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इंदौरः राजबाड़ा पर 297 साल की परंपरा के साथ गोधूलि बेला में हुआ सरकारी होली का दहन

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इंदौरः राजबाड़ा पर 297 साल की परंपरा के साथ गोधूलि बेला में हुआ सरकारी होली का दहन


इंदौरः राजबाड़ा पर 297 साल की परंपरा के साथ गोधूलि बेला में हुआ सरकारी होली का दहन


इंदौरः राजबाड़ा पर 297 साल की परंपरा के साथ गोधूलि बेला में हुआ सरकारी होली का दहन


इंदौर/भोपाल, 13 मार्च (हि.स.)। इंदौर के होलकर राजघराने में करीब 297 वर्षों से चली आ रही परंपरा गुरुवार को भी निभाई गई। राजघराने में गोधूलि वेला (सूर्यास्त) के समय सरकारी होली का दहन किया गया गया। यह परंपरा सन् 1757 से राजबाड़ा के द्वार पर निरंतर चली आ रही है। यह होली गोबर के कंडों और गोकाष्ठ से बनाकर उसकी पूजा-अर्चना की गई और फिर जलाई गई। होलकर वंशज आज भी इस ऐतिहासिक परंपरा को बड़ी श्रद्धा से निभा रहे हैं।

गुरुवार को राजवाड़ा पर प्रदोष काल में शाम 7 बजे सरकारी होलिका का दहन किया गया। होलकर राजवंश के शिवाजी राव होलकर (रिचर्ड महाराज) होलिका दहन करने के लिए इंदौर पहुंचे। उनके साथ करीब 40 विशिष्ट मेहमान भी थे। वहीं इंदौर के सांसद शंकर लालवानी और महापौर पुष्यमित्र भार्गव भी इस दौरान मौजूद थे। होलिका दहन के बाद सभी ने एक-दूसरे को गुलाल लगाकर होली की बधाई दी।

इससे पहले शिवाजी राव होलकर ने राजवाड़ा में भगवान के दर्शन कर देवी अहिल्या की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। इसके बाद होलिका की पूजा की। होलिका दहन के बाद राजवाड़ा स्थिति मल्हारी मार्तंड मंदिर में पूजन-अर्चन कर रंग गुलाल खेला गया। इसके बाद अहिल्याबाई की गादी पर चांदी की पिचकारी से रंग डाला गया। इस पावन अवसर पर बड़ी संख्या में शहरवासी उपस्थित रहे।

1100 कंडों से होगा होलिका दहन

राजवाड़ा स्थित मल्हारी मार्तंड मंदिर के पुजारी पंडित लीलाधर वारकर ने बताया कि इंदौर में सरकारी होलिका का दहन 1100 कंडों से किया गया। पिछले कई सालों से कंडों से होलिका दहन किया जा रहा है। हर साल की तरह तय समय पर होलिका दहन किया गया।

पंडित वारकर ने बताया अहिल्या बाई होलकर जिन चांदी के बर्तन का इस्तेमाल पूजन में करती थी। उन्हीं चांदी के बर्तनों को होलिका दहन की पूजा में इस्तेमाल किया। इसमें चांदी की थाल, कटोरे, चम्मच, चांदी की पिचकारी, कटोरियां, जलपात्र सहित कई बर्तन है। बुधवार को इन बर्तनों को साफ किया गया। खास बात यह है कि चांदी के कई बर्तनों पर आकर्षक नक्काशी की गई है। ये बर्तन करीब तीन सौ साल पुराने हैं।

सरकारी होलिका दहन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। होलिका दहन के बाद इंदौर में कई जगह होलिका दहन किया जाता है। इसके साथ ही सरकारी होलिका दहन होने के बाद कई महिलाएं होलिका की पूजा करती हैं और परिक्रमा करती हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर