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आखिर क्यों बैन हुई PFI: पढ़ें, स्थापना से लेकर पतन तक की पूरी कहानी

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आखिर क्यों बैन हुई PFI: पढ़ें, स्थापना से लेकर पतन तक की पूरी कहानी
भारत में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) को 5 साल के लिए पूर्णरूप से प्रतिबंधित कर दिया गया है. इसके अलावा PFI से जुड़े 8 अन्य संगठनों पर भी गृह मंत्रालय ने पाबंदी लगा दी है. गृह मंत्रालय की तरफ से जारी की गई अधिसूचना में कहा गया है कि इस संगठन के खिलाफ कई ऐसे ठोस सबूत मिले हैं, जिनसे साबित होता है कि PFI देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त था. इसके अलावा यह भी कहा गया है कि संगठन के सदस्य सीरिया, इराक, अफगानिस्तान में जाकर ISI जैसे आतंकी संगठनों में शामिल हुए. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि PFI जैसे संगठन, जिसकी जड़ें भारत में बहुत गहरी थीं, उसे उखाड़ फेंकने का प्लान कैसे तैयार हुआ. आखिर, इतने बड़े एक्शन की तैयारी कब हुई और सरकार ने PFI पर प्रतिबंध लगाने के लिए क्या-क्या किया. यहां हम आपको बताएंगे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर प्रतिबंध की पूरी कहानी क्या है.

पहले आप जान लें PFI है क्या?

PFI के खतरनाक आतंकी मंसूबों की कहानी 1992 के बाबरी विध्वंस से निकली है. मुस्लिम हितों की रक्षा करने के लिए केरल के कट्टरपंथी मुसलमान नेताओं ने साल 1994 में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी NDF की स्थापना की. धीरे-धीरे यह संगठन केरल राज्य में अपनी जड़ें बहुत अधिक मजबूत करता चला गया और इस संगठन का नाम सांप्रदायिक गतिविधियों से भी जुड़ता चला गया. साल 2003 में कोझिकोड में 8 हिंदुओं की निर्मम हत्या के बाद इस संगठन पर ISI से संबंध होने के संगीन आरोप लगे, जो न्यायालय में साबित नहीं हो सके. हिंसक गतिविधियों में नाम आने के बाद इस संगठन की चर्चा पूरे देश में होने लगी. जिसके बाद नवंबर 2006 में दिल्ली में एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें NDF के अलावा दक्षिण भारत के 3 मुस्लिम संगठनों का विलय हुआ और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया अस्तित्व में आया.

अब जानिए एक्शन के पीछे की असली कहानी

PFI पर इतनी बड़ी कार्रवाई की कहानी अगस्त महीने में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कर्नाटक दौरे से शुरू होती है. यहां अमित शाह एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे. इस कार्यक्रम के बाद अमित शाह, कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई और राज्य के गृहमंत्री अरागा ज्ञानेंद्र के बीच एक बैठक होती है और यहीं से PFI के खिलाफ कार्रवाई की शुरुआत होती है. जिसकेबाद शाह दिल्ली लौटे और तेजतर्रार अधिकारियों की एक टीम तैयार की गई.

हुई अजित डोभाल की एंट्री

अगस्त के आखिरी सप्ताह में ही गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार(NSA) के बीच एक गुप्त बैठक होती है. इस बैठक में PFI के खिलाफ पूरी योजना को जमीन पर उतारने का खांका खींचा जाता है. बैठक के बाद काम करने के लिए तत्काल टीमें गठित होती हैं, जिनका काम था- 1. PFI नेटवर्क की मैपिंग, 2. PFI फंडिंग का पता करना और सबूत इकट्ठा करना, 3. पूर्व में देश में हुए सभी दंगों और घटनाओं के खिलाफ फिर से उचित ढंग से जांच करना.

 जब पीएम मोदी से मिली हरी झंडी

PMO से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस पूरे प्लान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने रखा गया. उनसे हरी झंडी मिलने के बाद अजित डोभाल ने अपना काम शुरू कर दिया. 2 सिंतबर को डोभाल प्रधानमंत्री मोदी के साथ केरल पहुंचे. यहां NSA विक्रांत के नौसेना में शामिल होने के कार्यक्रम के बाद पीएम मोदी दिल्ली लौट आए, लेकिन डोभाल केरल में रुक गए. यहां उन्होंने केरल के टॉप पुलिस अफसरों के साथ गुप्त बैठक की. जिसके बाद डोभाल मुंबई पहुंचे. यहां भी उन्होंने आनन फानन में राजभवन के सुरक्षा अधिकारियों के साथ मीटिंग की. महाराष्ट्र के टॉप पुलिस अधिकारियों से भी बात की गई. 15 सितंबर को डोभाल ने NIA और ED के अधिकारियों के साथ बैठक की और पूरे एक्शन की जानकारी दी. 

पहले एक्शन में ही तोड़ दी PFI की कमर 

अब समय आ चुका था, इस पूरे प्लान को जमीन पर उतारने का. 21 सितंबर को डोभाल ने सभी अधिकारियों को 22 सितंबर की सुबह ही एक्शन का आदेश जारी कर दिया था. सुबह होते ही NIA और ED की टीमों ने 15 राज्यों के 150 से ज्यादा PFI के ठिकानों पर छापेमारी शुरू कर दी. ये PFI के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा अभियान था. जिसके बाद केरल से PFI के 22, महाराष्ट्र से 20, कर्नाटक से 20, तमिलनाडु से 10, असम से 9, उत्तर प्रदेश से 8, आंध्र प्रदेश से पांच, मध्य प्रदेश से चार, पुडुचेरी से तीन, दिल्ली से तीन और राजस्थान से दो लोगों को गिरफ्तार किया गया. पूरे देश के आंकड़ों को देखें तो 22 सितंबर को PFI से जुड़े 106 लोगों को गिरफ्तार किया गया.

दूसरे छापे में उखड़ गईं PFI की जड़ें

केंद्रीय एजेंसी ने 27 सितंबर को PFI के खिलाफ दूसरी बड़ी छापेमारी की. गौरतलब है कि यह छापेमारी 7 राज्यों में हुई और 230 से ज्यादा PFI  सदस्यों को गिरफ्तार किया गया. इस छापेमारी में कर्नाटक में सर्वाधिक 80, उत्तर प्रदेश में 57, असम व महाराष्ट्र से 25-25, दिल्ली में 32, मध्य प्रदेश में 21, गुजरात में 17 लोगों को गिरफ्तार किया गया.