काशी विश्वनाथ मंदिर से शक्तिपीठ मां विशालाक्षी के दरबार में भेजा गया वस्त्र एवं श्रृंगार सामग्री

-मंदिर में चैत्र नवरात्रि पर्व शास्त्रीय रीति से प्रारंभ, शक्तिपीठ से बाबा दरबार में नौ कलश गंगाजल भेजा गया, इसी जल से होगा बाबा का जलाभिषेका
वाराणसी, 29 मार्च (हि.स.)। वासंतिक चैत्र नवरात्र के पूर्व संध्या पर शनिवार को श्री काशी विश्वनाथ दरबार से श्रृंगार और वस्त्र सामग्री शक्तिपीठ माता विशालाक्षी के दरबार में अर्पित की गई। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के प्रतिनिधियों ने शास्त्री गण के साथ मिलकर समस्त श्रृंगार और वस्त्र सामग्री को समारोहपूर्वक बाबा विश्वेश्वर को अर्पित किया। तत्पश्चात, इन भव्य सामग्री को माता काशी विशालाक्षी शक्तिपीठ और नवदुर्गा स्वरूप मंदिरों में भेजने की व्यवस्था की गई।
नवरात्रि की पूर्व संध्या पर ही शक्तिपीठ मां विशालाक्षी के दरबार से नौ कलश गंगाजल श्री काशी विश्वनाथ को अर्पित किए गए। चैत्र प्रतिपदा (30 मार्च 2025) को प्रातःकाल मंगला आरती के पश्चात, सबसे पहले माता काशी विशालाक्षी द्वारा प्रेषित नौ कलश गंगाजल से भगवान विश्वनाथ का जलाभिषेक किया जाएगा।
मंदिर न्यास के अनुसार वर्ष 2024 की चैत्र नवरात्रि में शुरू किए गए एक अद्भुत शास्त्रीय नवाचार ने धार्मिक परंपराओं में एक नई दिशा प्रदान की थी। इस नवाचार के तहत नवरात्रि के नौ दिनों में प्रतिदिन भगवान श्री विश्वेश्वर द्वारा श्रृंगार सामग्री और वस्त्र माता विशालाक्षी को अर्पित किए गए थे। इस नवाचार को आगे बढ़ाते हुए, शारदीय नवरात्रि 2024 में न केवल माता काशी विशालाक्षी शक्तिपीठ बल्कि काशी के नवदुर्गा स्वरूप देवियों को भी प्रतिदिन के अनुसार श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग धाम से वस्त्र और श्रृंगार अर्पित किए गए। अब, चैत्र नवरात्रि 2025, जो 30 मार्च से प्रारंभ हो रही है, में इस नवाचार को और अधिक व्यावहारिक रूप से लागू किया गया है।
इस बार काशी स्थित प्रथम शक्तिपीठ, मां विशालाक्षी धाम सहित सभी देवी धामों को पर्व प्रारंभ की पूर्व संध्या पर ही समस्त श्रृंगार सामग्री और वस्त्र श्री काशी विश्वनाथ महादेव द्वारा प्रेषित किए गए। इस विशेष पहल के तहत, पूर्व संध्या पर ही श्रृंगार और वस्त्र प्रेषित किए जाने से यह सुनिश्चित हुआ कि समस्त देवी विग्रहों पर भगवान विश्वनाथ से प्राप्त भेंट के वस्त्र और श्रृंगार नवरात्रि के प्रथम दिवस से ही धारण किए जाएं।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी