यदि ये मोदी की हार है तो कांग्रेस की जीत कैसे?
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मयंक चतुर्वेदी
लोकसभा चुनाव के आए परिणाम के बाद देश अभी समीक्षा के दौर से गुजर रहा है, कहीं खुशी और कहीं गम का माहौल बरकरार है, लेकिन सत्ता का नेतृत्व फिर से नरेन्द्र मोदी के पास है। दूसरी ओर विपक्ष है, विशेष कर कांग्रेस जिसके नेता रह-रह कर इस प्रकार के बयान दे रहे हैं, जैसे उन्हें समझ नहीं आ रहा, आखिर भारतीय जनता पार्टी इतनी सीट जीत कर कैसे सरकार में आ गई? देश में फिर तीसरी बार कांग्रेस को विपक्ष में बैठना होगा।
देखा जाए तो यह सच है कि इस बार के चुनाव परिणाम भाजपा के लिए उसकी आशा अनुरूप नहीं आए, किंतु क्या यह कांग्रेस की तुलना में लगातार आनेवाले संख्यात्मक बहुत ज्यादा अच्छे परिणाम नहीं हैं? इस बात को कांग्रेस आज क्यों नहीं स्वीकारना चाहती, यदि हैं तो फिर कांग्रेस आज किस बात की खुशी मना रही है? बात तो तब होती जब भजपा-नीत एनडीए गठबंधन को वह सत्ता के लिए आवश्यक बहुमत से दूर रख पाती।
वस्तुत: आश्चर्य होता है यह देखकर कि एनडीए गठबंधन का बहुमत आने के बाद भी कांग्रेस एवं संपूर्ण विपक्ष एक ही रट लगाए हुए है कि नरेन्द्र मोदी एक व्यक्ति और संपूर्ण भारतीय जनता पार्टी एक संगठन के रूप में हार चुके हैं। जनता ने इस बार उन्हें नहीं जिताया, नकार दिया है। किंतु जो कांग्रेस आज यह कह रही है अच्छा होता वह स्वयं अपना आत्ममंथन करती और इस सच को ह्दय से स्वीकारती कि वर्तमान में जो भाजपा 240 जितनी भी सीटें एनडीए कुल 293 हासिल हुई हैं, यह बहुमत के आंकड़े 272 से 21 सीटें अधिक हैं और यह सभी सांसद प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा एवं भविष्य के विकसित भारत के संकल्प के साथ जीते हैं।
इसके बाद भी देखिए, कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश और राहुल गांधी की अकड़ कि वह नरेंद्र मोदी का मजाक उड़ाने का बार-बार प्रयास करते नजर आते हैं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश कह रहे हैं कि आज 'ढोल बजाने वाले' लोग पीएम मोदी के 'दयनीय' चुनावी प्रदर्शन को बेवजह सही ठहरा रहे हैं। ‘‘नरेंद्र मोदी के लिए ढोल पीटने वाले उनकी नैतिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत हार वाले जनादेश में भी उम्मीद की किरण तलाश रहे हैं। इसे खूब प्रचारित किया जा रहा है कि जवाहरलाल नेहरू के बाद मोदी लगातार तीन बार जनादेश प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति हैं। लेकिन किसी पार्टी को 240 सीटों तक ले जाना और एक-तिहाई प्रधानमंत्री बनना जनादेश कैसे है, इसे एक्सप्लेन नहीं किया जा रहा है। एक तिहाई प्रधानमंत्री के लिए ढोल पीटने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव में उनके ख़राब चुनावी प्रदर्शन को लाजवाब साबित करने के लिए कुछ भी ढूंढ लेंगे।’’
वस्तुत: यहां समझ नहीं आ रहा है, कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश इतनी बड़ी-बड़ी बातें किस नैतिक आधार पर कर रहे हैं? जबकि उनकी पार्टी का प्रदर्शन तो इस बार भी पिछले कई बार के लोकसभा चुनावों की तरह ही खराब रहा है। तुलनात्मक रूप से इसका अध्ययन भी किया जा सकता है। इस बार कांग्रेस शतक भी नहीं लगा सकी, 99 पर अटक कर रह गई। जबकि भाजपा को देश की जनता ने 240 तक पहुंचा दिया। इसके पहले वर्ष 2019 में कांग्रेस ने सिर्फ 52 सीटें जीती। 17 प्रदेशों में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था। दूसरी तरफ भाजपा ने 303 सीटें जीतीं। 10 राज्यों की लगभग सभी सीटें भाजपा को मिली थीं।
यहां थोड़ा इसके पहले के वर्षों का भी आंकलन करते हैं, तब 2014 में 282 सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने 59 सीटों पर और कांग्रेस ने सिर्फ 44 सीटों पर जीत हासिल की थी । यानी वह विपक्ष में अपना नेता प्रतिपक्ष भी नहीं चुन सकी थी, इतनी बुरी हालत चुनावों में कांग्रेस की होना सामने आया था। यदि और इससे पहले के 10 सालों की तुलना कांग्रेस एवं भाजपा के बीच की करते हैं तो आंकड़े तब भी भारतीय जनता पार्टी 100 का परिणाम देते हुए नजर आती है। उस वक्त (2009 में) कांग्रेस बहुमत का आंकड़ा 272 अपने दम पर नहीं ला पाई थी। कांग्रेस की अगुवाई वाले संप्रग को 262 सीटें मिली। कांग्रेस ने 206 सीटें जीतीं। वहीं, राजग को कुल 159 सीटों पर जीत मिली थी। भाजपा को 116 सीटें मिली थीं। सरकार को सपा-बसपा ने बाहर से समर्थन दिया था, तब जाकर मनमोहन सिंह को कांग्रेस दोबारा प्रधानमंत्री बनवा पाई थी।
इसके पहले 2004 के चुनाव में 145 सीटें कांग्रेस को मिली थीं, फिर भी उसने अपना प्रधानमंत्री देश को दिया था। जबकि भाजपा के खाते में इस साल 138 सीटें मिली थीं। आप इससे पहले के भी अन्य साल देख सकते हैं, जिस समय में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार रही। तेरहवीं लोकसभा में भी भाजपा को 180 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस 114 पर सिमट कर रह गई थी। बारहवीं लोकसभा के लिए भी जब 1998 में मतदान होता है तब भी भारतीय जनता पार्टी की स्थिति कांग्रेस से बेहतर रही थी। आंकड़ा दोनों के बीच का भाजपा-182 और कांग्रेस – 141 रहा था। यानी कि हर स्थिति में भाजपा एक लम्बे समय से सीटों का शतक बनाती रही है और जब भी उसे विपक्ष में बैठना पड़ा है तो एक मजबूत विपक्ष के रूप में संसद में अपनी भूमिका निभाती रही है।
फिर आज आप देखिए, कैसा अहंकारपूर्ण व्यवहार करते कांग्रेस के नेता दिखाई दे रहे हैं। आज कांग्रेस जिस तरह से मोदी और भाजपा को लेकर उनकी नैतिक हार और जनता द्वारा उन्हें नकारे जाने की बात कह रही है, सच सही है कि उसे ऐसा कहने के पूर्व स्वयं का सही ढंग से आकलन करना चाहिए। कई वर्षों से जिनका अपना स्वयं का रिकार्ड ठीक नहीं और जिसे फिर से तीसरी बार देश की जनता सिर्फ 99 सीट देती है और भाजपा को 240, जिसमें कि संपूर्ण राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को देश की जनता 293 सीट जो सभी नरेन्द्र मोदी का चेहरा आगे रखकर विकास के नाम पर जीती गई हैं। अब जब कई निर्दलियों के एनडीए में सम्मलित होने के बाद यह संख्या 300 को पार कर चुकी है, फिर भला इतनी बड़ी जीत प्राप्त करने के बाद किस जमीन पर कांग्रेस इस बार के चुनाव परिणाम को भाजपा और मोदी की असफलता के रूप में प्रचारित कर रही है?
अभी कांग्रेस कार्यालयों पर एक लाख रुपए प्राप्त करने के लिए महिलाओं की लग रहीं लम्बी-लम्बी लाइन एवं नेताओं की गाड़ियां रोक कर जिस तरह का व्यवहार इनके नेताओं के साथ महिलाएं कर रही हैं, उसके दृश्य देखकर संपूर्ण देश समझ रहा है कि कैसे-कैसे लालच वोट के लिए कांग्रेस ने जनता से किए थे। वस्तुत: आज सच यही है कि देश की जनता ने कांग्रेस को फिर एक बार नकार दिया और वह उसके किसी भी झांसे में नहीं आई। अब अच्छा यही होगा कि कांग्रेस व्यर्थ की बातें करना बंद करे और देश के संपूर्ण विकास में विपक्ष में बैठकर अपनी प्रभावी भूमिका ठीक ढंग से निर्वाह करे, जिसके लिए जनता ने उसे संसद में बैठाया है।
हिन्दुस्थान समाचार/ मयंक/संजीव