ल्यो फिर हार गए. ये न्यूजीलैंड वाले जब जब घर बुलाते हैं चीटिंग करते हैं. घर आये मेहमान की कोई ऐसे बेइज्जती करता है भला. अच्छा खासा चल रहा था लेकिन सब डिस्टर्ब कर दिए. कोहली एक अलग ही रिकॉर्ड बनाने में बिजी हैं. जब-जब न्यूजीलैंड वाले हम लोगों को अपने घर बुलाये हैं घास पे छोड़ देते हैं. फिर कहते हैं खेलो. बताओ भला घास पे आदमी खेलेगा कि फिसलेगा। गेंद ऐसे घूमती है जैसे बैट से पिछले जन्म की दुश्मनी हो. बहुत बदमाशी करती है गेंद. घूमघाम के सीधे स्टंप में घुस जाती है. बेचारे हमारे बल्लेबाज बल्ला अड़ाए खड़े रह जाते हैं और गेंद बेवफ़ाई करके स्टंप उखाड़ देती है. कीवी बहुत बड़े वाले धोखेबाज हैं. अरे अपनी बारी में तो आराम से इत्मीनान से बैटिंग कर लेते हैं. जब हमारी बारी आती है तो जल्दी जल्दी आउट कर देते हैं. अब ये क्या बात हुई भला. अरे पूरी फील्डिंग किये हैं तो बैटिंग तो पूरी देओ. हमारे कुछ बल्लेबाज तो इसी गुस्से में आउट होके पवेलियन लौट जाते हैं. लेकिन सारी गलती कीवियों की भी नहीं है. अभी तो हम कोरोना से उबरे हैं. ढंग की प्रैक्टिस भी नहीं मिल पाई होगी. लेकिन बात तो ये भी है कि जब छोटे छोटे बच्चे भी अपनी पढ़ाई ऑनलाइन कर सकते हैं तो ये तो सब महान खिलाड़ी हैं. ऑनलाइन प्रैक्टिस भी कर लिए होते. अब सही बात तो ये है कि इस हार का सारा कुसूर इस मुँहजले कोरोना का ही है. अब पूरा कोरोना काल तो काट दिया चारदीवारी के अंदर. प्रैक्टिस क्या खाक करते. उधर कीवी डटे रहे. चुप्पे चुप्पे सारी रणनीति बना डाले. कोहली अलग परेशान हैं. उनकी आरसीबी वैसे भी अलग ही रिकॉर्ड बना रही है. टीम इंडिया को भी उसी दिशा में ले जा रहे हैं. शास्त्री जी तो अलग ही शास्त्र पढ़ने में व्यस्त रहते हैं. सब कुछ तो ठीक है लेकिन लगातार हारते फाइनल कहीं खेला न बिगाड़ दें. यह एक
व्यंग्य लेख है. इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति, पद, संस्था या स्थान की छवि खराब करना नहीं है. न ही इसका कोई राजनीतिक मन्तव्य है