home page

भोपाल : जनजातीय संग्रहालय में घुमन्तुओं की भाषा : शब्द संचय प्रविधि विषय पर चार दिवसीय शिविर प्रारंभ

 | 
भोपाल : जनजातीय संग्रहालय में घुमन्तुओं की भाषा : शब्द संचय प्रविधि विषय पर चार दिवसीय शिविर प्रारंभ


भोपाल : जनजातीय संग्रहालय में घुमन्तुओं की भाषा : शब्द संचय प्रविधि विषय पर चार दिवसीय शिविर प्रारंभ


- बेड़िया, पारधी, कुचबंदिया, गाड़िया लोहार, बंजारा समुदायों की अलिखित एवं मौखिक भाषा पर किया जा रहा कार्य

भोपाल, 1 अगस्‍त (हि.स.)। जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी एवं सोसायटी फॉर एंडेंजर्ड एंड लेसर नोन लैंग्वेज , लखनऊ के सहयोग से मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में गुरुवार काे 1 से 4 अगस्त तक घुमन्तुओं की भाषाः शब्द संचय प्रविधि विषय पर शिविर का आयोजन किया गया है। इस शिविर में प्रदेश के साथ-साथ महाराष्ट्र , उत्तर प्रदेश , छत्तीसगढ़, गुजरात, दिल्ली एवं अन्य स्थानों के भी अध्येताओं और शोधार्थियों ने भागीदारी की है।

इस शिविर के माध्यम से बेड़िया, पारधी, कुचबंदिया, गाड़िया लोहार, बंजारा समुदायों की अलिखित एवं मौखिक भाषा में उपयोग किए जाने वाले शब्दों का संचय एवं किया जायेगा। इस बारे में अकादमी निदेशक, डॉ.धर्मेंद्र पारे ने बताया कि इस शिविर के माध्यम से जो भी शब्दों का संचय होगा उसकी एक टॉकिंग डिक्शनरी तैयार कराई जाएगी। मध्यप्रदेश में 51 घुमन्तू समुदाय हैं और शिविर में 05 समुदायों के लोगों को आमंत्रित किया गया है और उनके साथ शब्दों का संचय किया जा रहा है। प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में ऐसा कार्य पहली बार किया जा रहा है, जिसमें घुमंतू समुदाय में अलिखित एवं मौखिक शब्दों का संचय किया जा रहा हो।

शिविर के पहले दिन कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन एवं अतिथियों के स्वागत से किया गया। इस दौरान मंच पर अकादमी निदेशक, डॉ. धर्मेंद्र पारे, सोसायटी फॉर एंडेंजर्ड एंड लैसर नोन लैंग्वेज ,लखनऊ की डायरेक्टर प्रो. कविता रस्तोगी, बेडिया समुदाय की श्याम बाई, पारधी समुदाय के सुन्दर लाल, गाड़िया लोहार समुदाय से गौरे लाल, कुचबंदिया समुदाय से किशन कुचबंधिया एवं बंजारा समुदाय से गोपी उपस्थित रहे।

शिविर के दौरान प्रो. कविता रस्तोगी ने बताया कि घुमन्तुओं की भाषा पर कार्य करने के लिए एकत्रित हुए हैं। भारत एक बहुभाषी देश है। भाषा के माध्यम से सिर्फ आपस में बातचीत करने और सिर्फ पढ़ने-लिखने के लिए ही नहीं, बल्कि भाषा के माध्यम से हमारी परंपराएं, ज्ञान, प्राचीन इतिहास, रीति-रिवाज सब नई पीढ़ी तक पहुंचती है। आज अपनी भाषा बोलना छोड़ रहे हैं, जिससे हमारी परंपराएं और ज्ञान लुप्त होता जा रहा है। इस शिविर के माध्यम से प्रदेश के पांच समुदायों की भाषा पर कार्य किया जा रहा है। भाषा विद होने के चलते प्रतिभागियों को वैज्ञानिक पद्धति से परिचित कराकर भाषा के शब्दों का संचय किया जायेगा। इस शिविर के माध्यम से शब्दों के डेटा को रिकॉर्ड कर त्रिभाषी कोष को तैयार किया जायेगा।

हिन्दुस्थान समाचार / उम्मेद सिंह रावत / मुकेश तोमर