फिर लौटी टूलकिट, बीते एक साल में कुछ हुआ हो या न हुआ हो लेकिन लोगों के शब्दकोश ने खूब तरक्की की है. ऐसे नये नये और क्लिष्ट शब्द सीखे हैं कि पूछिए मत. अभी नई वाली टूलकिट से कुछ ही दिन पहले सबका परिचय हुआ था. लोग कहीं भूल न जाएं तो फिर से टपक पड़ी. अभी तक जनता केवल औजारों वाले टूलकिट से ही परिचित थी लेकिन जनता गलत थी. असल टूलकिट तो ये है जो अब बाहर आई है. पता चला है कि खोंग्रेस ने एक नई टूलकिट का अविष्कार किया है. भापा वाले इसे लेके एकदम चढ़ बइठे. पात्रा तो एकदमै जोश में आ गए. लेकिन अबकी बार खांग्रेस ने पिछली वाली गलती नहीं दोहराई. सीधे थाने पहुंच गए एफआईआर दर्ज कराने. आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया. न्यूज़ चैनल वालों को बैठे बिठाये मुद्दा मिल गया. फिर इनके स्टूडियो गर्मागर्म बहसों से खूब हिले. हालांकि जनता ने राहत की साँस ली. कोरोना की खबरों से मिले ब्रेक ने लोगों का बीपी लेवल और दिल की धड़कनों को कुछ हद तक सामान्य किया. शुरू शुरू में तो भापा लीड लिए रही. लेकिन पात्रा बाबू का जोश ऐसे हिलोरें मार रहा था कि ओवर कॉन्फिडेंस में ट्विटर पे एक कागज पोस्ट कर दिए. ट्वीटर की पात्रा बाबू से न जाने कौन दुश्मनी थी उस कागज को 'मैनिपुलेटेड मीडिया' घोषित कर दिया. अब पात्रा और भापा एक दूसरे का मुँह ताकने लगे. सम्भले तो ट्वीटर की नीतियों को गलत बता के किसी तरह बात संभाले. लेकिन खांग्रेस की तो बल्ले बल्ले हो गई. वैसे पिछली बार भी भापा वाले टूलकिट को लेके मुँह की खाये थे. अच्छा खासा काम बन गया था. काफी दूर तक घसीट भी लाये थे लेकिन माननीय अदालत ने जोर का झटका जोर से ही दे दिया था. विडम्बना ही है कि एक ओर जहां देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है वहीं हमारे राजनेताओं के लिए अब भी 'टूलकिट' जैसे मुद्दे अहम हैं. मालूम होता है कि इन नेताओं को टीवी पे बहस करने की ऐसी लत लग चुकी है कि अगर एक दो दिन टीवी पे आने को न मिले तो इनके खाने का स्वाद ही चला जाये. जनता की फ़िक्र होती तो ये टीवी के बजाय जमीन पे नजर आते. अगर कोई बात इतनी ही गलत, पार्टी और देश विरोधी है तो लड़ाई कोर्ट में लड़ने के बजाय सोशल मीडिया पे लड़ना उचित है? ये और बात है कि इसी बहाने जनता का भी मनोरंजन हो जाता है वर्ना कपिल शर्मा शो बंद होने के बाद तो लोग हँसना भूल ही गये थे. यह एक
व्यंग्य लेख है. इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति, पद, संस्था या स्थान की छवि खराब करना नहीं है. न ही इसका कोई राजनीतिक मन्तव्य है.