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देश का पहला डाकू मान सिंह जिसकी होती है, पूजा

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देश का पहला डाकू मान सिंह जिसकी होती है, पूजा
डाकू मान सिंह का नाम सुनते ही आज भी लोगों के रौंगटे खड़े हो जाते हैं. बीहड़ की राह पकड़ने वाला हर बागी मान सिंह जैसा ही आतंक पैदा करना चाहता है लेकिन सच ये भी है, उनके जैसा कोई हो ही नहीं पाया. मानसिंह भले ही पेशे से डाकू थे लेकिन उनके दिल में दया और करूणा का दरिया हमेशा बहता रहता था. यहीं वजह है कि उन्हें चंबल का रॉबिनहुड कहा जाता है. उत्तर प्रदेश में उनके गांव खेड़ा राठौर में उनसे प्रेम करने वाले लोगों ने न सिर्फ एक मंदिर का बनवाया है बल्कि उनकी मूर्ति स्थापित कर रोज देवता की तरह उनकी पूजा भी की जाती है. इतना ही नहीं मंदिर में उनकी पत्नी गायत्री देवी की भी प्रतिमा है. मान सिंह चंबल एक ऐसे डकैत थे, जिनको मारने के लिए सरकार को सेना का सहारा लेना पड़ा. बताया जाता है कि उनके गिरोह में स्थाई और अस्थाई मिलाकर सदस्य की संख्या 400 के आसपास थी. कहा ये भी जाता है कि मानसिंह महिलाओं का बहुत सम्मान करते थे. कई बार डकैती के दरमियान यदि खेड़ा राठौर के आसपास की लड़की सामने आई तो पैर छूकर उसका पूरा जेवर लौटा दिया. कहा जाता है कि मान सिंह 1939 से 1955 तक चंबल में शेर की तरह रहे. उनके नाम की तूती बोलती थी. उन पर लूट के 112 और हत्या के 185 मामले दर्ज थे, इसके बाद भी इलाके में बड़ी इज्जत थी.

इलाके के गरीब लड़कियों की शादी कराई

डाकू मान सिंह ने गरीब लड़कियों की शादी कराने का काम किया। चम्बल में डाकू मान सिंह ने ही चिट्ठी भेजकर फिरौती मांगने की परंपरा शुरू की थी. उस समय 2 से 4 हजार रुपये की फिरौती ली जाती थी. उनकी इतनी लोकप्रियता थी कि साल 1971 में मान सिंह के नाम से फिल्म भी बनी. डाकू रहकर भी इतना सम्मान पाना किसी के लिए आसान नहीं है. बुजुर्ग बताते है कि डकैती के दरमियान किसी भी डकैत साथियों को ये हिदायत रहती थी कि कोई भी महिला पर हाथ नहीं डालेगा. स्वेच्छा से जो गहने उतार कर दे दे वो ले लो. एक बार डाकू सुल्ताना पर दुष्कर्म का आरोप लगा था, इस पर मान सिंह ने उसे अपने गैंग से निकाल दिया था. 

गरीब बेटियों के लिए मसीहा रहे, डाकू मान सिंह

चंबल के कुख्यात डाकू होने के बाद भी मान सिंह की पूजा यूं ही नहीं हो रही. मानसिंह को जब पता चलता कि किसी गरीब के ऊपर अत्याचार हो रहा है तो वे गांवों में जाकर पंचायतें करते थे. कहा जाता है कि डाकू मान सिंह का फैसला सबको मंजूर होता था.डाकू मान सिंह ने गांवों में गरीब लड़कियों के विवाह का खर्च उठाया. रास्ते में कोई महिला मिल जाती तो वो उसकी सुरक्षा करते थे. उनके दल में किसी डाकू का यह साहस नहीं होता था कि किसी महिला को गलत नजर से देख लें.

दूध मिला दिया था, जहर

1955 में मान सिंह का दल भिंड जिले के लावन गांव में अपना डेरा डाले था. रात में पूरे दल को दूध के साथ मिलाकर मुखबिर ने नशीला पदार्थ दे दिया. तत्काल सभी डाकू अर्ध बेहोशी की हालत में हो गए. इसी दरमियान पुलिस आ गई. गोलियां चलीं और डाकू दल का पूरी तरह सफाया हो गया. जिन्होंने दूध नहीं पिया, वे सकुशल बच निकले थे. पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक साल 1955 में मध्यप्रदेश के भिंड में मेजर बब्बर सिंह थापा ने डाकू मान सिंह का एनकाउंटर किया था.

भतीजा और पोता रिटायर्ड पुलिस अधिकारी

कहा जाता है कि डाकू से नेता बने मान सिंह के पुत्र तहसीलदार सिंह ने मुलायम सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन वो चुनाव हार गए. तहसीलदार का पुत्र शेर सिंह मध्यप्रदेश पुलिस में DSP के पद से रिटायर्ड हैं.