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अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मशताब्दी पर भोपाल में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

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अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मशताब्दी पर भोपाल में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न


अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मशताब्दी पर भोपाल में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न


- अटल जी के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर हुआ विचार-विमर्श

भोपाल, 21 सितंबर (हि.स.)। संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी का उद्घोष करने वाले जन-जन के प्रिय एवं राष्ट्रीय चरित्र के प्रेरणास्रोत भारत माता के सपूत पूर्व प्रधानमंत्री भारत-रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मशताब्दी के अवसर पर राजधानी भोपाल के अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी शनिवार को संपन्न हुई। साहित्य अकादमी नई दिल्ली एवं अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस संगोष्ठी में स्वागत वक्तव्य में साहित्य अकादमी के सचिव के. निवासराव ने कार्यक्रम की उपयोगिता तथा तात्कालिकता की आवश्यकता बताई। संगोष्ठी में अटल जी के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श हुआ।

शुक्रवार को शुरू हुई संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में साहित्य अकादमी के सचिव श्रीनिवासराव ने कहा कि अटल जी भारतीय राजनीति में महाजनप्रिय नेता थे। वे राजनीति और साहित्य दोनों विधाओं के धनी थे। अटल जी मानते थे कि व्यक्तित्व का विकास शिक्षा के माध्यम से होता है। शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए। विशिष्ट अतिथि हिंदी परामर्श मंडल के संयोजक गोविन्द मिश्र ने अपने वक्तव्य में सुझाव दिया कि श्रद्धेय अटलबिहारी के नाम पर कोई पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय में शुरू करें, जिसमें यह पढ़ाया जाए कि लेखक और राजनीतिज्ञ को अपनी 'कथनी और करनी' में अंतर नहीं रखना चाहिए।

साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने अटल जी के व्यक्तित्व में समाहित करुणा की संवेदना को व्यक्त करते हुए कहा कि अटल जी में समाज के प्रति संवेदनशीलता कूट-कूट कर भरी थी। उनकी संवेदना का स्तर इतना गहरा इसलिए था, क्योंकि वे राजनेता होने के साथ-साथ साहित्यकार भी थे। जीवन में करूणा, विनम्रता, संवेदना आदि साहित्य के कारण ही आती है।

अटल बिहारी हिंदी विश्वविद्यालय के कुलगुरु खेमसिंह डहेरिया ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी न केवल कुशल राजनीतिज्ञ रहे, बल्कि उनका व्यक्तित्व बहुआयामी रहा है। उन्होंने साहित्य, सामाजिक, राजनीति, संगठन एवं पत्रकारिता में उत्कृष्टता और विशाल हृदय के साथ अपनी भूमिका का निर्वहन किया है। राष्ट्रीयता की उदारता व विश्व व्यापकता के लिए वे जाने जाते हैं। अटल जी का सपना विश्वगुरु एवं अखण्ड भारत का रहा है जो वर्तमान में प्रासंगिक है।

विश्वविद्यालय के कुलसचिव शैलेन्द्र कुमार जैन ने कहा कि अटल जी का व्यक्तित्व शब्दातीत है, उसे शब्दों में बांधा नही जा सकता है। उनका व्यक्तित्व वास्तव में महासागर की तरह विशाल व विराट रहा है। उन्होंने मंच पर उपस्थित सभी विद्वतजनों का आभार व्यक्त किया।

उदघाटन सत्र के बाद अटल युगीन विश्व और हिंदी विषय पर प्रथम सत्र संपन्न हुआ, जिसकी अध्यक्षता अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति मोहनलाल छीपा ने की। इस सत्र में दयानंद पांडेय, चंद्रचारू त्रिपाठी ,उर्मिला शिरीष ने अपने अपने आलेख प्रस्तुत किए। दूसरा सत्र भारत की समावेशी संस्कृति के शिल्पी अटल जी विषय पर था जिसकी अध्यक्षता बैधनाथ लाभ ने की और अलका प्रधान ने अपना आलेख प्रस्तुत किया। तृतीय सत्र अटल जी की पत्रकारिता विषय पर केंद्रित था, जिसमें प्रकाश बरतूनिया की अध्यक्षता में विजय मोहन तिवारी एवं संजय द्विवेदी ने अपने आलेख प्रस्तुत किए।

वहीं, संगोष्ठी में शनिवार को तीन सत्र आयोजित किए गए, जिनके विषय थे, भारत की एकात्मता हिंदी और अटल जी, राष्ट्र निर्माण में अटल जी का योगदान, अटल जी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण। इन सत्रों की अध्यक्षता क्रमश: मनोज श्रीवास्तव, रामेश्वर मिश्र पंकज एवं संजय तिवारी ने की, जिनमें पंकज पाठक, राजीव वर्मा, आनंद सिंह, संजय द्विवेदी, विजय मनोहर तिवारी और दयानंद पांडेय ने अपने विचार व्यक्त किए। अंत में धन्यवाद ज्ञापन अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश द्वारा किया गया।

अध्यक्षीय भाषण में कुलगुरु प्रो खेमसिंह डहेरिया ने अटल जी की विश्वव्यापकता के साथ ही साथ सम्यक दृष्टि, उदारवादी चरित्र के साथ राष्ट्रीयता को महत्वपूर्ण बताया। तीन सत्रों में आयोजित कार्यक्रमों में दयानंद पाण्डे के द्वारा संस्मरणों को साझा किया। लेखिका उर्मिला शिरीष के द्वारा आलेख वाचन प्रस्तुत किया। पूर्व कुलपति प्रो छीपा के द्वारा विश्वविद्यालय की स्थापना का महत्त्व बताया। डॉ मुकेश मिश्रा ने अटल की सर्वसमावेशिकता के बारे में बताया। लेखक एवं प्रशासनिक ज्ञाता मनोज श्रीवास्तव के द्वारा समावेशी, शिल्पी, संस्कृति, समरसता तथा अव्याभिचारिणी निष्ठा जैसे शब्दों को स्पष्ट करते हुए अटल के द्वारा उन शब्दों को अर्थ प्रदान करते हुए आचरण को स्पष्ट किया। डॉ अलका प्रधान ने अटल जी के कार्यक्रम पर प्रकाश डाला और अध्यक्षीय उद्बोधन प्रो बैद्यनाथ लाभ ने दिया।

अंतिम सत्र का संचालन करते हुए डॉ भावना खरे ने सर्वप्रथम डॉ विजय मनोहर तिवारी को आमंत्रित किया गया एवं उन्होंने अपने आलेख का शीर्षक राजनीति की देह में पत्रकार की आत्मा प्रस्तुत किया। अपने उद्बोधन में डॉ संजय द्विवेदी ने अटल की लोकप्रियता के संबंध में उल्लेख किया। अंतिम सत्र में अध्यक्षता करते हुए डॉ प्रकाश बरतूनिया ने महत्त्वपूर्ण उल्लेख किया। डॉ संजय द्विवेदी तथा विजय मनोहर तिवारी ने भी उत्कृष्ट उद्बोधन दिया। कुलसचिव शैलेंद्र जैन के द्वारा आभार प्रदर्शन किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ अनीता चौबे, डॉ भावना खरे, बृजेश रिछारिया आदि के द्वारा किया गया एवं प्रो राजीववर्मा, डॉ गौरव गुप्ता, डॉ अमित सोनी, डॉ भूपेंद्र सुल्लेरे उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर