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हिमाचल प्रदेश में लगे भूकंप के झटके, कोई नुकसान नहीं

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हिमाचल प्रदेश में लगे भूकंप के झटके, कोई नुकसान नहीं


शिमला, 15 दिसंबर (हि.स.)। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने हाल ही में हिमाचल प्रदेश को भूकंप के लिहाज़ से अतिसंवेदनशील जोन छह में शामिल किया है। ऐसे में पूरे प्रदेश में भूकम्प का खतरा बढ़ गया है। इस बीच प्रदेश के मंडी जिले में सोमवार को भूकंप के हल्के झटकों से धरती हिल गई।

भूकंप दोपहर 1 बजकर 21 मिनट पर महसूस किया गया। इससे कुछ क्षणों के लिए लोग सहम गए। हालांकि राहत की बात यह रही कि कहीं से भी जान-माल के नुकसान की कोई सूचना नहीं मिली है।

नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के अनुसार भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 3.1 दर्ज की गई। भूकंप का केंद्र मंडी क्षेत्र में 31.39 डिग्री उत्तरी अक्षांश और 77.24 डिग्री पूर्वी देशांतर पर स्थित था। इसकी गहराई जमीन की सतह से लगभग पांच किलोमीटर नीचे रही। कम गहराई में आने के कारण भूकंप के झटके आसपास के क्षेत्रों में महसूस किए गए, लेकिन तीव्रता कम होने के कारण इसका असर सीमित दायरे तक ही रहा।

राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने भी स्पष्ट किया है कि मंडी, शिमला या आसपास के किसी भी क्षेत्र से नुकसान की कोई रिपोर्ट नहीं मिली है।

बता दें कि हिमाचल प्रदेश में पिछले कुछ बर्षों से अलग-अलग जिलों में हल्के भूकंप के झटके समय-समय पर महसूस किए जा रहे हैं। इन भूकंपों की तीव्रता अधिकतर तीन से चार के बीच रही है। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे छोटे भूकंप हिमालयी क्षेत्र में भूगर्भीय गतिविधियों का संकेत होते हैं, लेकिन इनसे बड़े नुकसान की संभावना कम रहती है।

भूकंप के लिहाज से हिमाचल प्रदेश देश के सबसे संवेदनशील राज्यों में शुमार है। राज्य का अधिकांश भाग पहले सिस्मिक जोन-4 और जोन-5 में रखा गया था, जहां भूकंप का खतरा अधिक माना जाता है।

पिछले दिनों भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने भूकंप खतरे का नया राष्ट्रीय मानचित्र जारी किया है। इसमें पूरे हिमाचल प्रदेश को एक नई और उच्चतम भूकंपीय श्रेणी ज़ोन-6 में शामिल किया गया है। इसके साथ ही हिमाचल अब देश के सबसे खतरनाक भूकंप संभावित क्षेत्रों में गिना जाएगा।

पहले के मानचित्र में हिमाचल को अलग-अलग हिस्सों में बांटा गया था। कांगड़ा, चंबा, मंडी, कुल्लू, हमीरपुर और किन्नौर के कुछ क्षेत्रों को ज़ोन-5 में रखा गया था, जबकि शिमला, सोलन, सिरमौर, ऊना, बिलासपुर और लाहौल-स्पीति जैसे जिले ज़ोन-4 में शामिल थे। नए मानचित्र में यह विभाजन खत्म कर पूरे राज्य को समान रूप से उच्चतम जोखिम वाले क्षेत्र में रखा गया है।

बीआईएस के अनुसार यह मानचित्र उन्नत वैज्ञानिक अध्ययन और संभाव्य भूकंपीय जोखिम आकलन के आधार पर तैयार किया गया है।

इतिहास गवाह है कि हिमाचल को भूकंप से भारी नुकसान भी झेलना पड़ा है। वर्ष 1905 में कांगड़ा और चंबा क्षेत्र में आए विनाशकारी भूकंप में 10 हजार से अधिक लोगों की जान चली गई थी।

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हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा