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मनोबल बढ़ाने कारगिल आए थे नरेंद्र मोदी और प्रो. धूमल, कारगिल वार हीरो खुशहाल पर बन रही फिल्म खुखरी

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मनोबल बढ़ाने कारगिल आए थे नरेंद्र मोदी और प्रो. धूमल, कारगिल वार हीरो खुशहाल पर बन रही फिल्म खुखरी


मंडी, 25 जुलाई (हि.स.)। कारगिल युद्ध में आज ही के दिन भारतीय सेना ने आखिरी चोटी पर तिरंगा लहराया था और शत्रु सेना को खदेडऩे के बाद देश में युद्ध विजय पर जश्न मनाया गया था। 26 जुलाई को पिछले 19 वर्षों से कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। संयोग से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस वक्त हिमाचल प्रदेश के भाजपा प्रभारी थे और प्रदेश में मुखयमंत्री की कमान प्रो. प्रेम कुमार धूमल के पास थी। तत्कालीन पार्टी प्रभारी नरेंद्र मोदी की जिद पर दोनों नेता अपनी टीम के साथ विषम परिस्थितियों में भी भारतीय सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए कारगिल पहुंचे थे और श्रीनगर के रास्ते वापस हिमाचल लौट आए थे।

कारगिल वार हीरो के नाम से जाने वाले युद्ध सेवा मैडल विजेता ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर इसका जिक्र करते हुए बताते हैं कि देश में अटल बिहारी वाजपेई जैसे सक्षम नेतृत्व की सरकार थी और स्वयं रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीस हमारा मनोबल बढ़ाने के लिए कारगिल आए थे। जिस दिन भी हिमाचली जवान के शहीद होने की खबर उन्हें वायरलैस से मिलती तो उस दिन दुश्मन सेना पर और जोश से उनके सैनिक हमला बोलते थे।

अब अपनी युद्ध स्मृतियों को ताजा करते हुए मंडी जिला के नगवाईं निवासी सेवा. ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर ने कहा कि कारगिल युद्ध विजय में भारतीय सेना के 18 ग्रनेडियर्ज का योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहा। 18 ग्रनेडियर्ज ने इस युद्ध में न केवल अपने दो जांबाज आफिसर्ज खोए बल्कि 34 सैनिक और 2 जे.सी.ओ. ने भी देश की खातिर प्राण न्यौछाबर किए। यही नहीं 18 ग्रनेडियर्ज के 95 सैनिकों और आफिसर्ज के सीने गोलियों से छलनी हुए थे लेकिन बावजूद इसके दो महत्वपूर्ण चोटियों तोलोलिंग व टाईगर गिल को फतह करने में 18 ग्रनेडियर्ज कामयाब रही और कारगिल युद्ध जीत में सबसे यादा योगदान दिया। खास बात यह रही कि इस पूरी पलाटून की कमान तत्कालीन कर्नल खुशहाल ठाकुर के पास थी जो युद्ध में कंमांडिंग आफिसर थे। 18 ग्रनेडियर्ज को इस युद्ध में 52 गलैंटरी अवार्ड मिले जो किसी भी युद्ध में सबसे यादा पुरस्कार थे और सर्वोा वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र भी 18 ग्रनेडियर्ज के ग्रनेडियर योगिंद्र यादव को मिला। जिनके अदय साहस ने शत्रु सेना को टाईगर हिल पर छक्के छुड़ा दिए थे।

इसी पलाटून के कैप्टन सचिन निबलेकर को वीरचक्र व लैटिनैंट बलबान ङ्क्षसह को महावीर चक्र से नवाजा गया। इस पलाटून को घातक नाम दिया गया था और इसके सैनिकों को पहचानना भी मुश्किल था क्योंकि कई दिनों ये इन्होंने दाड़ी तक नहीं बनाई थी और कई दिनों से नहाए नहीं थे। पलाटून के सराहनीय योगदान के चलते कर्नल से खुशहाल ठाकुर को ब्रिगेडियर बनाया गया और उन्हें कारगिल हिरो का नाम दिया गया।

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने स्वयं इस कामयाबी के लिए ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर व उनकी टीम की पीठ थपथपाई थी।

खुशहाल ठाकुर का कहना है कि इस पूरे युद्ध में भारतीय सेना ने 527 सैनिक और 26 आफिसर खोए और 1363 सैनिक और 66 आफिसर जमी हुए जबकि 1 सैनिक को पाकिस्तानी पकड़ कर ले गए। उनका कहना है कि 1939 के बाद पहली बार कारगिल युद्ध में सेना अधिकारियों के मरने की रेशो बढ़ी। देश की आजादी के बाद 24 सैनिक पर एक आफिसर मरता रहा लेकिन कारगिल युद्ध में 16 सैनिक पर एक आफिसर ने अपने प्राणों की आहुति दी जिससे साबित होता है कि भारतीय सेना ने अपने जवानों के साथ छाती तानकार लड़ाई लड़ी और जीत देश के नाम की। कारगिल वार हीरो रहे ब्रिगेडियर खुशहाल पर अब उनके दक्षिण अफ्रीका में भारतीय सेना दल का नेतृत्व करने के लिए खुखरी नाम से फिल्म बन रही है।

22 मई से चला था आप्रेशन

सेवानिवृत ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर का कहना है द्रास सैक्टर में बिगड़े हालात को देखते हुए उन्हें 22 मई 1999 को सबसे पहले तोलोलिंग चोटी पर चढ़ाई के आदेश मिले तो उन्होंने उसी दिन अपनी 18 ग्रनेडियर्ज व 2 राजपुताना राईलज के साथ चोटी की ओर कूच किया लेकिन दिन के वक्त शत्रु सेना के स्नाईपर गोलियां दागने लगे तो उन्हें रात के अंधेरे में चोटी पर चढ़ाई करनी पड़ी। कई दिन ताजा खाना नहीं मिला और बिना नहाए सैनिक दिन के उजाले में ओट लेकर हथियारों को धार देते रहे और रात होते ही 17 हजार फीट की ऊंचाई वाली चोटी पर चढ़ते गए।

पत्नी का पत्र बिना पढ़ शव के साथ वापस भेजा

उनकी टुकड़ी ने मेजर राजीश अधिकारी की अगुवाई में तोलोलिंग पर धावा बोला जिसमें मेजर ने चार पाकिस्तानी मार गिराए और उनके सीने पर गोली लगी। खास बात यह रही कि वे मैकेनिम से थे और मात्र मात्र आठ दिन बाद उन्हें अपनी पलाटून में वापस जाना था लेकिन शत्रु सेना को खदेडऩे के लिए उन्हें अपने प्राणों की आहूति देनी पड़ी और उनकी नवविवाहिता पत्नी किरण का पत्र उन्हें 29 मई को मिला था जिसे वे पढ़ नहीं पाए और जब उनकी मौत हुई तो पत्र वापस शव के साथ घर भेजा गया जिसे आज भी उनकी पत्नी किरण ने संभाल रखा है। इसी पलाटून के सैकिंड कमांडिंग आफिसर आर. विश्वानाथन ने भी अपने अदय साहस के बूते तीन पाकिस्तानी सैनिक मारे गिराए थे और गोली लगने के बाद ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर की गोद में दम तोड़ा था। दो जांबाज अफसरों को खोने के बाद उनकी टूकड़ी गुस्से से लाल थी और 12 सैनिक खोने के बाद 14 जून को तोलोलिंग चोटी फतह कर ली।

4 जुलाई को टाईगर हिल पर चढ़े और हुआ सीज फायर

ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर ने कहा कि तोलोलिंग पर तिरंगा फहराने के बाद उन्हें सबसे दुर्गम टाईगर हिल से दुश्मनों को मार भगाने का काम 4 जुलाई को सौंपा गया। कैप्टन सचिन निबलेकर और लैटिनैंट बलवान के नेतृत्व में टूकड़ी आगे बढ़ी और ग्रनेडियर योङ्क्षगद्र यादव के अदय साहस के आगे शत्रु सेना टीक नहीं पाई और उन्होंने कई बंकरों को तबाह कर डाला और शत्रु सेना पीछे हटने पर मजबूर हुई। मौके को भांपते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ रातोंरात अमेरिका भाग गए और वहां से डर के मारे सीज फायर का ऐलान कर डाला। इस तरह टाईगर हिल पर शत्रु सेना को भगाने में भी 18 ग्रनेडियर्ज का योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहा।

हिमाचल को मिले थे दो परमवीर चक्र

इतिहास में पहली बार किसी युद्ध में हिमाचलियों का सबसे यादा रोल रहा था। दिल मांग मोर का नारा देने वाले कैप्टन विक्रम बतरा को मरणोंपरात व सैनिक संजय कुमार को परमवीर च्रक से नवाजा गया था। इस युद्ध में जिला कांगड़ा से 15, हमीरपुर से 7, बिलासपुर से 7, मंडी से 11,शिमला से 4, ऊना से 2, सोलन से 2, सिरमौर से 2, चंबा व कुल्लू से 1-1 सहित कुल 52 जवान शहीद हुए थे।

हिन्दुस्थान समाचार

हिन्दुस्थान समाचार / मुरारी शर्मा / सुनील शुक्ला