माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला के जीवन की इनसाइड स्टोरी, अपराधी बनने से लेकर इनकाउंटर तक की पूरी कहानी
| Sep 9, 2022, 21:40 IST
90 का वो दशक पूर्वांचल में वर्चस्व और बादशाहत कायम करने का दौरा था. राजनीति और नाम के लिए खूनी संघर्ष होना आम बात थी. रेलवे के टेंडर हो या फिर ठीकेदारी या फिर रंगदारी, सभी के लिए दहशत कायम करना जरूरी था. इसी बीच एक ऐसा नाम सामने आया जिसने जरायम की दुनिया में अपने नाम का सिक्का चलाया. हत्या, रंगदारी, वसूली, फिरौती जिसके लिए बच्चों का खेल था. जिस डेट और टाइम की धमकी दी उसी टाइम पर काम तमाम किया. दहशत का पर्याय बन चुका, वो नाम था श्रीप्रकाश शुक्ला का. श्रीप्रकाश शुक्ला की कहानी शुरू होती है, गोरखपुर से. वही गोरखपुर जिसका नाम गोरक्षपीठ के नाम पर रखा गया था. जिसको आज सीएम सिटी के नाम से जाना जाता है. जिस शहर ने भारत को पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, फिराक गोरखपुरी जैसी शख्सियत दी है. तो वही गोरखपुर की धरती पूर्वांचल के कुख्यात अपराधी और गैंगस्टरों के कारनामों की गवाह भी रही है. एक जमाना था, जब पंडित हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के बीच चल रहे वर्चस्व के जंग ने इस शहर को शिकागो ऑफ द ईस्ट का नाम दे दिया था. लेकिन तभी एक लड़के ने सियासत और वर्चस्व के सभी समीकरण को पलट के रख दिया. जिसका नाम सुखियों में आते ही बड़े-बड़े मठाधीश अंडरग्राउंड हो गए.
पहली हत्या और गया जेल
श्रीप्रकाश शुक्ला को शुरू से ही लग्जरी लाइफ स्टाइल जीने का शौक था. पिता जी एयरफोर्स में थे बाद में ड्यूटी से अवकाश ले लिया और फिर सरकारी ठीकेदारी का काम शुरू किया. प्रतिष्ठित परिवार में पले-बढ़े इस लड़के के जीवन में एक दिन ऐसी घटना घटी जिसने उसे अपराध के दलदल में ढ़केल दिया. घर-परिवार में कोई कमी नहीं थी, लेकिन श्रीप्रकाश को अपनी पहचान बनानी थी. एक दिन उसने उभरते अपराधी राजेश तिवारी की गोली मारकर हत्या कर दी. इलाके में दहशत फैल गई. पुलिस ने गिरफ्तारी की. करीब 2 महीने जेल में रहा. चूंकि पिता जी गोरखपुर के जाने माने ठेकेदार थे तो जमानत आसानी से मिल गई. जेल से निकलने के बाद श्रीप्रकाश के पास दो रास्ता था या तो सुधर जाए या फिर अपराध की दुनिया में कदम रखे.अपराध का रास्ता चुना
श्रीप्रकाश दूसरा रास्ता चुनते हुए मौका पाकर बैंकॉक भाग गया. बैंकाक में श्रीप्रकाश के घर परिवार के लोग रहते थे. परिवार में आर्थिक संपन्नता थी. थोड़े दिन रहने के बाद वह बैंकॉक से वापस इंडिया आ गया. इधर हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के बीच आपसी रंजिश की पटकथा अपने चरम पर थी. उस दौर में पूर्वांचल के उभरते अपराधियों को खाद पानी देने का काम बिहार कर रहा था. श्रीप्रकाश ने भी इंडिया वापिस आने के बाद बिहार की शरण ली. बिहार के मोकामा में उस समय सूरजभान सिंह के अपराध का ग्राफ बड़ी तेजी के साथ बढ़ रहा था. सूरजभान को हमेशा से ही नए लड़कों की जरूरत रहती थी. श्रीप्रकाश उसे अपने काम का लगा. सूरजभान की छत्रछाया में बिहार में श्रीप्रकाश ने हत्या, रंगदारी, वसूली और अपराध के ककहरा को सीखा. सूरजभान के साथ काम करते हुए श्रीप्रकाश का नाम तब लाइम लाइट में आया जब उसने बिहार सरकार में तत्कालीन मंत्री और बाहुबली नेता बृज बिहारी की हत्या की. इस हत्या के बाद श्रीप्रकाश का नाम सुखियों में छा गया.खुद कि पहचान बनाने कि शनक
थोड़े समय बाद वह वापस गोरखपुर लौट आया. उसने तय किया की अब अपराध की दुनिया में खुद के नाम का सिक्का चलाना है. साल था 1997 और महीना था जनवरी का. श्रीप्रकाश शुक्ला ने लखनऊ के सबसे बड़े लाटरी व्यवसाई विवेक श्रीवास्तव की लाटूल्स रोड पर 25, 30 राउंड गोलियां मारकर हत्या कर दी. इसी बीच 10 दिन बाद ही आलमबाग इलाके में ट्रिपल मर्डर हो गया. पूर्वांचल में श्रीप्रकाश को असली पहचान तब मिली जब उसने 31 मार्च 1997 को वीरेंद्र शाही की दिनदहाड़े हत्या कर दी. सुबह का समय था, 8 से 10 राउंड गोली मारी. वो भी उस दिन जब वीरेंद्र शाही के स्कूल में बच्चों का रिजल्ट बाटा जा रहा था. 400 बच्चों के साथ 400 की संख्या में अभिभावक भी मौजूद थे. इस हत्याकांड के बाद श्रीप्रकाश दहशत का पर्याय बन गया.भानु मिश्रा पर जानलेवा हमला
इसी कड़ी में साल तो वही था लेकिन तारीख थी 1 अगस्त की. उत्तर प्रदेश विधानसभा से महज कुछ दूरी पर दिलीप होटल में श्रीप्रकाश शुक्ला ने अपने साथियों के साथ मिलकर 3 लोगों को गोलियों से भून कर हत्या कर दी. जिसमें भानु मिश्रा की जान तो बच गई, लेकिन AK-47 से चले कुल 105 राउंड गोलियों में भानू मिश्रा को 27 गोली लगी. जिसका आलम यह हुआ कि भानू मिश्रा की जान तो बच गई लेकिन करीब 9 साल तक वो अपना इलाज कराते रहे. श्रीप्रकाश और भानू मिश्रा के बीच जो लड़ाई की वजह थी वो थी रेलवे के टेंडर और वर्चस्व की जंग. श्रीप्रकाश बेखौफ बादशाह बन बैठा था. दहशत का पर्याय बन चुका श्रीप्रकाश अब किसी पहचान का मोहताज नहीं था.ले ली, मुख्यमंत्री की सुपारी
हद तो तब पार हो गई जब उसने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी ले ली. सूबे के मुख्यमंत्री की सुपारी की खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल गई. जान की कीमत लगी 5 करोड़ रूपये। तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के कानों तक जब ये बात पहुंची तो केंद्र और राज्य दोनों सरकार के कान खड़े हो गए. चुकी केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की सरकार थी तो इस श्रीप्रकाश के लिए अब बेखौफ जीना इतना आसान नहीं था.STF का गठन
आनन फानन में STF का गठन किया गया. जिसका प्रमुख अजय राय शर्मा को बनाया गया. जिसमें तत्कालीन एसएसपी अरुण कुमार और सीओ हजरतगंज राजेश पांडेय को भी शामिल किया गया. STF की टीम में योग्य पुलिसकर्मियों को चूना गया. STF को हर वो सुविधा दी गई जो तत्कालीन समय में अपने आप में हाईटेक थी.फोटो के लिए मशकक्त
टीम गठन के बाद श्रीप्रकाश को पहचानना पुलिस के सामने बड़ी चुनौती थी. चुकी कोई श्रीप्रकाश की कोई तस्वीर पुलिस के पास नहीं थी. पुलिस टीम अब फोटो जुटाने में जुट गई. पता चला कि हाल ही में उसने गोरखपुर में एक शादी अटेंड की थी. जब फोटोग्राफर के पास टीम पहुंची तो उस फोटोग्राफर ने कहा मेरे पास कोई फोटो नहीं है. जो थी मैंने जला दी, क्योंकि मुझे जान से मारने की धमकी मिली थी.बहनोई के घर से मिली फोटो
खोजबीन जारी था, इसी बीच पुलिस को कही से इनपुट मिला कि श्रीप्रकाश के बहनोई अपने परिवार के साथ हजरतगंज में पराग डेरी के पास रहते है. पुलिस की टीम वहां पहुंची. पुलिस वाले बहुत कोशिश किए लेकिन श्रीप्रकाश के तस्वीर के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी. तभी टीम के एक पुलिस वाले ने उनकी बेटी से किनारे ले जाकर पूछा तो उसने बताया कि मामा इधर नहीं आए थे, हाँ वो मेरे जन्मदिन में आए थे. पुलिस वालों ने प्यार से पूछा तो उसने सारी सच्चाई बता दी. बेटी स्टडी रूम में गई और किताब से 3, 4 फोटो निकालकर लाई. फोटो आते ही श्रीप्रकाश शुक्ला के बहनोई और बहन रोने लगे क्योकि उनको भी जान का खतरा था. पुलिस वाले समझाए फोटो की सच्चाई का कभी श्रीप्रकाश को पता नहीं चलेगा.सुनील सेट्टी की फोटो बनी पहचान
एसएसपी अरुण कुमार यही सोच रहे थे कि क्या करूं जिससे श्रीप्रकाश को फोटो की सच्चाई का पता न चले तभी उनका ध्यान हजरतगंज के पास जहां आज कॉफी डे है. उस समय वहां फुटपात हुआ करता था. फुटपात पर फोटो बेचने वाली एक दुकान पर सुनील सेट्टी की फोटो टंगी थी. अरुण कुमार ने उस दुकानदार से सुनील शेट्टी की फोटो खरीदी और पहुंच गए, अमर फ्लेक्स की दुकान पर. उस समय पूरे लखनऊ में फोटो मिक्सिंग की वही मात्र एक दुकान थी. जहाँ ओर्जिनल फोटो से श्रीप्रकाश के गर्दन से ऊपरी हिस्सा लिया गया बाकी का हिस्सा सुनील शेट्टी के उस पोस्टर से जो दुकान से खरीदी गई थी. मिक्सिंग के बाद 40, 50 कलर फोटो निकली गई. उसी दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस करके पुलिस ने मीडिया को श्रीप्रकाश की कलर फोटो बाट दी. सुबह के अखबार में श्रीप्रकाश की तस्वीर दुनिया के सामने आ गई.इस बात की जानकारी श्रीप्रकाश को भी हुई. वो थोड़ा सजक हुआ और उससे भी ज्यादा परेशान की आखिर पुलिस तक मेरी तस्वीर कैसे पहुंची.
मोबाईल का शौक और आशिकी
उस दौर में मोबाइल फोन का चलन भारत में आया ही था. श्रीप्रकाश भी मोबाइल का शौकीन था. मोबाइल फोन के साथ-साथ वो PCO का भी उपयोग करता था. किसी को धमकी देना हो या फिर अपनी प्रेमिका से बात करनी हो वो PCO का उपयोग करता था. सिम उसके पास करीब 14 थे, जिसका प्रयोग बहुत इमरजेंसी में करता था. अब पुलिस के पास जो अगली समस्या थी वो थी फोन को टैप करना. टैप करने के लिए पुलिस ने IIT से पढ़े एक लड़के का सहारा लिया गया. उसने एक बॉक्स जैसा स्टूमेंट बनाया, जिससे श्रीप्रकाश के काल को रिकॉर्ड किया जा सके.उसी दिन मारा जाता श्रीप्रकाश
अब इधर STF की टीम को मुखबिर से सूचना मिली कि हजरत जनपद मार्केट में बॉम्बे हेयर कट सैलून पर श्रीप्रकाश आता रहता है. पुलिस को ये बात पता थी कि श्रीप्रकाश अपने साथियों के साथ AK-47 लेकर चलता है. STF की टीम मुस्तैद हुई. जाँच अभियान चलाया गया. इसी बीच एक दिन क्रिकेट किट का बैग लिए एक व्यक्ति दिखाई दिया। पुलिस को संदेह हुआ बैग की तलाशी ली गई. बैग से AK-47 निकला. अफसोस AK-47 लिया वो व्यक्ति श्रीप्रकाश का साथी था, उसकी मुठभेड़ में मौत हुई, श्रीप्रकाश अपने बाकी साथियों के साथ मौके से फरार हो गया.रंगदारी, फ़ोन कॉल से पुख्ता जानकारी
धीरे-धीरे सितम्बर का महीना आ गया, साल वही 1998 का था. STF की टीम को जहां क्लू मिलता वहां जाती. फोन कॉल रिकॉर्ड करती कि किसी तरह श्रीप्रकाश का कुछ क्लू मिले. इसी बीच लखनऊ में एक बिल्डर के पास रंगदारी वसूलने के लिए उसने कॉल किया। बात पुलिस तक पहुंची. बिल्डर से बोला गया कि आप बात को खींचने का प्रयाश करिये. 2,4 बार श्रीप्रकाश ने कॉल किया. जिसके बाद पुलिस को ये पक्का हो गया कि ये नंबर श्रीप्रकाश का ही है. बात-बात में उसने बोला की मैं अभी दिल्ली में हूँ और परसों पैसा तैयार रखना. इधर STF की टीम अपनी टाटा सूमो लेकर दिल्ली के लिए रवाना हो गई. पुलिस को जो लोकेशन मिली थी वो थी, दिल्ली के बसतकुंज की. STF ने दिल्ली के क्राइम ब्रांच से भी सम्पर्क किया। इसी बीच टीम दिल्ली में आकर होटल में ठहरी, लेकिन श्रीप्रकाश की लोकेशन लगातार बदल रही थी. इसी बीच तारीख आ गई 21 सितम्बर की और नवरात्रि उसी दिन से शुरू हुआ था. श्रीप्रकाश अपनी गर्लफ्रेंड से लगातर बातचीत कर रहा था और उसी समय पुलिस को पता चला कि वह 22 सितम्बर की सुबह दिल्ली एयरपोर्ट से लखनऊ के लिए रवाना होगा.लेकिन अगले दिन वह गया नहीं. रात में फिर गर्लफ्रेंड से बात किया और बताया कि फ्लाइट छूट गई मैं नहीं आ पाया.

