थे और कह रहे थे कि पूरी हिंदू जाति को मुर्शिदाबाद से खत्म कर देंगे। हमने दोस्तों के साथ मुकाबला करने की कोशिश की लेकिन जब प्रशासन की मदद नहीं मिली, तो जान बचाकर भागना पड़ा।

बाप-बेटे को छेनी से काट डाला गयाघोषपाड़ा से सटे बेदबोना गांव में हरगोविंद दास और उनके बेटे चंदन दास को घर से खींचकर कंक्रीट की सड़क पर छेनी से काटकर मार डाला गया। हमलावरों की भीड़ खुशी से नारे लगा रही थी। चंदन का 13 साल का बेटा हमले के बाद दूसरे गांव के एक परिचित के घर में छिपकर जान बचा रहा था। उसे यह भी नहीं पता था कि उसके पिता और दादा मारे जा चुके हैं।

हरगोविंद दास की विधवा बहन रोते हुए कहती हैं, मुर्शिदाबाद के इस गांव में हिंदू होना अपराध है। हमने बार-बार पुलिस से मदद मांगी, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। मेरे पिता और भाई को मारने के बाद मेरे घर में आग लगा दी गई।

मीडिया ने पीड़ितों के दर्द को तोड़-मरोड़ कर परोसाघोषपाड़ा इलाके में अभी भी मातम का माहौल है। लोग हर अनजान चेहरे से डर जाते हैं। घरों के दरवाज़े खुले पड़े हैं, खिड़कियां टूटी हुई हैं, और भीतर के बर्तन, कपड़े, मंदिर, अलमारी- सब जलकर राख हो गए हैं। बड़े-बड़े विशाल घर इसी हालत में पड़े हैं लेकिन उसमें रहने वाले लोग जान बचाकर भाग चुके हैं। घरों में कुत्ते, बिल्ली और अन्य जानवर घूम रहे हैं।

62 साल के एक बुज़ुर्ग बताते हैं, एक नेशनल चैनल की महिला पत्रकार आई थीं, तस्वीरें लीं, दर्द सुना और चली गईं। फिर उनके चैनल पर खबर चली कि गांव वालों ने सरकार से मुआवजा लेने के लिए अपने घर खुद जला दिए। यहां तक कि हरगोविंद दास और चंदन दास की हत्या को बाप-बेटे की आपसी रंजिश बताया गया। ऐसी खबरें देखकर लोगों का मीडिया से भरोसा उठ गया है।

हरगोविंद दास की बेटी ने रोते हुए कहा, हमारे पिता और भाई को मौत के घाट उतारा गया और कोलकाता से आए कई बड़े मीडिया चैनलों के पत्रकारों ने हमसे बात करने, हमारे दर्द को सुनने, परिवार की स्थिति को जानने के बाद भी ऐसी खबरें चलाईं कि हमे शर्मिंदगी महसूस हो रही है।

हम पर हमला पड़ोसियों ने किया, कोई बांग्लादेशी नहीं था75 साल के एक बुज़ुर्ग कहते हैं, ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि बांग्लादेश से लोग आकर हमला कर गए लेकिन यह झूठ है। हमला करने वाले हमारे ही आसपास के लोग थे। हमारे पड़ोस के लड़के अपने गांव के दोस्तों को लेकर हमला कर रहे थे। हिंदू समुदाय को खत्म करने की बात हो रही थी। पुलिस ने हमें मरने के लिए छोड़ दिया और जिस मीडिया से इस बात की उम्मीद थी कि वह हमारे दर्द को देश के सामने रखेगी वह बांग्लादेश की कहानी बनाकर ऐसा साबित करने की कोशिश कर रही है कि दूसरे देश के लोगों ने आकर हमले किए और चले गए। यह सच नहीं है। हमलावर हमारे आसपास रहने वाले अपने लोग थे, जो हमारे सामने रोज मिलते और दिखते थे। हमले का कारण बस इतना था कि वह बहुसंख्यक हो गए हैं और हम हिंदू अल्पसंख्यक। और कोई कारण नहीं है।

वह सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं कि अगर सरकार ने कोई कानून बनाया तो उन्हें कानून के खिलाफ लड़ना चाहिए। हम पर हमला करने का कोई मतलब नहीं बनता शिवाय इसके कि हम उनके लिए काफिर हैं।

देवदूत बनकर पहुंचे बीएसएफ के जवानमुख्यमंत्री ममता बनर्जी बीएसएफ और केंद्र सरकार को हमले के लिए जिम्मेदार ठहरा चुकी हैं लेकिन स्थानीय लोग बीएसएफ जवानों को भगवान की तरह सम्मान दे रहे हैं।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद बीएसएफ और सीआरपीएफ के जवान हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचे। लोगों ने उन्हें देवदूत कहा। एक बुज़ुर्ग बोले, अगर ये जवान नहीं होते तो हम आज जिंदा नहीं होते। एक महिला ने कहा, हमें कभी देवता नहीं दिखे लेकिन बीएसएफ जवान हमारे लिए देवता बनकर आए हैं।

स्थानीय लोगों ने मांग की है कि उनके गांव में बीएसएफ का स्थायी कैंप बनाया जाए। उनका कहना है कि कैम्प के लिए वे अपनी ज़मीन देने को तैयार हैं, लेकिन अब अपने गांव को छोड़कर नहीं जाना चाहते।

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर