दीपावली अब विश्व धरोहर : मप्र में भी भारत की सांस्कृतिक विजय पर नेताओं के उमड़े गर्व और उत्साह के स्वर
भोपाल, 10 दिसंबर (हि.स.)। यूनेस्को द्वारा दीपावली को ‘अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ की प्रतिनिधि सूची में शामिल किए जाने के बाद पूरे देश में गर्व और उल्लास की लहर दौड़ गई है। इसे भारत की हजारों वर्षों पुरानी सांस्कृतिक परंपरा की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली ऐतिहासिक मान्यता माना जा रहा है। प्रधानमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्रियों यहां तक कि राज्य के मुख्यमंत्री व अन्य मंत्रियों तक सभी नेताओं ने इसे भारत की सांस्कृतिक चेतना को वैश्विक पहचान दिलाने वाला “गौरवशाली क्षण” बताया। मध्य प्रदेश सहित पूरे देश से इस निर्णय पर खुशी भरे संदेश लगातार सामने आ रहे हैं।
प्रदेश के नेताओं ने कहा कि यह निर्णय भारत ही नहीं, बल्कि संपूर्ण भारतीय समुदाय के लिए अतुलनीय गर्व का क्षण है। इस कड़ी में पहले मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदेश को सोशल मीडिया पर आगे बढ़ाया, फिर राज्य के संस्कृति, पर्यटन, धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मंत्री धर्मेन्द्र सिंह लोधी का वक्तव्य विशेष रूप से सामने आया, जिन्होंने अपने एक्स (X) अकाउंट पर लिखा: “गौरवशाली क्षण, विश्व धरोहर ‘दीपावली’... प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत ने संस्कृति के क्षेत्र में एक और उपलब्धि हासिल की है। यूनेस्को ने दीपावली पर्व को अमूर्त विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया है।”
लोधी के अनुसार, यह मान्यता भारत की सांस्कृतिक शक्ति को वैश्विक स्तर पर स्थापित करती है और दुनिया को यह संदेश देती है कि भारत की परंपराएं केवल धार्मिक या सामाजिक आयोजन भर नहीं, बल्कि मानवता के लिए प्रेरणाभूमि हैं।
उल्लेखनीय है कि बुधवार को सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घोषणा पर अपनी गहरी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि “भारत ही नहीं, दुनिया भर में करोड़ों लोगों के लिए दीपावली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, आस्था और सभ्यता से गहराई से जुड़ा हुआ प्रतीक है। दीपावली प्रकाश, धर्म, न्याय और मानवता के उजाले का पर्व है। इसका यूनेस्को सूची में शामिल होना प्रत्येक भारतीय के लिए गर्व का विषय है।” प्रधानमंत्री के अनुसार, यह मान्यता इस पर्व की वैश्विक लोकप्रियता और इसकी सांस्कृतिक गहराई को और मजबूती से स्थापित करती है।
इसके बाद केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने इसे एक ऐतिहासिक पल बताते हुए कहा कि दीपावली केवल उत्सव नहीं, बल्कि भारत के आध्यात्मिक दर्शन, परिवार और समाज के मूल्यों का जीवंत प्रतीक है। उन्होंने कहा कि यूनेस्को की यह मान्यता उन सभी श्रमिकों, कारीगरों, कलाकारों और परंपराओं को भी सम्मान देती है जो पीढ़ियों से दीपावली जैसे विशाल सांस्कृतिक पर्व को जीवित रखे हुए हैं, चाहे वे दीये बनाने वाले कुम्हार हों, पारंपरिक मिठाइयों के रसोईये हों, पूजा-व्यवस्थाओं को संभालने वाले पुरोहित हों या गांव-गांव में सजावट बनाने वाले हस्तशिल्पी।
शेखावत ने कहा कि यह उपलब्धि “भारत की जीवंत सांस्कृतिक धड़कन” को विश्व मंच पर नई पहचान देती है और अब यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि इस विरासत को और सम्मान, संवर्धन और संरक्षण के साथ आगे बढ़ाया जाए। उनकी यह प्रतिक्रिया भारतीय संस्कृति के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करती है।
इस निर्णय के बाद विशेषज्ञों का मानना है कि इससे न केवल भारत की सांस्कृतिक विश्वसनीयता बढ़ेगी, बल्कि दीपावली से जुड़े पारंपरिक रोजगार, कला और हस्तशिल्प को भी अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगी। इससे भारत के लोक कलाकारों व कंचनकारी परंपराओं के पुनरोद्धार को भी गति मिलने की उम्मीद है।
देशभर में आम नागरिकों ने भी इस खबर का स्वागत किया है। सोशल मीडिया पर “#DiwaliWorldHeritage” लगातार ट्रेंड कर रहा है। लोगों का कहना है कि यह केवल एक त्योहार को पहचान मिलने का क्षण नहीं, बल्कि भारत की संपूर्ण सांस्कृतिक विरासत की जीत है।
निस्संदेह, दीपावली का यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल होना भारत की सांस्कृतिक कूटनीति की बड़ी सफलता है। आज जब दुनिया सांस्कृतिक विविधता, संवाद और सहअस्तित्व के मूल्यों की ओर देख रही है, तब दीपावली जो प्रकाश, आशा और मानवता का सार्वभौमिक संदेश देती है का यह सम्मान भारत के संदेश को और भी प्रभावशाली बना देता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी

