हमारे देश में कुछ अधिकारी बहुत कर्तव्य परायण हैं. कोई जरा सा भी नियम तोड़े तो बौखला उठते हैं. एक साहेब छत्तीसगढ़ में मोर्चा संभाले हैं तो दूसरी मैडम पड़ोस के एमपी में किला संभाले हैं. ऐसे ही अधिकारियों के बूते देश चल रहा है वरना अब तक तो क्या हो गया होता. छत्तीसगढ़ में बेचारा नाबालिग सा दिखने वाला लड़का दादी की दवाई के लिए सड़क पर निकल आया तो कलेक्टर साहेब को एकदम नागवार गुजरा. थप्पड़ तो जो जड़े सो जड़े मोबाइल ऊपर से पटक दिए. अब स्मार्ट फ़ोन में भला जान ही कितनी होती है. ऑन द स्पॉट दम तोड़ गया. लेकिन साहेब का मन नहीं माना. पुलिस वालों को तुरन्त लाठीचार्ज का आदेश दिए. हुक्म की तामील हुई और तुरत फुरत लड़के के पिछवाड़े की मसाज की जाने लगी. अब कलेक्टर साहब भले लालफीता युग में जी रहे हों लेकिन जमाना तो स्मार्ट हो चुका है. किसी ने चुप्पे से वीडियो बना लिया. इधर साहेब मिशन पूरा करके निकले उधर वीडियो वायरल हो गया. बात ऊपर तक पहुँची तो साहेब अपना वीडियो जारी कर दिए. बहुत समझाने की कोशिश किये. उसका नतीजा ये हुआ कि मंत्री जी नाराज हो गए जिस पद का गुमान दिमाग में घुस गया था वही छीन लिया गया. लड़के को थप्पड़ के बदले नया नवेला मोबाइल मिल गया. मीडिया में आने का मौका मिला सो अलग. मतलब आम के आम गुठलियों के दाम. अब छोटा भाई इतनी मेहनत कर रहा है तो बड़के भैया काहे पीछे रहें. यहाँ की अधिकारी अपर कलेक्टर ने तत्काल कमान संभाली. निकल पड़ीं सड़क पे. एक जनाब दुकान खोलये मिल गया. बस फिर क्या था. मैडम ने जमकर हाथ खोले. वीडियो तो उसका भी बना. मतलब भर का वायरल भी हुआ लेकिन अभी पद पर सही सलामत है. यूपी के उन्नाव में तो वर्दी ने सारी हदें ही पार कर दी. कोरोना कर्फ्यू का उल्लंघन कर सब्जी बेच रहे एक युवक को पुलिस वालों ने इतना पीटा कि बेचारे की जान ही चली गई. सोच लीजिये नियमों का पालन कितना जरूरी है. यदि पालन नहीं किये तो जान के लाले हैं. वैसे कर्फ्यू तोड़ने पर सजा के तौर पर कुछ प्रावधान जरूर किये गये होंगे. लेकिन वर्दी के आगे कोई नियम कानून चला है आज तक? तो बस पुलिस वालों ने वही फैसला सुना दिया. अब इतना बड़ा कांड करने के बाद तो कार्यवाई होनी ही थी. लेकिन फिर भी ये घटना आम जनता के प्रति अधिकारियों की सोच को बहुत हद तक स्पष्ट करती है. ये तो कुछ बानगी मात्र हैं. ऐसे न जाने कितने किस्से कहानियां होंगी जो वीडियो में कैद हो ही नहीं पाती. सब अधिकारी ऐसे ही हैं ऐसा भी नहीं है. लेकिन यही जो 'कुछ' लोग हैं और जो उनकी मानसिकता है जनता की नजर में वही पूरी बिरादरी की मानसिकता बनती जा रही है. यह एक
व्यंग्य लेख है. इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति, पद, संस्था या स्थान की छवि खराब करना नहीं है. न ही इसका कोई राजनीतिक मन्तव्य है.