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मोहन यादव सरकार के दो वर्षों में नक्सल उन्मूलन की निर्णायक जंग

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मोहन यादव सरकार के दो वर्षों में नक्सल उन्मूलन की निर्णायक जंग


- डॉ. मयंक चतुर्वेदी

मध्य प्रदेश की राजनीति और प्रशासनिक संरचना में 13 दिसंबर 2023 का दिन 5th महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में दर्ज है, जब डॉ. मोहन यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर शासन की बागडोर संभाली। सत्ता ग्रहण करने के बाद से उनकी सरकार ने प्रदेश से नक्सल-माओवादी गतिविधियों को समाप्त करने को सर्वाधिक प्राथमिकता दी। बालाघाट, जो लगभग 35 वर्षों से लाल आतंक की आंच झेलता आया है, आज उसी आतंक से मुक्ति की दहलीज पर खड़ा दिखाई दे रहा है।

बीते दो वर्षों में हुई घटनाओं और सरकारी रणनीतियों का विश्लेषण बताता है कि मध्य प्रदेश नक्सल मुक्त होने की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठा चुका है। कहना होगा कि हाल ही हुआ सबसे बड़ा सामूहिक आत्मसमर्पण वास्‍तव में नक्सलवाद की रीढ़ पर निर्णायक वार है। एक नवंबर 2025 को नक्सली सुनीता ओयाम ने आत्मसमर्पण किया था, जिसने नक्सल मोर्चे पर बदलाव की शुरुआत को और तेज किया। हालांकि इसी दौरान एंटी नक्सल ऑपरेशन में इंस्पेक्टर आशीष शर्मा हुतात्‍मा हुए थे, उनका बलिदान यह बताता है कि नक्सल उन्मूलन की प्रक्रिया आसान नहीं रही है; इसके पीछे सुरक्षा बलों की सतत जोखिम-भरी रणनीति और बलिदान शामिल हैं।

कान्हा-भोरमदेव (केबी) डिवीजन के दस कुख्यात नक्सलियों का मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सामने आत्मसमर्पण करना बता रहा है कि नक्सलियों पर कितना दबाव है। इन पर कुल 2 करोड़ 36 लाख रुपये का इनाम घोषित था, जो इस बात का संकेत है कि वे नक्सली संगठन के सक्रिय और प्रभावशाली सदस्य थे। विशेष रूप से केबी डिवीजन के एसीएम ‘कबीर’ का आत्मसमर्पण सुरक्षा बलों के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि है, क्योंकि उस पर अकेले 77 लाख रुपये का इनाम घोषित था। राज्य और केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों ने गत दो वर्षों में संयुक्त ऑपरेशनों को गति दी है, जिससे नक्सली दलों का भूगोल सीमित हो रहा है।

वस्‍तुत: दस नक्सलियों का रातोंरात आत्मसमर्पण कराना किसी सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया का परिणाम नहीं है। देखा जाए तो यह महीनों की सामाजिक, सुरक्षा और मनोवैज्ञानिक रणनीति का हिस्सा है। वनरक्षक गुलाब उईके ने नक्‍सलियों की मानसिकता को समझते हुए उन्‍हें आईजी संजय सिंह तक पहुँचाया और फिर मुख्यमंत्री की उपस्थिति में पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी तरीके से सम्पन्न किया गया। यह दर्शाता है कि राज्य सरकार सिर्फ बल प्रयोग पर नहीं, संवाद और विश्वास-निर्माण की नीति पर भी समान ऊर्जा से काम कर रही है।

आत्मसमर्पण समारोह में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के प्रयासों की प्रशंसा की। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मध्य प्रदेश में अब किसी को हथियार उठाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। उनका दोहरा संदेश जो सरेंडर करेंगे उन्हें पुनर्वास नीति से बढ़कर सुरक्षा और लाभ मिलेगा और जो हथियार नहीं छोड़ेंगे वे कार्रवाई के लिए तैयार रहें। वस्‍तुत: सरकार की कठोर और संवेदनशील दोनों तरह की नीति को स्पष्ट करता है। यह संतुलित दृष्टिकोण कहना होगा नक्सलियों को आत्मसमर्पण करने के लिए प्रेरित कर रहा है। साथ ही ऐसे वक्‍तव्‍यों से सुरक्षा बलों के मनोबल को भी मजबूती मिल रही है।

मध्य प्रदेश शासन की ‘पुनर्वास से पुनर्जीवन’ नीति भी इस परिवर्तन की प्रमुख वजह है। इस नीति के अंतर्गत आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को सुरक्षा प्रदान किए जाने के साथ ही शासन की ओर से आजीविका, शिक्षा और पुनर्वास की गुणवत्तापूर्ण सुविधाएँ भी दी जा रही हैं। ग्रामीणों से नक्सलियों को अपेक्षित समर्थन न मिलना यह दर्शाता है कि समाज में अब हिंसा की जगह विकास को प्राथमिकता दी जा रही है।

केंद्र सरकार ने मार्च 2026 तक देश को नक्सलवाद से मुक्त करने का लक्ष्य तय किया है। वस्‍तुत: मध्य प्रदेश में यह लक्ष्य अब वास्तविकता में बदलता दिख रहा है। बालाघाट, जिसे केबी डिवीजन का मुख्य केंद्र माना जाता था, जोकि इस बड़े समर्पण के साथ ही नक्सली गतिविधियों से लगभग मुक्त होने की स्थिति में है। पुलिस और स्थानीय प्रशासन की एकजुट रणनीति ने नक्सलियों की फील्ड एक्टिविटी लगभग खत्म कर दी है।प्रदेश में अब सिर्फ एक सक्रिय नक्सली दल शेष बचा है, जिस पर फोर्स का लगातार दबाव जारी है। ऐसे में 2026 से पहले ही बालाघाट नक्सल-मुक्त होने की प्रबल संभावना है।

माओवादी मूवमेंट और नक्‍सली आतंक को लेकर यदि देखें तो 1990 से बालाघाट जिले में नक्सलवाद यहां बड़े स्‍तर पर अपने पैर पसार चुका था। केबी डिवीजन को मध्य भारत में नक्सलियों का मजबूत अड्डा माना जाता था। घने जंगल, त्रिस्तरीय पहाड़ी मार्ग और सीमावर्ती राज्यों की भौगोलिक जटिलता ने इसे नक्सलियों के लिए सुरक्षित क्षेत्र बना दिया था। किंतु बीस सालों में मध्‍य प्रदेश से नक्‍सलवाद को समाप्‍त करने की दिशा में जो कार्य हुआ कहना होगा कि उसकी अंतिम कील ठोकने का काम पिछले दो वर्षों में मोहन सरकार के आने के बाद बड़े स्‍तर पर देखने को मिला है। पहाड़ी क्षेत्रों में सुरक्षा चौकियाँ बढ़ीं। ड्रोन सर्विलांस और आधुनिक हथियारों से फोर्स सुसज्जित हुई। सड़क और संचार नेटवर्क में सुधार हुआ। ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं से जोड़ा गया। इन समग्र परिवर्तनों ने नक्सली संगठन की जड़ें हिला दीं।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के शब्‍दों में कहें तो अब प्रदेश में नक्सलियों की संख्या बेहद कम रह गई है। सरकार आत्मसमर्पण करने वालों के जीवन की गारंटी ले रही है जोकि नक्सलियों को मुख्यधारा में जुड़ने के लिए सबसे बड़ा आश्वासन है। बालाघाट के बड़े हिस्से से नक्सलियों का सफाया होते ही कान्हा क्षेत्र पूरी तरह से शांतिपूर्ण और विकासशील दिशा में अग्रसर हो जाएगा। पर्यटन, वन संपदा और ग्रामीण विकास योजनाओं को अब वास्तविक गति मिलने की संभावना बढ़ गई है।

अंत में यही कहना होगा कि डॉ. मोहन यादव सरकार के दो वर्षों में नक्सल उन्मूलन का यह मॉडल बताता है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति, आधुनिक पुलिसिंग, सामाजिक-आर्थिक विकास, पुनर्वास नीति और स्थानीय सहभागिता को जब एक साथ जोड़ दिया जाता है तो उसका यही परिणाम आता है जो इस वक्‍त प्रदेश में नक्‍सल उन्‍मूलन की दिशा में आ रहा है। आगे भी यदि लाल आतंक की समाप्‍त‍ि के लिए यही गति बनी रहती है तो इतना तय है कि मध्य प्रदेश 2026 केंद्र की डेडलाइन से पहले ही पूर्ण रूप से नक्सल मुक्त होकर पूरे देश के लिए एक मिसाल बन सकता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी