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हसदेव अरण्य: आखिर कब सुना जाएगा आदिवासियों का दर्द ? कब तक जारी रहेगी हक की लड़ाई

छत्तीसगढ़ में नई सरकार बनने के बाद से ही हसदेव अरण्य एक बार फिर सुर्खियों में है. हर दिन होते तेज आंदोलन नई नवेली सरकार के लिए मुसीबत बन बैठा है. हसदेव पर आरोप प्रत्यारोप का दौर भी जारी है. बीजेपी कभी काँग्रेस पर निशाना साधती तो कभी बीजेपी के नेता काँग्रेस पर हमलावर नजर आते. जो वरिष्ठ नेतागढ़ है वो सवालों के जवाब से दूरी बनाना बेहतर समझते. जब आप कभी भारत का नक्शा उठाके देखेंगे तो बिल्कुल बीचों बीच हरा भरा इलाका हसदेव अरण्य के नाम से जाना जाता है. 
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छत्तीसगढ़ में नई सरकार बनने के बाद से ही हसदेव अरण्य एक बार फिर सुर्खियों में है. हर दिन होते तेज आंदोलन नई नवेली सरकार के लिए मुसीबत बन बैठा है. हसदेव पर आरोप प्रत्यारोप का दौर भी जारी है. बीजेपी कभी काँग्रेस पर निशाना साधती तो कभी बीजेपी के नेता काँग्रेस पर हमलावर नजर आते. जो वरिष्ठ नेतागढ़ है वो सवालों के जवाब से दूरी बनाना बेहतर समझते. जब आप कभी भारत का नक्शा उठाके देखेंगे तो बिल्कुल बीचों बीच हरा भरा इलाका हसदेव अरण्य के नाम से जाना जाता है.

हसदेव का जंगल छत्तीसगढ़, झारखंड और उड़ीसा से लगा वो हरा-भरा जंगल है जिसको इस इलाके का फेफड़ा कहा जाता है. ये इलाका सदियों से रहने वाले आदिवासियों का घर है और इसी को बचाने की गुहार लिए 'हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति' से जुड़े उमेश्वर सिंह आरमो देश के राजधानी दिल्ली पहुंचकर मीडिया से बातचीत की. बातचीत के दौरान वे बताते हैं, "हम लोगों का इलाक़ा आदिवासी बाहुल्य है. जहां पशुपालन, कृषि, लघु उद्योग सब होता है और जो खनन कार्य हो रहा है उसमें सारे जंगल को हटाया जाएगा, मिट्टी को पलटा जाएगा और कोयला निकाला जाएगा. जिसके कारण जो हमारे लघु उद्योग है वो पूरी तरह से तबाह हो जाएंगे और उस पर आश्रित हमारे लोगों पर प्रभाव पड़ेगा. हमारे जंगल में जड़ी-बूटियां हैं और बहुत से परिवार हर दिन होने वाले कार्यों में इनका इस्तेमाल करते हैं और जंगल हटने वो सब खत्म हो जाएगा. 

मीडिया से बातचीत के दौरान उमेश्वर सिंह आरमो आगे बताते हैं कि "जंगल से निकलने वाले छोटे-छोटे बारहमासी नाले हैं उससे होने वाली खेती है. जंगल कटने से छोटे-छोटे नाले खत्म हो जाएंगे. ये नाले आगे जाकर हसदेव नदी में मिलते हैं. वो खत्म हो जाएगा. तो ये वो तमाम नुकसान हैं जो सीधे तौर पर आदिवासियों को होंगे.

हमारे ये पूछने पर कि उनका परिवार यहां कितनी पीढ़ियों से रहता आया है, उमेश्वर सिंह आरमो ने कहा, "हमारी जानकारी के अनुसार हम 300 सालों से उस क्षेत्र में रह रहे हैं, अगर जंगल कटता है तो विस्थापन होगा और विस्थापित होने के बाद एक आदिवासी जो जंगल से जुड़ा है उसे दोबारा वैसा ही माहौल मिलना बहुत मुश्किल है, खासकर महिलाओं के लिए, जो जंगलों से जुड़े काम करती हैं वो नहीं कर पाएंगी."

हसदेव अरण्य की लड़ाई सिर्फ हमारी नहीं है, पर्यावरण बर्बाद होगा तो सभी को भुगतना होगा:  उमेश्वर सिंह आरमो 

उमेश्वर सिंह आरमो कहते है कि हम देश के राजधानी दिल्ली आए हैं. हम यहां हसदेव का संघर्ष साझा करने जिसके लिए हम लड़ रहे है. हम यह बताने आए हैं कि हसदेव में जो कोयला है वो पूरे भारत में पाए जाने वाले कोयले का महज 2 प्रतिशत है, तो आप उस 2% को छोड़कर वहां से कोयला निकाल लें जहां प्रकृति का कम से कम नुकसान हो तो वो बेहतर होगा. वे आगे कहते है कि इतना समृद्ध जंगल जिसे आप खत्म कर रहे हैं उससे बहुत नुकसान हो जाएगा और उससे मानव और जीव-जंतुओं का नुकसान होगा. ये लड़ाई सिर्फ हमारी नहीं है. अगर इसका ध्यान नहीं रखा गया तो आगे चलकर सबका भारी नुकसान होगा पर्यावरण बर्बाद होगा जिसका दुष्परिणाम सभी को भुगतना होगा।"

हसदेव के लिए दिल्ली में पब्लिक मीटिंग

हसदेव अरण्य के लिए संघर्ष कर रहे लोग ऐसा नहीं है कि पहली बार अपनी अपील लेकर देश की राजधानी दिल्ली पहुंचे हो. वो समय-समय पर दिल्ली में दस्तक देते रहे हैं. साल के शुरुआत में 2 जनवरी 2024 को 'प्राकृतिक संसाधनों की कॉरपोरेट लूट को बंद करो' की मांग को लेकर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक पब्लिक मीटिंग रखी गई. जिसमें हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के उमेश्वर सिंह आरमो, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन से जुड़े आलोक शुक्ला, पर्यावरण कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंतरे, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के वकील सुदीप श्रीवास्तव, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट प्रशांत भूषण, वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, राजस्थान के एमएलए थावर चंद मीणा ने हिस्सा लिया.

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ये इलाक़ा संविधान की पांचवी अनुसूची में आता है

इस प्रेस कॉन्फ्रेंस और पब्लिक मीटिंग में, छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के हसदेव अरण्य के जंगलों में 21, 22 और 23 दिसंबर, 2023 को भारी पुलिस सुरक्षा के बीच हज़ारों पेड़ों की कटाई और आदिवासी प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी  और 'दमन' की बात रखी गई.

पब्लिक मीटिंग के दौरान 'छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन' से जुड़े आलोक शुक्ला ने अपनी बात रखते हुए कहा, "हसदेव सिर्फ छत्तीसगढ़ नहीं बल्कि मध्य भारत का बहुत ही समृद्ध प्राकृतिक इलाका है। जो लगभग 1876 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। जिस जंगल से निकलकर हसदेव नदी जाती है, उस पर बने मिनी माता बांगो बांध से राज्य के चार जिलों की चार लाख हेक्टेयर जमीन सिंचित होती है। ये पूरा जंगल का इलाका बहुत महत्वपूर्ण है. वन्यजीव और हाथियों के रहवास है. सबसे महत्वपूर्ण आदिवासियों की आजीविका, संस्कृति इस जंगल पर निर्भर है. पिछले 10 सालों से हसदेव के साथी उस जंगल को बचाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि जंगल के नीचे कोयला है. हम जानते हैं कि जहां खनिज हैं उसकी परिभाषा पूरी तरह से बदल जाती है. उस इलाक़े में 22 कोल ब्लाक मौजूद हैं. एक कॉरपोरेट के मुनाफे के लिए पूरे इलाके को तबाह करने की कोशिश की जा रही है. इससे महत्वपूर्ण है कि वो इलाका संविधान की 5वी अनुसूची का इलाका है जहां पर आदिवासी इलाकों में ग्राम सभाओं को विशेष अधिकार प्राप्त है. ( पेसा कानून के तहत) ग्राम सभाओं की सहमति के बिना कोई भी परियोजना स्थापित नहीं हो सकती चाहे वो भूमि अधिग्रहण की. हसदेव


हजारों पेड़ों को काट दिया गया

हसदेव बचाओ आंदोलन से जुड़े आलोक शुक्ला बताते है, "हाल ही का जो घटना क्रम है उसमें राजस्थान को 4 कोल ब्लॉक आवंटित है. जिसके MDO एक कॉरपोरेट घराने के पास है. उसमें एक कोल ब्लॉक है - परसा, ईस्ट, केते, बासन. इन चार कोल ब्लॉक में लगभग साढ़े पांच हजार हेक्टेयर जंगल और 8 लाख के आस-पास पेड़ पूरे कटने हैं. अभी उसमें से एक कोल ब्लॉक चालू है - परसा ईस्ट केते बासन - जिसका सेकंड फेज आगे बढ़ा और 21, 22, 23 दिसंबर को लगभग 91 हेक्टेयर में 15 हजार ऑफिशियल पेड़ काटे गए लेकिन नंबर उससे ज्यादा है. लगभग 30 हजार पेड़ों को काटा गया और उस प्रक्रिया में वहां राज्य सरकार की जिस तरह से जो भूमिका थी, वो बेहद ही दुखद है. कटाई के दौरान गांव को बंधक बनाते हुए और आदिवासियों के साथ अमानवीय व्यवहार करते हुए वहां पर पेड़ों की कटाई हुई है.

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हसदेव के लिए 300 किलोमीटर की पैदल यात्रा

" साल 2021 में हसदेव के आदिवासी लोग 300 किलोमीटर पैदल चलकर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर आए थे और कहा था कि हमारी ग्राम सभाओं की सहमति नहीं हुई है और जो फर्जी आधार पर प्रक्रिया चल रही है उसको निरस्त किया जाए, छत्तीसगढ़ के तत्कालीन गवर्नर ने पत्र लिखा और कहा कि 'हां, ये गलत हुआ है और इसकी जांच की जाए' और उन्होंने ये भी कहा कि परसा कोल ब्लाक में कोई भी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए लेकिन इन सारी प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए जंगल को काटने की प्रक्रिया पिछले दिनों में हुई और आने वाले दिनों में दोबारा भी होने वाली है.

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 670 दिनों से धरने पर बैठे 

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के उमेश्वर सिंह आरमो ने भी अपनी बात रखी और कहा कि "हसदेव जहां जंगलों का विनाश किया जा रहा है, वही मेरा क्षेत्र है, मेरा गांव है, मैं वहीं से आया हूं. हमारे क्षेत्र में हम ग्राम सभा करते हैं कि हमें खदान को देना है या नहीं देना है, और प्रस्ताव करने के बाद भी सरकार उसको नहीं मान रही है और फर्जी ग्राम सभा करवाकर खदान की स्वीकृति दिला रहे है. हम लोग 670 दिनों से धरना पर बैठे हैं और कह रहे हैं कि कम से कम संवैधानिक रूप से हमें हमारे जंगल को बचाने का अधिकार इसलिए हम कोई प्रस्ताव दे रहे हैं, तो उस पर विशेष रूप से अमल करो लेकिन सरकार अमल नहीं कर रही है.

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कटाई के समय गांव हुई छावनी में तब्दील

उमेश्वर सिंह आरमो के अनुसार जिस दिन जंगल में पेड़ों की कटाई शुरू की गई उस दिन पुलिस ने गांव को छावनी में तब्दील कर दिया। वे बताते हैं कि "अभी जो पेड़ कटे उसमें हमारे 7 साथियों को जो हसदेव की लड़ाई लड़ रहे हैं जिनमें दो सरपंच भी हैं, इन लोगों के घर पुलिस रात साढ़े तीन बजे जाती है और पूरे घर को घेर लेती है. करीब 15 से 20 पुलिसकर्मी प्रत्येक घर में आवाज लगाते हैं और जैसे ही वो बाहर आते हैं उन्हें उसी स्थिति में पकड़ कर ले जाते हैं और पूरे दिन थाने में बैठाकर रखते हैं और पेड़ काटे जाते हैं. ऐसी सर्दी में कईयों ने चप्पल भी नहीं पहनी थी और पुलिस उन्हें उसी हालत में ले गई, तो इस तरह से हमारे साथी जो हसदेव के लिए लड़ रहे हैं उनके साथ पुलिस प्रशासन बर्बरतापूर्वक व्यवहार कर रहा. हम 10 साल से लड़ाई लड़ रहे हैं हम आदिवासी हैं, जंगल के क्षेत्र में हम रहते हैं.

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फर्जी FIR दर्ज करने का भी लग रहे, आरोप 

उमेश्वर सिंह आरमो पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, "हम भी क़ानून से चलते हैं. हमारे यहां भी संवैधानिक कानून है. हम भी विकास को बेहतर ढंग से समझते हैं, लेकिन हमारे साथ बर्बरता की जाती है, पुलिस के द्वारा अन्याय किया जाता है. कई साथियों के ऊपर फर्जी FIR किया गया है. हसदेव के बचाने वाले जो साथी हैं, जब कभी भी ऐसी स्थिति आती है कि पेड़ कटने हैं, तो उनके घर में पुलिस की टीम पहुंचती है और कहती है कि आपके ऊपर FIR दर्ज है आपको सीधे जेल में डालेंगे. हर समय धमकाने का काम होता रहता है.

हसदेव को लेकर आंदोलन तेज होते जा रहा. आदिवासियों के हक की लड़ाई जारी है. आगे देखते है, सरकार किस तरह से काम करती है.