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आईआईएमसी जम्मू में प्रोफेसर राज नेहरू द्वारा लिखी पुस्तक पर विमर्श का सफल आयोजन

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आईआईएमसी जम्मू में प्रोफेसर राज नेहरू द्वारा लिखी पुस्तक पर विमर्श का सफल आयोजन


जम्मू, 30 नवंबर (हि.स.)। भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी), जम्मू में शुक्रवार को मैं शिव हूं पुस्तक पर विमर्श का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में पुस्तक के लेखक प्रोफसर राज नेहरू मौजूद रहे जो वर्तमान में विश्वकर्मा स्किल यूनिवर्सिटी के कुलपति हैं। कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. विनीत उत्पल ने डॉ. नेहरू को पुस्तक भेंट कर की। डिजिटल मीडिया के छात्र प्रणव शुक्ला ने डॉ. नेहरू का संक्षिप्त परिचय दिया जबकि स्वागत भाषण सहायक प्राध्यापक विश्व ने दिया। डॉ. राबिया गुप्ता ने मैं शिव हूं पुस्तक का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करते हुए सभी को इससे अवगत कराया।

डॉ. नेहरू ने अपने वक्तव्य की शुरुआत विद्यार्थियों से संवाद के माध्यम से की जिसमें उन्होंने सृष्टि के आधारभूत प्रश्नों की जिज्ञासा उत्पन्न की। उन्होंने इस जिज्ञासा को अपनी पुस्तक से जोड़ते हुए कश्मीर शैव परंपरा के विभिन्न आयामों को सरलता से समझाया। अहम ब्रह्मास्मि और अन-अल-हक़ का उदाहरण देकर उन्होंने बताया कि यह जिज्ञासा विश्वभर के लोगों में रही है।

डॉ. नेहरू ने भारत की शैव परंपरा पर प्रकाश डालते हुए अद्वैत के सिद्धांतों को स्पष्ट किया। उन्होंने जड़ से चेतन और स्वबोध के महत्व को बताते हुए इसके प्रति प्रेरित किया। शिव और शक्ति के योग को संदर्भित करते हुए उन्होंने परम चेतना पर विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने यह भी समझाया कि कैसे हमारे कर्म, परत-दर-परत हमारे अवचेतन मन में संचित होते रहते हैं, और यह हमारे मुक्ति के मार्ग में सबसे बड़े अवरोध बनते हैं।

डॉ. नेहरू ने भारत की अनूठी ज्ञान परंपरा को रेखांकित करते हुए बताया कि यहां हजारों वर्षों पहले से ऐसे विषयों पर विमर्श और अनुसंधान हुआ है, जिनकी सतही जानकारी तक जुटाने में पश्चिमी समाज को लंबा समय लग रहा है। उन्होंने टाइम डाइलेशन का उदाहरण दिया, जिसे ब्रह्मलोक में एक दिन पृथ्वी के कई युगों के बराबर होता है के संदर्भ में समझाया।

पुस्तक के शीर्षक मैं शिव हूं के महत्व को बताते हुए उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति शिव है, बशर्ते वह इसे अनुभूति के स्तर पर समझे ले । उन्होंने यह भी कहा कि जब कोई व्यक्ति आपको नहीं देख रहा होता, तब आप स्वयं अपने आप को देख रहे होते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे अपने प्रत्येक कर्म और क्रिया को चेतन दृष्टा भाव से देखें। यही दृष्टिकोण व्यक्ति को उस अवस्था तक पहुंचा सकता है, जहां कर्म, माया और द्वैत के बंधन समाप्त हो जाते हैं और मोक्ष का द्वार खुलता है।

डॉ. नेहरू ने दर्शन और सिद्धांतों से परिपूर्ण इस पुस्तक पर विद्यार्थियों के प्रश्नों का उत्तर देकर उनकी जिज्ञासाओं को शांत किया। कार्यक्रम के अंत में संस्थान के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. अनिल सौमित्र ने डॉ. नेहरू को स्मृति चिह्न देकर उनका सम्मान किया। धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. दिलीप कुमार ने किया। उन्होंने विभिन्न परंपराओं के उन महान व्यक्तित्वों का उल्लेख किया, जिन्होंने आत्मचिंतन के माध्यम से स्वयं को उस एक तत्व से जोड़ लिया।

हिन्दुस्थान समाचार / राहुल शर्मा