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पितृ विसर्जन पर श्राद्ध पिंडदान के लिए गंगा तट पर उमड़ी भीड़,तर्पण कर पितरों की दी गई विदाई

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————तर्पण आदि में हुई त्रुटि के लिए पूर्वजों से क्षमा मांगी ,गाय, कुत्ता, कौवा को लगाया भोग

वाराणसी,02 अक्टूबर (हि.स.)। आश्विन अमावस्या(पितृ विसर्जन)पर बुधवार को लोगों ने पूरी श्रद्धा के साथ अपने पूर्वजों का श्राद्ध पिंडदान, तर्पण कर उन्हें विदाई दी। अपने पुरखों का पिंडदान करने के लिए लोग भोर से ही गंगा तट सिंधिया घाट, दशाश्वमेध घाट, मीरघाट, अस्सी घाट, शिवाला घाट, राजाघाट सहित विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुंड पर पहुंचने लगे। लोगों ने सिर का मुंडन करा कर गंगा और कुंडों में डुबकी लगाई और श्राद्धकर्म पिंडदान किया। यह क्रम पूरे दिन चलता रहा।

पितृ अमावस्या पर अपने ज्ञात अज्ञात पितरों का पिंडदान और श्राद्ध के लिए लोगों की भीड़ गंगाघाटों पर लगी रही। पिंडदान के दौरान लोगों ने अपने कुल, गोत्र का उल्लेख कर हाथ में गंगा जल लेकर संकल्प लिया और पूर्वाभिमुख होकर कुश, चावल, जौ, तुलसी के पत्ते और सफेद पुष्प को श्राद्धकर्म में शामिल किया। इसके बाद तिल मिश्रित जल की तीन अंजुली जल तर्पण में अर्पित किया।

इस दौरान तर्पण आदि में हुई त्रुटि, किसी पितर को तिलांजलि देने में हुई चूक के लिए पूर्वजों से क्षमा याचना भी की। अपने पितरों से सुखद, सफल जीवन के लिए आशीर्वाद भी मांगा। पिंडदान के बाद घर पहुंच कर गाय, कुत्ता, कौवा को पितरों के प्रिय व्यंजन का भोग लगा कर खिलाया। घर में बने विविध प्रकार के व्यंजनों को निकालकर पितरों को चढ़ाया। इसके बाद ब्राम्हणों को खिलाने के बाद खुद और परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण किया। देर शाम लोग अपने घरों के बाहर पूड़ी, सब्जी, पानी, दीये और डंडी रखकर पितरों को विदा देंगे। सनातन धर्म में माना जाता है कि पितृ पक्ष में पूर्वज पंद्रह दिनों तक अपने घरों के आसपास मौजूद रहते है। अपनों से सेवा भाव के साथ श्राद्धकर्म कराने के बाद अमावस्या पर अपने लोक को वापस लौट जाते है। माना जाता है कि पितरों के श्राद्धकर्म न करने से सात जन्मों का पुण्य नष्ट हो जाता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी