मतदाता सूची के नए नियमों पर ममता बनर्जी ने उठाए सवाल

कोलकाता, 26 जून (हि.स.) । बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची में नाम जोड़ने की प्रक्रिया को लेकर जारी की नई गाइडलाइन पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कड़ा ऐतराज जताया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि आयोग की ये पहल सिर्फ बिहार के लिए नहीं बल्कि बंगाल को निशाना बनाने की साज़िश है। गुरुवार को मीडिया से बातचीत में ममता ने सवाल उठाया कि क्या इस प्रक्रिया के ज़रिए देश में चुपचाप राष्ट्रीय नागरिक पंजी यानी एनआरसी लागू करने की कोशिश हो रही है?
चुनाव आयोग ने हाल ही में मतदाता सूची के संशोधन के संबंध में कुछ नए नियम जारी किए हैं, जिसके तहत अब नागरिकता का स्पष्ट प्रमाण पत्र दिए बिना मतदाता सूची में नाम नहीं जोड़ा जा सकेगा। आयोग ने कहा है कि 01 जुलाई 1987 से पहले जन्म लेने वाले नागरिकों को अपने जन्म की तारीख और स्थान से जुड़े प्रमाण पत्र देने होंगे, जिनमें जन्म प्रमाणपत्र या पासपोर्ट जैसे दस्तावेज़ शामिल हो सकते हैं। वहीं, जिनका जन्म 01 जुलाई 1987 के बाद हुआ है, उन्हें अपने साथ-साथ अपने माता-पिता के दस्तावेज़ भी जमा करने होंगे। इतना ही नहीं, जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं था, उन्हें भी अपने जन्म स्थान से संबंधित प्रमाण पत्र देना होगा। इसके अलावा, सभी नागरिकों को भारतीय नागरिक होने का एक स्वघोषित पत्र भी जमा करना होगा। आयोग का यह भी निर्देश है कि दो दिसंबर 2004 के बाद जन्मे लोगों पर भी यही नियम लागू होंगे।
ममता बनर्जी ने इन नियमों को लेकर गहरी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आयोग का असल इरादा बंगाल को टारगेट करना है, जबकि बिहार में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, इसलिए वहां कुछ नहीं किया जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया प्रवासी मज़दूरों और गरीब तबकों को परेशान करने और उन्हें मतदाता सूची से बाहर करने की योजना का हिस्सा है।
मुख्यमंत्री ने सवाल उठाया कि क्या 1987 से 2004 के बीच जन्मे लोग अब इस देश के नागरिक नहीं माने जाएंगे? भारत तो 1947 में स्वतंत्र हुआ, फिर इस बीच के वर्षों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है? गरीब लोग अपने माता-पिता के दस्तावेज़ कहां से लाएंगे? उन्होंने आशंका जताई कि यह पूरी प्रक्रिया एनआरसी को धीरे-धीरे लागू करने की दिशा में एक कदम हो सकता है।
ममता बनर्जी ने यह भी आपत्ति जताई कि चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से बिना चर्चा किए यह बड़ा निर्णय ले लिया। भारत एक संघीय लोकतंत्र है और यहां राजनीतिक दल या निर्वाचित सरकारें किसी के अधीन नहीं हैं।
एक और विवादास्पद पहलू पर बोलते हुए ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग द्वारा राजनीतिक दलों से उनके बूथ स्तर के एजेंटों की जानकारी मांगे जाने पर भी कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि, “मैं क्यों अपने पार्टी एजेंटों की निजी जानकारी दूं? यह उनकी निजता का उल्लंघन है।”
उन्होंने इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों से एकजुट होकर चुनाव आयोग के खिलाफ विरोध दर्ज कराने का आह्वान किया। ममता ने इसे बेहद गंभीर मामला बताते हुए चेतावनी दी कि अगर आयोग ने अपनी गाइडलाइन वापस नहीं ली तो तृणमूल कांग्रेस भविष्य में इसके खिलाफ आंदोलन का रास्ता अपना सकती है।
हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर